अनुसरण का महातम

अनुसरण का महातम

  संन्यास अनुसरण का महातम

       

    संसार के किसी भी क्षेत्र में चाहे वह धार्मिक हो अथवा कार्मिक बड़ों का अनुकरण करने वाले ही सफलता प्राप्त करते हैं। बड़ों का अनुकरण (अनुसरण) किए बिना ही यदि कोई सफलता चाहता हैं तो वह उसकी बड़ी भारी भूल है।

       सर्वज्ञ श्री चक्रधर महाराज ने जीव उद्धार का व्यसन धारण करके जीव उद्धार कार्य शुरू किया और अयोग्य व्यक्तियों को योग्य बनाकर ज्ञान दान शुरू किया, क्योंकि ज्ञान के बिना अनुसरण अधूरा ही रहता है। जिस तरह समझदार सेवक स्वामी की हलचल से पहचान जाता है कि इस समय स्वामी को प्यास लगी है, भूख लगी है, घूमना चाहते है या आराम करना चाहते हैं उसके अनुसार सेवक उचित प्रवन्ध करता है। उसी तरह ज्ञानी भक्त पर मेश्वर अवतारों की प्रवृत्ति को जानकर अनुष्ठान करता है। आत्मरमण सर्व श्रेष्ठ ज्ञानमय आनन्दमय परमेश्वर संसार में अवतार लेते है तो अलग २ अवतारों की प्रवृतियां अलग-२ ही होती है एक के साथ दूसरे की नहीं मिलती       

       हमारे साधन दाता सर्वज्ञ श्री चक्रधर महाराज की प्रवृत्ति सब अवतारों से श्रेष्ठ और भिन्न थी। जिस तरह व्यसनी व्यक्ति को व्यसन की पूर्ति हुए बिना चंत नहीं पड़ती। उसी तरह स्वामी ने जीव उद्धार का व्यसन धारण किया हुआ था, अतः जीव उद्धार के बिना स्वामी को खाना-पिना न्हाना-धोना ऐस आराम कुछ नहीं भाता था। कुछ उदाहरण पेश कर रहा हूं। अधिकारी जीवों की खोज के लिए स्वामी किसी एक जगह अधिक नहीं ठहरते। गांव-, गली-गली, घर-घर जा कर खोजते थे । वन में पर्वतों में जंगलों में जाकर ढूंढते थे। सुबह जल्दी उठ कर ध्यान लगाकर देखते थे। जो भी अधिकारी जीव जहां पर भी दिखाई देते थे, वहां हर स्वामी पहुंच कर उसको ज्ञान का दान करते थे ।

       भण्डारा नामक गांव को स्वामी पहुंचे। नीलभट्ट नामक ब्राह्मण की ओर स्वामी का लक्ष था। भिक्षा के निमित्त स्वामी उसके घर पहुंचे। नीलभट्ट के आत्म कल्याण का समय निकट आ गया था, अतः वे धर्म ग्रन्थ लेकर पढ़ रहे थे। उनके दिल में प्रश्न था कि इस जीव को मुक्ति किस तरीके से मिलसकती है ? स्नान के लिए गर्म पानी रखा था। कपड़े भी उतारे हुए थे। परन्तु उन्हें यह पता नहीं था कि स्नान भी करना है या नहीं अथवा खाना भी खाना है या नहीं? उनको यह भी पता नहीं था कि इस घर में भी दुबारा आना है या नहीं या इन रिश्तेदारों का दुबारा मिलाप भी होगा या नहीं जीवन मुक्ति के उपाय की खोज में नील भट्ट इतने तल्लीन थे कि जीवन मुक्त करने वाले, जन्म-मृत्यु से छुडाकर परमानन्द प्रदान करने वाले प्रभु दरवाजे पर खड़े है उनकी ओर देखने की भी उन्हें फुरसत नहीं थी ।

       स्वामी जी का लक्ष्य या नीलभट्ट को अपने साथ ले जाने का। नीलभट्ट की धर्म पत्नि ने स्वामी को भिक्षा दे दी फिर भी उनका ध्यान स्वामी की ओर नहीं गया । आखिर स्वामी ने कहा - भट्टो ! मागील फांकी पहा स्वामी की ओर देखकर नीलभट्ट ने पिछला पेज पलट कर देखा तो उनका इच्छित उत्तर मिल गया पिछले पेज पर लिखा था कि एक परमेश्वर की शरण में जाकर उसकी आज्ञाओं का पालन व सेवा-दास्य करने से यह जीव जन्म-मृत्यु के बन्धनों से मुक्त हो सकता है। आश्चर्यचकित होकर नीलभट्ट स्वामी की देखकर सोचने लगे कि ये पुरुष साधारण नहीं है मेरे दिल की बातें समझ समझते है, अतः अन्तर्यामी है और मेरे हित कर्ता भी है। स्वामी भिक्षा लेकर अपने रास्ते चल पड़ते हैं नीलभट्ट भी नहाना-खाना छोड़कर स्वामी के पीछे चल पड़े। पत्नि ने पूछा आप कहां जा रहे हैं? नीलभट्ट ने उत्तर दिया मैं जिनका हूं उन्हीं के साथ जा रहा हूं, अब आप घर पर ही रहें। पत्नि पतिव्रता थी अतः नीलभट्ट के कहे अनुसार रुक गई। रिश्तेदार भो बापस ले जाने के लिए आए परन्तु नील भट्ट वापस नहीं गए। स्वामी की सेवा में रहने लगे। इस तरह नील भट्ट ने स्वामी के समागम में 16 वर्ष बिताए ।

       प्रसंग के अनुसार स्वामी ने कहा- शुरु से लेकर अन्त तक नीलभट्ट ने अपनी हि नहीं दिखाई। उसके समान उठना बैठना कोई नहीं जानता। स्वामी जी ने निलभट्ट के अन्तिम समय का वृतान्त बताया कि उस की तपस्या पूर्ण हो चुकी थी। उन्हें नश्वर शरीर से मुक्त करने की प्रवृत्ति हमें हो चुकी थी। नीलभट्ट को दस्त शुरू हो गए। हम उसका हाथ पकड़कर बाहर ले जाते थे।

       बहुत अधिक निर्बलता आ चुकी थी हम अपने प्यारे भक्त का सिर अपनी जंघा पर लेकर बठे हुए थे हमने नील भट्ट को कहा कि अब तुम्हारा अन्तिम समय आ चुका है हम तुम्हारे पर अति प्रसन्न है आप यदि जोवित रहना चाहते है तो हम तुम्हारी आयु बढा देते हैं ?

       नीलभट्ट ने कहा प्रभो ! पहले आप बतलाइए कि जिस प्रकार का समय आज है ऐसा ही समय दुबारा प्राप्त होगा कि आपकी गोद में मेरा सिर रखा हुआ होगा मैं आपके श्रीमुख का अवलोकन करता हुआ प्राण त्याग करूं गा। हमने कहा भविष्य के बारे में निश्चित कहा नहीं जाता। यह सुनकर नीलभट्ट ने कहा-प्रभो मुझे ऐसे जीवन की आशा नहीं है कि अन्त में आप के दर्शन न हो। नील भट्ट ने प्राण त्याग कर दिए। हमने उसका यथा विधि संस्कार किया। ऐसे आज्ञाकारी व प्रेमी भक्त के विभाग में हमसे उस जगह पर रहना कठिन हो गया अतः हम वहाँ से दूसरी ओर चले गए।

       ऐसे हो अधिकारी जीवों को ढूंढते हुए हम ओरंगल प्रान्त में गए वहां पर प्रेमाधिकारी महादेवभट्ट को प्रेम का दान किया महादेव भक्त हमारे साथ चल पड़े। कुछ दिन के उपरान्त हमने उसको एक गांव में रहने के लिए कहा। हमने परीक्षा लेना चाहा कि यह हमारी आज्ञा का पालन करता है या नहीं ? उसे विश्वास दिलाया कि हम नदी के उस पार गांव है वहां पर रहेंगे, तुमने इसो गांव में रहना हैं महिना या पन्द्रह दिन में हम तुम्हे मिलने आया करेंगे।

        वैसे तो परमेश्वर अवतारों के वियोग में प्रेमी भक्त रह नहीं सकते परन्तु अवतारों की आज्ञा हो तो मजबूर होकर उन्हें रुकना पड़ता है। महादेव भक्त नदी के किनारे बैठकर हमारा ध्यान किया करता था ।

       एक ब्राह्मण प्रतिदिन भिक्षा लेकर जाता था। भक्त ने उससे पूछा श्रीमान जी ! आप भिक्षा के लिए इस गांव में गए हुए थे किसी जगह मेरे प्रभु के आपको दर्शन हुए? जिनके लम्बे हाथ और कान है चांपेगौर उनका वर्ण है। ब्राह्मण ने कहा हां ! मुझे उनके दर्शन हुए थे। भक्त ने फिर पूछा क्या वे आनन्द मंगल से है ? ब्राह्मण ने कहाबिल्कुल ठीक-ठाक है। इसी तरह भवत ने दूसरे दिन भी ब्राह्मण से प्रश्न किया कि मेरे स्वामी सुख-चन से है? ब्राह्मण ने कहा सूख-चैन से है।

       तीसरे दिन ब्राह्मण को भक्त ने उसी तरह पूछा तो ब्राह्मण ने दिल में सोचा कि पुरुष का पुरुष के साथ इतना प्यार होना न कभी देखा है न कभी सुना है। हां ! पुरुष का स्त्री के साथ प्यार होता है और स्त्री का पुरुष के साथ भी होता है। आज ब्राह्मण ने झूठ ही कह दिया कि क्या तुम्हें पता नहीं चला ? उन्हें तो सांप ने काट खाया जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

       भक्त ने कहा ‘‘क्या सत्य कह रहे हो?’’ ब्राह्मण ने कहा सत्य है इस तरह तीन बार भक्त ने पूछा और ब्राह्मण ने सत्य है सत्य है कह दिया। यह सुन कर खड़े-२ ही भक्त के प्राण पखेरु उड़ गए।

       ब्राह्मण घबरा कर स्वामी के पास गया और सारा हाल कह सुनाया। स्वामी ने कहा कि यह सुनकर हमें बहुत खेद हुआ। हमने ब्राह्मण को कहा ‘‘हे ब्राह्मण! इस प्रकार की सत्य बात हो फिर भी फिर भी प्रियजनों के सामने एकाएक नहीं कहनी चाहिए फिर आपने इस प्रकार झूठ क्यों कहा?’’ ‘‘जी जी मैने मजाक किया था’’ भगवान ने कहा, ‘‘हसते हसते जो बोल गये, वो अब रोते राते भोगना पडेगा’’

       आगे की घटना बतातें हुए भगवान ने कहा ‘हमने ब्राह्मण के घर से कुदली, फावड़ा (कस्सी) मंगवाई खड्डा खुदवाकर अपने हाथों से भक्त का अन्तिम संस्कार किया। फिर हमसे वहां नहीं रहा गया। हम उस प्रदेश को छोड़कर दूसरी ओर चले गए।

       इसी तरह स्वामी अधिकारी जीवों को ढूंढते हुए पैठण में गए बाईसा को प्रेमदान दिया। आचार्य श्रीनागदेव जी को ज्ञान दान किया। महदांइसा, माहिमभट्ट को ज्ञान देकर अनुसरण लेने के लिए प्रेरित किया।

       महदाइसा ने यमपुरी के नरकों का वर्णन सुनकर उन नरकों से बचने के लिए स्वामी से पूछा तो स्वामी ने कहा ‘सर्व धर्मान्‌ परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज’ हमारी शरण में आकर हमारी आज्ञाओं का पालन करने से यह जीव नरकों से बच सकता है।

       गणपती आपयो को कुष्ट रोग हो गया था, अतः उनकी पत्नि ने स्वामी से कहा महाराज? पंडित जी पर कृपा करें ताकि ये रोगमुक्त हो जाय। स्वामी ने कहा यदि ये अनुसरण ले लें। (संन्यास ले लें) तो इनका कुष्ट रोग दूर कर देंगे उसने कहा महाराज ! बिना संन्यास लिए रोग मुक्त क्यों नहीं कर देते ? स्वामी ने कहा यह तो हमारी प्रवृति है।

       डोमेग्राम में स्वामी का निवास था। छिन्नस्थली के पास गंगा के के किनारे स्वामी बैठे थे । एक पीपल का वृक्ष नदी का तट गिर जाने से लटक रहा था। डालियां नोचे को हो गई और जड़े ऊपर को थी हवा के झोके लग रहे थे पास में दायंबा नामक भक्त बैठे हुए थे। स्वामी ने कहा भक्त ! यदि तुमने हमारा अनुसरण नहीं लिया (संन्यास नहीं लिया) तो इस प्रकार की पेड़ों की योनियों में असंख्य बार जन्म लेकर चीरकाल तक दुःख भोगना पड़ेगा, जिस पेड़ की टहानियां नीचे की है और जड़ें ऊपर को है।

       भगवान ने जीव उद्धार के व्यसन को धारण करके जीवों को रोगों से मुक्त करने का लालच दिया। नरकों से छुडाने का अभय वचन दिया। जन्म-मृत्यु से बचने की ग्यारंटी दी अतः हमें चाहिए कि ऐसे परम उपकारक जीव उद्धरणव्यसनी सर्वज्ञ श्रीचक्रधर महाराज के बतलाए हुए ब्रह्मविद्या ज्ञान को ठीक ढंग से पढ़ें, सुने, व समझ करके अपने अन्तःकरण में धारण करण प्रभु की शरण में जाकर उसकी आज्ञाओं का पालन करें। हम बड़े ही सौभाग्य शाली है कि स्वामी ने हमें ज्ञान दिया है। हमारे अनुसरण की स्वामी प्रतिक्षा कर रहे है ऐसे दयालु अवतार का यदि हम अनुसरण नहीं करते हैं तो हमारे जैसा दुर्भागी कोई नहीं होगा।


Thank you

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post