हिंदी काव्य रसग्रहण - गीता विशद ज्ञान का सागर हैं

हिंदी काव्य रसग्रहण - गीता विशद ज्ञान का सागर हैं

 

गीता - विशद ज्ञान का सागर है

गीता कोई गीत नहीं है, विशद ज्ञान का सागर है, 

उपदेशक जिसका श्रीकृष्ण, ब्रजनन्दन नट नागर है ।

परम ब्रह्म परमेश्वर मुख से, श्री गीता जी प्रकट हुई, 

रण भूमि में श्रोता-वक्ता, बहस परस्पर विकट हुई, 

अर्जुन के अन्तस के अन्दर, भरी ज्ञान की गागर है 

अर्जुन के अतिरिक्त सुनी जो, संजय और हनुमान ने, 

खण्ड-खण्ड जो ज्ञान सुनाया, श्रीकृष्ण भगवान ने, 

तीनों लोक हुए बड़भागी, बने ज्ञान के आगर हैं 

गीता के हर वर्ण-वर्ण में, ज्ञान हिलोरें लेता है, 

मानव की मुक्ति का पूरा पथ प्रशस्त कर देता है, 

हर शंका अरू हर रहस्य को, जिसने किया उजागर है। 

सांख्य योग और कर्मयोग को, खण्ड-खण्ड समझाया है, 

भक्ति योग को श्रेष्ठ सभी से, श्रीकृष्ण ने बतलाया है, 

ले उतार गीता जीवन में, 'ताबिश' हो कर जागर है ।।

आचार्य राकेश बाबू 'ताबिश', द्वारिकापुरी - फिरोजाबाद

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भजन पीयूष भज कृष्ण गोविन्दा रे 

पगले भज कृष्ण गोविन्दा रे, 

पिंजड़ा छोड़ उड़ेगा पंक्षी पड़ा रहेगा बन्दा रे। 

मेहनत कर के रोटी खाये पर सेवा में ध्यान लगाये, 

दर-दर भटक के तू क्या मांगे, भीख और फिर चन्दा रे।

भज कृष्ण गोविन्दा रे 

हरि का नाम ही साथ चलेगा शेष यहीं सब पड़ा रहेगा, 

जो भी पुण्य करोगे प्यारे आगे वह सब खड़ा मिलेगा। 

यदि न भजा तू उस बन्दे को तब गले लगेगा फंदा रे, 

भज कृष्ण गोविन्दा रे


जैसी तेरी करनी होगी वैसा ही घर पायेगा, 

सूकर-कूकर जन्म मिला तो घुट-घुट के मर जायेगा। 

मन की भटकन छोड़ दे प्यारे मत कर तन को गन्दा रे,

भज कृष्ण गोविन्दा रे 

समय मिला है तुझको थोड़ा काम बहुत जग का करना, 

भजन-भाव खूब करते चलिए कहाँ जगत में है रहना। 

अन्त समय जब आये "प्रेमी" मन रहे खूब आनन्दा रे ।

भज कृष्ण गोविन्दा रे

रचयिता - शिव कुमार श्रीवास्तव 'प्रेमी

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Thank you

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