भगवद्गीता में 4 (चार) प्रकार की साधनाओं का उल्लेख है आपको किस की साधना करनी हैं)
नीति ग्रन्थों में लिखा है कि- जब तक शरीर निरोगी रहे और मृत्यु निकट न पहुँचे तब तक आत्म कल्याण कर लेना चाहिए, प्राणान्त हो जाने पर कुछ भी नहीं किया जाता। भगवान ने बतला दिया धर्म ग्रन्थों में लिखा है, हम पढ़ते सुनते हैं। करना नहीं करना भगवान ने हमारे ऊपर छोड़ा है। क्योंकि नित्य मुक्त परमात्मा किसी को भी बन्धन में नहीं डालते। रास्ता बतलाकर चुप रह जाते हैं।
स्वामी ने बतलाया कि- खेत की रखवाली के लिये किसान माचे पर बैठ कर देख-रेख कर रहा था खेत के निकट से ही दो रास्ते जा रहे थे। राहगीर आया उसने किसान से पूछा भय्या ! बतलाएं ये मार्ग कहां जा रहे हैं? किसान ने बतलाया कि - यह सीधे हाथ वाला मार्ग तो शहर की तरफ जाता है। रास्ते में सब प्रकार की सुख सुविधा है भोजन के लिये अन्न सत्र लगे हैं, पानी के लिये प्याऊ हैं और छाया के लिये पेड़ लगे हैं। और यह बाएं हाथ का मार्ग जंगल की तरफ जाता है।
धीरे रास्ता कटता जाता है और भयानक जंगल में समाप्त हो जाता है। जंगल में चोर मिलते हैं लुटपाट करते हैं शेर खा जाते हैं सांप काट खाते हैं जिससे मृत्यु हो जाती है। खेत रखवाले के द्वारा दोनों मार्गों की जानकारी प्राप्त हो जाने पर राहगीर अपनी इच्छा से शहर के रास्ते से जाता है तो सुख पूर्वक शहर में पहुँच जाता है और जंगल के मार्ग से जाता है तो चोरों के द्वारा लूटा जाता है या शेर, सांप के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होता है।
वैसे ही परमेश्वर भूतल पर अवतार लेकर उदास दृष्टि से विचरण करते हैं। जो कोई ज्ञानाधिकारी मनुष्य उनके पास में आकर जिज्ञासा करता है कि - हे प्रभो! इस संसार में अनेक धर्म सम्प्रदाय हैं इनमें से किस धर्म सम्प्रदाय के तत्त्व ज्ञान के अनुसार आचरण करने से मुक्ति प्राप्त हो सकती है? गीता सिद्धान्त के अनुसार परमेश्वर अवतार बतलाते हैं कि- इस संसार में मुख्यतः चार प्रकार की भक्ति प्रचलित हैं।
1) पहला प्रकार है, "भूत - प्रेतों की साधना”। भूत प्रेतों की साधना करके उन्हें वश किया जाता है। लोगों से पैसे लेकर भूतों से अनेक प्रकार के बूरे काम करवाए जाते हैं, अन्त में मान्त्रिक तान्त्रिक को भूत योनि में ही जाना पड़ता है।
2) दूसरा प्रकार है "पितरों की साधना करना"। पितर देवताओं की साधना करके उन्हें प्रसन्न करना, विधि *पूर्वक उनकी आराधना करने से समय आने पर पितर देवताओं का फल मिलता है परन्तु वे मुक्ति नहीं देतीं।
3) तीसरा प्रकार है "स्वर्ग से ऊपर की देवताओं की साधना करना”। विधि पूर्वक साधना करने से देवताओं के फल प्राप्त होते हैं परन्तु मुक्ति नहीं मिलती। कर्मभूमि की देवता से लेकर चैतन्य माया तक 81 करोड़ सव्वा लाख और दस देवताओं की साधना करने से जीव उनके सुख फल को प्राप्त करता है परन्तु पुण्य समाप्त हो जाने पर संसार में फिर से जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है।
4) चौथा प्रकार हैं "परमेश्वर की साधना करना"। परमेश्वर की आराधना करने से जीव हमेशा के लिये मुक्त हो जाता है। एक बार परमेश्वर की प्राप्ति हो जाने पर हमेशा के लिये जन्म - मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है। सुख - दुःख, लाभ-हानि, अपना पराया, शत्रु-मित्र, रोना-धोना सदा - 2 के लिये समाप्त हो जाता है। सारांश: - एक परमात्मा की साधना के सिवाय जीव
अन्य किसी भी साधन से मुक्त नहीं हो सकता। परमात्मा की कृपा से मनुष्य क़ो ज्ञान हो जाने पर स्वइच्छा से यदि वह परमेश्वर प्राप्ति के राह पर चलता है, तो हमेशा के लिये उसके समस्त बन्धन समाप्त हो जाते हैं। दुबरा जन्म - मृत्यु और सुख - दुःख का मुंह नहीं देखने को मिलता । परमात्मा के परमानन्द का अनुभव करता रहता है। और ज्ञान होने पर भी मनुष्य परमेश्वर के अधीन होकर उसकी आज्ञा का पालन नहीं करता तो सभी प्रकार के दुःख, सभी प्रकार के कष्ट, सभी प्रकार के नरक भोगने को मिलते हैं।
मनुष्य को मुक्ति चाहिए कि बन्ध - न? इसका फैसला ज्ञानी स्वयं करे। यदि ज्ञान होकर भी ज्ञानी भगवान शरण में न आये तथा आज्ञा का पालन न करे और भगवान की आज्ञा के विरुद्ध विषय - विकारों में फंस कर अपनी सारी जिन्दगी बर्बाद करके नरकों की सैर करता रहे तो भगवान भी क्या करे ?