सच्ची प्रार्थना - sachhi prarthana

सच्ची प्रार्थना - sachhi prarthana

सच्ची प्रार्थना 

आज के इस चलते समय में यह जीव माया के जाल में इतनी बुरी तरह फंस चुका है कि अपने जीवन के सच्चे अर्थ को बहुत दूर छोड़ चुका है। पूजा-पाठ, धर्म-कर्म केवल दिखावे मात्र के लिए रह गये हैं। परम पिता परमात्मा से प्रार्थना तक के लिए समय नहीं है।

केवल पूजा नमस्कार, आरती भजन, वीड़ा, दान-दक्षिणा को ही धर्म और भक्ति समझा जा रहा है। निष्काम भक्ति, स्मरण, प्रायश्चित, सेवा - भाव, प्रेमभाव कहीं लुप्त हो चुके हैं। आज कल पूजा-पाठ सकाम हो गयी है। प्रार्थना में केवल ध न-सम्पत्ति, सन्तान, यश, सुख-सुविधा, कोर्ट केस में विजय, कारोबार में तरक्की और रोगों बीमारियों से मुक्ति यह सब रह गया है। प्रार्थना का सच्चा अर्थ तो कहीं दूर रह गया है।

स्वामी की आज्ञा क्या है? स्वामी के वचन क्या है? कोई भी इस चलते समय में ज्ञानपूर्वक इस जीव को समझाना नहीं चाहता। यदि किसी सत्संग में समझाया जाता है, तो सब घर आते ही भूल जाता है। इस सब का कारण है "कलयुग का प्रभाव" और "माया का जाल' "

यह जीव संसार के सुख-सुविधा में, भोग-विलासों में, संतान के लालन-पालन में, फिर पोते-पोतियों के लालन पालन में, घर की रखवाली में अपना सारा जीवन खुशी से नष्ट कर देता है। लेकिन इन सब के बाद मिलता क्या है? वही नरकों के दर्दनाक कष्ट, पीड़ा, 84 लाख योनियों के चक्कर, दुःख - चिंताएं।

इस जीव के ज्ञान के ऊपर कई बुरी शक्तियों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आलस्य, वासना आदि) की परत जम गई है। इसलिये यह जीव अपने जीवन के लक्ष्य को समझ नहीं रहा है। इन सब से बचने का एक ही उपाय है, "ईश्वर से सच्ची प्रार्थना "।

हे दयालु, मयालु, कृपालु परमात्मा ! मेरे इस सोये ज्ञान को जगाईये और मुझे इस दुःख रुपी संसार से निकलने की शक्ति प्रदान कीजिए। मुझे अपनी आज्ञाओं और वचनों पर चलने की शक्ति प्रदान कीजिए। मुझे श्रद्धा-भक्ति, प्रेम, नियमों पर दृढ़ रहने की शक्ति प्रदान करें। मैं भटक गया हूँ। मुझे अपना सच्चा ज्ञान दीजिए ताकि मैं अपना जन्म कुछ तो सार्थक कर सकूँ। केवल आपकी ही कृपा से सब हो सकता है। 

इस प्रकार की सच्ची प्रार्थना यदि सच्चे मन से जीव करता है, तो ईश्वर अवश्य सहायता करते हैं और पग- 2 पर उसकी मदद करते हैं। ईश्वर उनकी सहायता करते हैं जो इस संसार से निकलने की इच्छा करते हैं और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए तन मन धन से अपना जीवन प्रभु चरणों में अर्पण करते हैं।

“धर्म उनका नहीं, जो धर्म की बातें करते हैं"। “धर्म उनका है, जो धर्म का आचरण करते हैं”॥

Thank you

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