ज्ञान मुक्तिदायक है और नहीं भी
ब्रह्मविद्या शास्त्र बड़ा ही रहस्यमय गुह्यतम शास्त्र है। उसको आत्मसात करने के लिए साधक को अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करना पड़ता है, परमेश्वर परायन एवं अपने गुरुजन, अधिकरण का मनोधर्म रखकर शास्त्र अध्ययन एवं आचरण करना चाहिए तब गुरुजनों की प्रसन्नता और परमेश्वर की कृपा से हमें ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान की परिभाषा है- ‘जो वस्तु जैसी हैं उसको वैसे ही समझना ज्ञान है’।
ज्ञान के बिना मनुष्य का आत्मोद्धार नहीं हो सकता। परमेश्वर हमें प्रतिसृष्टि ज्ञान देते हैं, परन्तु उसको भुलाकर हम इस त्रिगुणात्मक संसार में, मोह-ममता में फँस जाते हैं, जिस कारण ज्ञान के अनुसार आचरण न करने से इस जीवात्मा का आत्म उद्धार नहीं होता और वह ज्ञान व्यर्थ हो जाता है।
प्रभु प्रेमियों भगवान श्रीकृष्ण चन्द्र जी द्वारा निरोपित शास्त्र गीता पढ़ने में सुनने में जो आनन्द आता है, समाधान, आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है उसको शब्दों में बताना कठिन है।
हमारे गुरुजी कहते हैं कि भगवान की बातें (ज्ञान) भगवान के भक्तों को अवश्य सुनानी चाहिए, जिससे अज्ञानता का नाश होकर सत्कर्म करने की इच्छा निर्माण होती है, पाप कर्म से मनुष्य दूर होकर भगवान को पाने का प्रयास करता है तथा ज्ञान सुनाने वाला, ज्ञान को सुनने वाला दोनों भी भगवान के प्रिय बन जाते हैं।
प्रभु प्रेमियों, भगवान श्रीचक्रधर जी का निवास श्री डोमेग्राम में था जहाँ पर आचार्य श्री नागदेव जी तथा अन्य भक्तों को प्रभु जी परावर ज्ञान का उपदेश दे रहे थे। तब माहिमभट्ट नामक विद्वान ; जिनको प्रभु जी ने "ईश्वर प्रतीति" करवा दी थी। वो आये, प्रभु जी को साष्टांग नमस्कार डालकर ज्ञान उपदेश सुनने लगे, तब बीच में ही उन्होंने प्रभु जी से प्रश्न पूछा- भगवन् ! आप जो ज्ञान सुना रहे हैं उस ‘ज्ञान का क्या लक्षण है?’ प्रभु जी ने बहुत कम शब्दों में उसका जवाब दिया- ‘‘ज्ञान मुक्तिदायक है’’ परन्तु परमेश्वर का ज्ञान ही केवल मुक्तिदायक है, देवी-देवताओं का ज्ञान मुक्तिदायक नहीं है। देवी देवताओं का ज्ञान सिर्फ एक नॉलेज हैं । उस ज्ञान सें मुक्त होना असम्भव हैं । देवताओं कें ज्ञान सें उलटा जीव को बन्धन प्राप्त होता हैं ।
प्रभु प्रेमियों ! प्रभु जी के इन वचनों पर हमारे पूर्वजों ने अनेक टीकाग्रन्थ, भाष्य-महाभाष्य लिखे हैं। ताकि सर्वसाधारण लोगों को प्रभु जी के वचन उसके अर्थ, भावार्थ या उसमें क्या आचार-विचार पर बात बताई है समझ में आ सके। उसे हमें समझने का प्रयास करना चाहिए। जैसे प्रभु जी ने बताया है "दास्य मोचक" सेवा-दास्य करने से मुक्ति होती है, परन्तु वह सेवा दास्य ज्ञानपूर्वक करने से ही मुक्ति मिलती है अन्यथा नहीं।
इसलिए "ज्ञान ही मुक्तीदायक हैं" यह महत्वपूर्ण बात प्रभु जी ने सुनाई है। जिस मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है उसको अज्ञान, अन्यथा ज्ञान एवं अनेक दुःख रूप कर्मों से, पापों से मुक्ति मिलती है।
प्रभु प्रेमियों ! ज्ञान एक साधन है, साधन के माध्यम से हम अपने साध्य को प्राप्त करते हैं। साध्य प्राप्त होने पर साधन की आवश्यकता नहीं होती। प्रभु जी के द्वारा बताये गये ज्ञान के अनुसार यदि मनुष्य धर्म आचरण, साधना करता है तो उसे ईश्वर की प्राप्ति होती है अन्यथा नहीं।
जीव देवता की भक्ति एवं ज्ञान से कुछ सुखफल प्राप्त हो सकते परन्तु मुक्ति, मोक्ष, आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता। प्रभु जी का ज्ञान, मोक्ष, आनन्द यह सब नित्य है। ज्ञान में ऐसी शक्ति है जो जीवों को उनके कर्म बन्धनों से, अनादि अविद्या से, जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्त करा सकता है। हमें चाहिए की हम प्रभु जी द्वारा निरोपित वचनों को गुरुजनों से यथार्थ पूर्वक समझें अन्यथा अपने मन से अर्थ लगाने पर लाभ के एवज में हानि हो सकती है।
प्रभु प्रेमियों ! ज्ञान से मनुष्य को सार-असार समझ में आता है। इस संसार में सभी वस्तुएँ, पदार्थ, धन-सम्पत्ति सब नाशवान हैं, यह सब हमारे आत्म विनाश का कारण है, अनिष्ट का कारण है, इनसे प्रेम करना नासमझी है। ऐसी यथार्थ बात समझ आती है यही ज्ञान है। परन्तु इस प्रकार का ज्ञान हमें पूर्व जन्म में की गई भजन क्रिया से प्राप्त होता है।
ज्ञान प्राप्त होने पर उस ज्ञान के अनुसार आचरण न करने पर परमेश्वर उदास हो जाते हैं अतः परमेश्वर हमसे उदास न हों इसलिए ज्ञान पूर्वक आचरण हमें करना चाहिए, तभी ईश्वरीय ज्ञान मुक्तिदायक है अन्यथा नहीं।