विश्व शांति का आधार : अहिंसा :

विश्व शांति का आधार : अहिंसा :

 विश्व शांति का आधार : अहिंसा :



यह एक निर्विवाद सत्य है कि विश्व शांति का मूल आधार अहिंसा है। अहिंसा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। यह एक ऐसा भाव है जो मनुष्य के मन, वचन और कर्म तीनों से जुड़ा हुआ है। क्योंकि मनुष्य के द्वारा जो भी कर्म किए जाते हैं वे मनसा, वाचा, कर्मणा किए जाते हैं। यदि मनुष्य केवल किसी अन्य प्राणी का अनिष्ट या अहित करने की सोचता या चिन्तन करता है, किन्तु किसी कारणवश अपने उस भाव को कार्यरुप में परिणत नहीं कर पाता है तो भी वह हिंसा का भागी तो बन ही जाता है। 

इसी प्रकार वाणी द्वारा बोले गए अप्रिय, कटु, कठोर या मिथ्या वचन और शरीर के अंगों, हाथ पैर आदि द्वारा किया गया आघात प्रत्याघात प्रत्यक्षतः ही हिंसा की सीमा में आ जाता है। यदि मनुष्य इन तीनों विधियों में अपने आपको संयमित रखते हुए अनिष्ट चिन्तन, अप्रिय, कट, कठोर एवं मिथ्या सम्भाषण तथा दूसरों के लिए अनिष्ट कारक अपने शारीरिक कर्म से स्वयं को अलग करता है तो वह अहिंसक आचरण वाला अहिंसा का पालक होता

अहिंसा मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण है, जो उसके शुद्ध भावों का परिणाम है। मनुष्य के जो सात्विक गुण होते हैं, उनमें से अहिंसा भी एक है। जब तक उसके अन्तःकरण में सात्विक भावों का निवेश रहता है, तब तक उसके विचारों और आचरण में अहिंसा का भाव बना रहता है। यह भाव मनुष्य के अन्य गुणों को भी प्रभावित करता है। अहिंसा की विचार धारा वाला व्यक्ति अपने आचरण में भी उसके पालन का विशेष ध्यान रखता है।

प्रगतिशील कहे जाने वाले वर्तमान भौतिकवादी युग में आधुनिक भौतिकवाद में मनुष्य को इतना अंधा और स्वार्थी बना दिया है कि वह अपने स्वार्थति के लिए किसी भी निम्न स्तर पर जा सकता है। अपने स्वार्थ साधन के सम्मुख उसे दूसरे प्राणी के हिताहित की तनिक भी चिन्ता नहीं है। आज स्थिति यह है कि यदि कोई व्यक्ति परहित का कोई काम करता है तो उसमें भी स्वार्थ की सम्भावना को अवश्य देखता है। विरले हो ऐसे व्यक्ति होंगे जो नि:स्वार्थ भाव से परहित साधन करते हों। ऐसी स्थिति में मनुष्य के लिए उन क्षुद्र प्राणियों या जीव-जन्तुओं का कोई महत्व नहीं रह जाता है, जो पराधित या दूसरों की दया पर जीवित है।

आधुनिकता और आधुनिक प्रगतिशील वातावरण ने जीव हिंसा को व्यापक स्तर पर प्रोत्साहित किया है । जीव हिंसा की व्यापकता का अनुमान मात्र इसी से लगाया जा सकता है कि लोगों के द्वारा व्यापक रूप से की जा रही जीव हिंसा के परिणाम स्वरुप अनेक प्रियदर्शी वन्य जीव, जो गत कुछ वर्षों तक उपलब्ध थे, उनका या तो लोप हो गया है। या वे त्वरित रुप से ह्रास की और उन्मुख हैं। 

गत दिनों समाचार पत्रों में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार आधुनिक सौन्दर्य प्रसाधनों के लिए प्रतिवर्ष लगभग पांच करोड़ वन्य प्राणियों को मार दिया जाता है। सौन्दर्य, ग्लेमर और कला की रक्षा के लिए प्रतिवर्ष पांच करोड़ वन्य प्राणियों को बलि देना निर्दयता की पराकाष्ठा है, जिसे आधुनिकता, संस्कृति और आधुनिक सभ्यता का ही अंग माना जाता है। 

सुन्दर बालों वाले प्राणियों जैसे भालू, लोमड़ी, गिलहरी, भेड़िया, ऊदबिलाव आदि के वध के लिये विस्तृत योजना बनाई है। यह सब आधुनिक फैशन, चमक-दमक और बाह्य प्रदर्शन के लिये किया जा रहा है, जो अहिंसा की भावना के प्रतिकूल और अहिंसक समाज निर्माण में बाधक है। 

शाकाहार

आहार प्राणिमात्र के जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक है। आहार अन्य हिंस्र प्राणियों की भांति मनुष्य की भी एक दैनिक आवश्यकता है, क्योंकि आहार ही मनुष्य के शरीर का भरण-पोषण करता है। अत: आहार मानव शरीर के स्वास्थ्य के संवर्धन एवं रक्षा का मुख्य आधार हैं। यह एक निर्विवाद सत्य है कि कोई भी मनुष्य खाए बिना जी नहीं सकता और जब जी नहीं सकता, तब कुछ कर नहीं सकता। 

अत: कुछ करने के लिए जीना आवश्यक और जीने के लिए आहार ग्रहण करना आवश्यक है। अत: यह सर्व मान्य बात है कि जीवन निर्वाह के लिए मनुष्य को आहार की अपेक्षा है।

अब प्रश्न है कि हमारा आहार कैसा होना चाहिये? इस प्रश्न का आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से समाधानात्मक उत्तर यह है कि हमारा आहार सन्तुलित होना चाहिये ।

हम भारतीयों को इस बात पर गर्व है कि हमारी सौस्कृतिक परम्पराएं हमारी विरासत हैं। वे परम्पराए न केवल हमारे सामाजिक जीवन और देश के उत्कर्ष में योगदान करती हैं, अपितु मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन उत्कर्ष, शारीरिक एवं मानसिक विकास तथा पारिवारिक समुन्नति में भी सहायक हैं। उन्हीं परम्पराओं में हमें इस प्रश्न का समाधान मिलता है। कि हमारा आहार कैसा होना चाहिये? उत्तर है - हमारा आहार सात्विक होना चाहिये। 

सात्विक आहार शरीर को तो स्वस्थ रखता ही है, वह मस्तिष्क को अविकृत और मन को सन्तुलित रखता है। सबसे बड़ी बात यह है कि सात्विक आहार के मूल में अहिंसा का भाव निहित है जो सम्पूर्ण प्राणि जगत का समानता के आधार का निर्माण करता है। यह अनिवार्यता के सिद्धांत को प्रतिपादित करता है, जिसके अनुसार हमें वह भोजन लेना चाहिये जो जीवन धारण के लिए अनिवार्य है। जिसकी अनिवार्यता न हो वह नहीं लेना चाहिये । मात्र स्वाद की दृष्टि से जिह्वा की लोलपता के वशीभूत होकर ऐसा आहार नहीं होना चाहिये जो दूसरे प्राणियों को मार कर बनाया गया हो ।

आज आधुनिकता की होड़ में अपना संस्कृति, आचार, विचार सबको दकियानूसी कहने वाले इस झूठी धारणा के शिकार हो रहे हैं कि शाकाहारी भोजन से उचित मात्रा में प्रोटीन अथवा शक्तिवर्धक उचित तत्व प्राप्त नहीं होते। वस्तुतः यह मात्र भ्रान्ति है। आधुनिक शोधकर्ताओं व वैज्ञानिक को खोजों से यह साफ पता लगता कि शाकाहारी भोजन से न केवल उच्च कोटि के प्रोटीन प्राप्त होते हैं, अपितु अन्य आवश्यक पोषक तत्व विटामिन खनिज, कैलोरी आदि भी अधिक होते हैं। सोयाबीन व मूंगभली में मांस व अण्डै से अधिक प्रोटीन होता है। सामान्य दालों में भी प्रोटीन की मात्रा कम नहीं होती। गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का इत्यादि के साथ उचित मात्रा में दालों एवं हरी सब्जियों का सेवन किया जाय तो न केवल प्रोटीन की आवश्यकता पूर्ण होती है, 

अपितु अधिक संतुलित आहार प्राप्त होता है. जो शाकाहारी व्यक्ति को माँसाहारी की अपेक्षा अधिक स्वस्थ, सबल व दीर्घायु प्रदान करता है। मांस का तो अपना कोई स्वाद नहीं होता उसमें जो मसाले, चिकनाई आदि अनेकों पदार्थ मिलाए जाते हैं, उनका ही स्वाद होता है। जबकि शाकाहारी पदार्थों, फल, सब्जी, मेवे आदि में अपना अलग स्वाद होता है और बगैर किसी मसाले आदि के वे स्वाद से खाये जाते हैं।

अनेक शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि शाकाहारी अधिक शक्तिशाली, परिश्रमी, अधिक वजन उठा सकने वाले, शांत स्वभाव के ब खुशमिजाज होते हैं। जापान में किए गए अध्ययनों से यह पता चला है कि शाकाहारी न केवल स्वस्थ व निरोग रहते हैं, अपितु दीर्घजीवी भी होते हैं। उनकी वृद्धि भी अपेक्षाकृत तेज होती है । अतः यह कहना कि मांसाहार शाकाहार की तुलना में अधिक शक्तिवर्धक है-एक गलत धारणा है।

अतः हमारा लक्ष्य यह होना चाहिये कि संसार के अन्य प्राणियों को किसी प्रकार की हानि या उनके जीवन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाए बिना हम अपना जीवन निर्वाह करें। इसी में हमारा एवं समस्त प्राणियों का कल्याण है और यही विश्वशांति का आधार है।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । 

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित्, दुःख भाग् भवेत् ॥


Thank you

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