जैसी करनी वैसी भरनी
जीवन का कोई भरोसा नहीं इसलिए जीवन को अपनी आत्मा की दृष्टि से देखना चाहिए। जिसने सद्गुरु पाया है, सत्संग में जाकर वैसे आचरण किया है, वो ही परमात्मा का दर्शन कर सकता है। बिना सद्गुरु के आप परमात्मा को देख भी नहीं सकते। श्रीमद्भगवत गीता ही आत्मा और परमात्मा का मिलन है।
श्रीकृष्ण को माता-पिता सब कुछ तू ही है, कहने को कहते हैं अपने मतलब के लिए, बाद में भूल जाते हैं, ऐसी भक्ति भगवान श्रीकृष्ण जी को मंजूर नहीं है। भक्त कैसा होना चाहिए? जिनके पास प्रेम है, मित्रता है, अहंकार द्वेष नहीं है, जो सुख में भी सम में दुःख में सम है, कोई अपराध करे तो उसे क्षमा करते हैं जो माया मोह का त्याग करते हैं, सहनशील हैं, ऐसे भक्त श्रीकृष्ण को मेरे गोविन्द को प्रिय हैं। अपना मन शुद्ध करने के लिए हर समय श्रीकृष्ण भगवान का ही सुमिरन करो।
हम दुसरो कें प्रति जैसा बर्ताव करते हैं वैसा ही फल हमे मिलता हैं ।
एक कहानी है -
"करनी करे तब नहीं डरे, अब काहे को पछतावत है,
बीज बोये बबूल का, तो आम कहाँ से खावत है।"
एक महात्मा जी थे, वे नदी के किनारे एक कुटिया में रहते थे। हर रोज भिक्षा मांगते थे। भिक्षा मांगने के लिए पांच घर में जाते थे। लेकिन एक औरत ऐसी थी कि उसको उन महात्मा जी पर बहुत गुस्सा आता था। वो उनका द्वेष करती थी । कभी भिक्षा देती थी, तो कभी नहीं देती थी ।देती तो मन में गालिया देती। एक दिन उस औरत ने सोचा कि, महात्मा जी आयेंगे तो उनको सबक सिखायेंगे। उस औरत ने घर में लड्डू बनाये।
महात्मा जी के लिए चार लड्डू विष मिलाकर अलग बनाये। महात्मा जी भिक्षा मांगने के लिए रोज आते थे, चाहे वह औरत भिक्षा दे या ना दे। दूसरे दिन भिक्षा मांगने के लिए महात्मा जी आये। उस औरत ने महात्मा जी को वह चार लड्डू (विष मिलाए हुए) दिये, महात्मा जी वह लेकर अपनी कुटिया में गये, उन्होंने वह लड्डू रख दिये, थोड़ा आराम किया, लेकिन महात्मा जी लड्डू खाना भूल गये।
एक दिन शाम को बहुत जोर की बारिश आयी। उस औरत के दो लड़के थे वह काम करते थे, उनका आने-जाने का रास्ता महात्मा जी की कुटिया के पास से ही जाता था, बीच में नदी थी, बारिश के कारण नदी में पानी भर आया। उन लड़कों को जाने के लिए रास्ता नहीं था।
उन्होंने सोचा कि आज की रात महात्मा जी की कुटिया में रहेंगे तो उन्होंने महात्मा जी से पूछा कि बाबाजी नदी में बहुत पानी है, रास्ता बंद है इसी कारण हम आपकी कुटिया में रह सकते हैं क्या? महात्मा जी ने कहा-हाँ-हाँ क्यों नहीं, आराम से रहो सुबह जाओ तो दोनों भाई वहाँ रूक गये।
रात को उन दोनों को भूख लगी, अब क्या करे तो उन्होंने महात्मा जी को पूछा कि बाबाजी हमको भूख लगी है, कुछ खाने को मिलेगा क्या? महात्मा जी ने कहा बेटा मैं भिक्षा मांगकर खाता हूँ। लेकिन मेरे पास चार लड्डू हैं यह तुम खाओ। उन दोनों भाइयों ने दो-दो लड्डू खाए, पानी पिया और सो गये।
महात्मा जी को मालूम नहीं था कि इस लड्डू में विष है। महात्मा जी सुबह उठकर अपने ध्यान में बैठे थे, उन्होंने अपना पूजा पाठ किया, फिर भी वह लड़के सोये को हुए । महात्मा जी घबरा गये, उन्होंने गाँव वालों बुलाया और सब हकीकत बतायी, फिर पुलिस आयी। उन लड़कों की पूछताछ हुई। महात्मा जी से पूछा कि यह लड्डू किसने दिये? महात्मा जी ने उस औरत का घर दिखाया। उस औरत से उन लड़कों की पहचान की तो उसने कहा यह मेरे बेटे हैं। तो दोनों की लाश उसके सामने रखी। वह औरत बहुत रो पड़ी, पछतावा करते बैठी कि मेरे हाथ से कैसा अनर्थ हो गया।
फिर पुलिस उस औरत को ले गयी, महात्मा जी बच गये। कहने का तात्पर्य यह है कि दूसरों के लिए गढ्डा खोदेंगे तो खुद ही उसमें गिरेंगे। दूसरों के लिए कभी बुरा नहीं सोचना क्योंकि जैसी करनी वैसी भरनी आने में देर नहीं लगती। अपने सुख के लिए दूसरों को सताना बहुत बुरी बात है।
किसी को मारने का किसी को भी हक नहीं है, कोई मरता नहीं है, आत्मा अमर है। भगवान कहते तुम मरने वाले नहीं हो, तुम मेरा अंश हो । शरीर हर क्षण मरता है।
भगवान श्रीकृष्ण की वाणी को जो मानते हैं वे ही भक्त हैं। कलयुग में जो कोई शुभ संकल्प करता है उसे अच्छा फल मिलता है। सब कुछ त्याग करो और मोक्ष की प्राप्ति करो यही उचित है।
कभी कोई सतगुरु मिले तो संसार मत मांगना,
मुक्ति मांगना