बच्चे झूठ क्यों बोलते हैं ?
मां-बाप एवं शिक्षकों द्वारा जिन बच्चों की उचित मनोकामनाओं को पूरा नहीं किया जाता व बच्चे अपनी अतृप्त मनोकामनाओं की पूर्ति कल्पना-जगत् में किया करते हैं । इस कल्पना-जगत को झूठ के सहारे वास्तविक जगत सिद्ध करने में ऐसे बच्चों को बहुत आनन्द आता है। सरों के सामने उस कल्पना को वास्तविक सिद्ध करने से कल्पना अधिक सरस हो उठती है। बच्चे को ऐसा महसूस होता है कि उसकी वास्तव में सत्य होकर प्रकट हुई है।
मां-बाप अथवा शिक्षक के रुप में जिन्हें बच्चों के संपर्क में आना पड़ता हैं, वे सभी जानते हैं कि बच्चे प्रायः झूठ बोलते हैं । झूठ बोलने की इस प्रवृत्ति को हटाने के लिए मां-बाप या शिक्षक
निम्नलिखित साधनों का प्रयोग किया करते है। जैसे १ बच्चे द्वारा बोले हुए झूठ को पुलिस की तरह हर जगह, हर समय बच्चे को अपमानित करने की दृष्टि से सिद्ध करते हैं ।
२. न्यायाधीश बनकर 'दंड' का ऐलान करते हैं।
३. अपमानित करते हैं, पीटते हैं, डाटते हैं।
४. बार-2 बच्चे से कहलाते हैं, "में झूठ नहीं बोलूंगा।" ५ बार-बार झूठ बोलने के अपराध में जबरदस्ती माफी मंगवाते
प्रायः इस प्रकार के सभी उपाय जो बच्चे को जबरदस्ती सच बोलना सिखाने से संबंध रखते हैं, बच्चों के लिए अकल्याणकारी, उनके विकास के लिए प्रतिरोधक एवं अवैज्ञानिक हैं।
झूठ बोलना एक मानसिक रोग है, जब तक लोग इसके मूलभूत कारणों पर विचार नहीं करेंगे, तब तक इस रोग का उपचार नहीं दिया जा सकता ।
बच्चा झूठ इसलिए बोलता है कि बच्चे का शरीर छोटा है। हमारे मुकाबिले में उसकी शारीरिक शक्ति कितनी कम है।
जब उस नन्हें बच्चे के आसपास घर अथवा स्कुल में ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी जाती है जिनमें वह अपने को 'असुरक्षित' अनुभव करता है, उस स्थिति में बच्चा अपनी रक्षा के लिए झूठ बोलता है।
हमारी विचारधारा, हमारा रहन-सहन और हमारी दिनचर्या बाल जीवन से भिन्न है। किन्तु हम लंबे-चौड़े 'देव' और वे 'नन्हें-नन्हें जीव' एक घर में एक साथ रहते हैं। इस साथ में जाने कितने अवसर आते हैं, जब हम बच्चे के व्यक्तित्व को तुच्छ मानकर उसकी उपेक्षा एवं अपमान कर बैठते हैं। उन अवसरों पर बच्चे अपने व्यक्तित्व की रक्षा के लिए झूठ बोलते हैं ?
हम दूसरों के सामने बच्चों की कमजोरियों को प्रकट करते हैं, उनके दोष निकालते हैं। बच्चे उन कमजोरियों एवं दोषों को छिपाकर अपनी 'आत्म प्रतिष्ठा' कायम रखने के लिए झूठ बोलते हैं।
मताग्रही मां-बाप एवं शिक्षक के संपर्क में रहने वाले बच्चे वास्तव में उन बड़ों द्वारा थोपे हुए आग्रहों को स्वीकार नहीं करते, किंतु उन बड़ों को खुश करने का अभिनय करते हैं। इस अभिनय को सफल बनाने के लिए बच्चे झूठ बोलते हैं।
जो बच्चे अपनी शारीरिक, मानसिक एवं पारिवारिक परिस्थितियों के कारण 'हीनता की भावना' से दु:खी रहते हैं, अपने इस को
'कल्पना लोक' में उड़ाकर भूल जना चाहते हैं। उस 'कल्पना लोक' को वास्तविक लोक सिद्ध करने के लिए बच्चे झूठ बोलते हैं ।
मां-बाप एवं शिक्षकों द्वारा जिन बच्चों की उचित मनोकामनाओं को पूरा नहीं किया जाता, वे बच्चे अपनी अतृप्त मनोकामनाओं की पूर्ति कल्पना-जगत में किया करते हैं। इस कल्पना जगत को झूठ के सहारे वास्तविक जगत सिद्ध करने में ऐसे बच्चों को बहुत आनंद आता है। दूसरों के सामने उस कल्पना को वास्तविक सिद्ध करने में कल्पना अधिक सरस हो उठती है। बच्चे को ऐ महसूस होता है कि उसकी कल्पना वास्तव में सत्य होकर प्रकट हुई है।
यदि इस कल्पना को कोई च न माने, तो बच्चे को हार्दिक दुःख होता है, बच्चा एकदम उदास हो जाता है ।
७ बर्ष की लड़की थी। उसे मिठाइयां बहुत पसंद थी। जब बहुत दिनों तक उसे मिठाईया खाने को न मिली तो उसने कल्पना की कि उसके पिता जी विदेश से आ गये हैं, साथ में बहुत प्रकार की मिठाईयां लाये हैं।
इस कल्पना को अधिक सरस और वास्तविक सिद्ध करने के लिए वह पिताजी के आने का संवाद सब जगह जाकर कह आई। मेरे पास आई, सारी मिठाइयों के नाम भी सुना दिए, पिताजी से मिलने के लिए छुट्टी मांग कर अपने घर भी चली गई ।
शाम को मैं लड़की के घर उसके पिता जी से मिलने गया। वस्तु स्थिति प्रकट हो गई। घर वाले बच्चो को 'झूठी' कहकर लांचित कर रहे थे। में बच्ची को लाँछित करने के स्थान पर खूब मिठाइयां खिलाने की राय देकर वापस आ गया ।
बच्चा प्यार का भूखा है, प्यार का प्यासा है। प्यार के अभाव में बच्चे का जीवन स्त्रीत रुक जाता है, सूख जाता है। इस प्यार के अभाव में बच्चा" की तरह मुरझा जाता है। सूख जाता है।
हम को बताया जाता है कि जो बच्चा चोरी करता है, झूठ बोलता करता है, उसे कोई प्यार नहीं करता। चूंकि बच्चे को अपनी विषम परिस्थितियों में झूठ बोलना ही पड़ता है, इसलिए बच्चा अपने अवगुणों को छिपाकर अपने बड़ों के समक्ष अच्छा सदगुणी सिद्ध होने के लिए झूठ बोलता है।
जो बच्चे वंशानुक्रम के कारण जन्म से ही अहंवादी अथवा दंभी होते है, वे भी प्राय: अन्य साथी बच्चों के सामने लपने वंश एवं कुटुम्ब की उच्चता को सिद्ध करणे, अपने अहं को कायम रखने के लिए झूठ बोलते हैं।
जिन बच्चों को कड़े अनुशासन में रहना पड़ता है, वे प्रायः उस कड़े अनुशासन से छुटकारा पाने के लिए झूठ बोलते हैं। यदि एक बार भी इस झूठ बोलने से उन्हें अनुशासन तोड़ने में मदद मिल गई, तो प्राय ऐसे बच्चे झूठ बोलने के अभ्यासी हो जाते हैं।
इस कट सत्य को स्वीकार करने से कौन इनकार करेगा कि आज के इस संघर्ष-युग में बनिया व्यापार के लिए, वकील अपनी वकालत के लिए, शिक्षक अपना वेतन बढ़ाने के लिए, पुलिस अपनी झूठा कार-गुजारियों को सच साबित करने के लिए, बड़ी-2 संस्थाएं अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए प्रायः झूठ बोलते हैं ?
आज के बच्चों को भी कहीं न कहीं इन्हीं परिस्थितियों अथवा इसी प्रकार के झूठे वातावरण में रहना पड़ रहा है। तब इन बच्चों का झूठ बोलना ही स्वभाविक है।
यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे इस 'संघर्ष-युग' में भी सच बोले, झूठ बोलना छोड़ दें तो :
१. बच्चे की प्रतिष्ठा करें। उसके आत्म-सम्मान की रक्षा करें।
२. उसके 'व्यक्तित्व' को स्वाभाविक तरीके से विकास पाने दें। अपने व्यक्तित्व से दबाकर उसके मन में 'अरक्षा' का भाव पैदा न होने दें।
३. बच्चों को यथाशक्ति होनता का अनुभव न होने दें।
४. बच्चों को समझदारी के साथ खूब प्यार दें। जहां उसे प्यार न मिले, ऐसे वातावरण से दूर रखें ।
५. वंशानुक्रम के कारण रहने वाले दंभ एवं अहंभाव को, बाल मनोविज्ञान के आधारभूत सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, बच्चे के दिमाग से दूर कर दें ।
६. बच्चों पर से कड़ा अनुशासन हटा दें ताकि वे आजादी से साँस ले सकें।
७. हम स्वयं अपनी वकालत, व्यापार या अन्य किसी पेशे के संबंध में झूठ का सहारा न लें। कम-से-कम बच्चों के सामने तो हगिज नहीं।
कल्पना- प्रिय' बच्चों की इस प्रवृत्ति को किसी कला की और मोड़ देना चाहिए