वर्तमान समय का सदुपयोग करो
उद्धरेदात्मात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव हयात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।
अर्थात् स्वयं अपने द्वारा अपना भवसागर से उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डालो क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना बन्धु है और आप ही अपना शत्रु है।
मन यदि संसार में उलझता है तो अपना विनाश करता है। मन यदि परमेश्वर भक्ति में लगता है तो अपना एवं अपने सम्पर्क आनेवालों का बेड़ा पार करता है इसलिये साधक को खूब संभल सँभलकर जीवन बिताना चाहिए। समय बड़ा मूल्यवान है। बीते हुए क्षण फिर वापस आते। निकला हुआ तीर फिर वापस नहीं आता। निकला हुआ शब्द वापस नहीं आता।
जब मनुष्य नदी में एक बार स्नान करता है तो दोबारा नहीं। दोबारा गोता लगाते हो तब तक तो वह पानी कहीं का कहीं पहुँच जाता है। ऐसे ही वर्तमान काल का तुम एक ही उपयोग कर सकते हो । यदि वर्तमान काल भूतकाल बन गया तो वह कभी वापस नहीं लौटेगा। कौन क्या करता है? इस झंझट में मत पड़ो। मेरी जात क्या है? उसकी जात क्या है? मेरा गाँव कौन सा है? उसका गाँव कौन सा है।...अरे भैय्या! सब इसी पृथ्वी पर है और एक ही आकाश के नीचे हैं। छोड़ दो मेरे गांव तेरे गांव पूछने के झंझट को ।
हम यात्रा में जाते हैं तब लोग पूछते हैं- तुम्हारा कौन सा गाँव? तुम किधर से आये हो? अरे भैय्या हमारा गांव हमारा नाम यह भाषा समझने वाला कोई मिलता ही नहीं है। बड़े खेद की है कि, सब लोग इस मुर्दे की पूछताछ करते हैं कि कहाँ से आये हो? अर्थात् जो मिट्टी से पैदा हुआ, मिट्टी में घूम रहा है और मिट्टी से मिलने के लिए ही बढ़ रहा है उसी का नाम उसी का गाँव उसी का पता पूछकर अपना भी समय गँवाते हैं और साधक का समय भी खराब कर देते हैं। अपना नाम अपना गाँव सच पूछो तो एक बार भी आपने ठीक से जान लिया तो बेड़ा पार हो जायेगा।
किसी विद्वान ने कहा है -
तम देश से आया जोगी, जीव हमारा नाम ।
श्रीकृष्ण हमारे माता पिता, मोक्ष हमारा धाम ।।
कितना सुन्दर पता है यह समझने की आवश्यकता है। जगद्गुरू श्रीकृष्ण भगवान् ने अर्जुन को कई गाँव दिखाये। सांख्य के द्वारा गाँव दिखाया, योग के द्वारा गाँव दिखाया, निष्काम कर्म के द्वारा गांव दिखाया लेकिन अर्जुन अपने घर में नहीं जा रहा था। भगवान् ने तब कहा हे अर्जुन! अब तेरी मर्जी....‘यथेच्छसि तथा कुरू!’ अर्जुन कहता है कि नहीं प्रभु! ऐसा न करो। मेरी बुद्धि कोई निर्णय नहीं ले सकती। मेरी बुद्धि अपने गाँव में प्रवेश नहीं कर पाती तब श्री कृष्ण भगवान् कहते हैं- ‘तो फिर छोड़ दे अपनी अक्ल होशियारी का भरोसा, छोड़ दे अपनी ऐहिक बातों को छोड़ दे तेरे मेरे का और जीने मरने का ख्याल । छोड़ दे करम-धरम की झंझट को। आ जा मेरी शरण में डूब जा मेरी गहरी शान्ति में पता चल जायेगा कि तेरा गाँव कहा है?’ सज्जनो! हमारे ऐसे दिन कब आयेंगे कि, हमें भी अपने गाँव और घर की प्यास पैदा हो जाये ?
चकवी चकवा से कहती है -
साँस पड़ी दिन आथम्या, दीना चकवी रोय ।
चलो चकवा वहाँ जाइये, जहाँ दिवस रैन न होय ।
चकवा कहता है
रैन की बिछड़ी चकवी, आन मिले प्रभात ।
सत्य का बिछड़ी मानरवा, दिवस मिले न ही रात । हे चिड़िया! संध्या हुई है। तू मुझसे बिछुड़ जायेगी। दूसरे घोंसले में चली जायेगी लेकिन प्रभात को मिल जायेगी। एक बात सुन-सत्य से मनुष्य बिछुड़ गया, मनुष्य जन्म पाकर भी उस सत्य स्वरूप परमेश्वर को नहीं जाना तो ऐसा मनुष्य फिर सत्य से न शाम को मिलेगा, न रात को मिलेगा, न प्रभात को मिलेगा। आचार्य चाणक्य नामक विद्वान हुए उनके संदर्भ में एक कथा पढ़ने में आती है।
एक बार चाणक्य के घर सामुद्रिक लक्षण देखने वाले पंडितजी आये। उस समय आर्य चाणक्य बाल्यावस्था में थें पंडितजी ने बच्चे पर निगाह डाली ओर धन्यता व्यक्त करते हुए चाणक्य के पिता से बोले आपके घर एक महान बालक का जन्म हुआ है। सामुद्रिक विद्या के बल से मैं कहता हूँ कि आपका यह बेटा बड़ा राजा बनेगा। मेरी विद्या पर मुझे विश्वास है। उस पण्डितजी ने सोचा कि यह समाचार सुनकर आचार्य चाणक्य के पिता बड़े सन्तुष्ट हो जायेंगे। पिता प्रसन्न नहीं हुए, दुखी हो गये कि "अरे मेरा बेटा राजा बनेगा। मैंने क्या पाप किया है?"
पिता ने पण्डित जी से पूछा "पण्डित जी कौन से लक्षण से बेटा राजा बनेगा? पण्डित जी बोले-"इसका अमुक दांत है न, वह लम्बा है, यह दांत बताता है कि वह राजा बनकर ही रहेगा।"
पिता चाणक्य को कमरे में ले गये और उसका वह लम्बा दांत कानस से घिस डाला और पण्डित जी से कहा पण्डित जी। बेटा राजा बनेगा तो इन्द्रियों के जगत में जियेगा, भोग में, अहंकार में पुण्य का नाश करेगा। पुण्यों के बल से राजा बनेगा और भोगों से पुण्य खत्म करके नर्क का भागी बनेगा। तपेश्वरी राजेश्वरी राजेश्वरी भोगेश्वरी भोगेश्वरी नरकेश्वरी । मेरे घर में आने के बाद इसको नर्क में जाना पड़े तो धिक्कार है मेरे को बाप बनने में धिक्कार है इसकी मां को माँ बनने में। इसलिए पण्डित जी मैंने इसका दांत घिस डाला। अब बताओ, क्या होगा? पण्डित जी ने कहा- अब राजा तो नहीं बनेगा, राजाओं का गुरू बनेगा।
देखो सज्जनों! अपना बेटा विदेश में जाता है तो माँ-बाप कितने खुश हो जाते हैं, अखबारों में फोटो छपवाते हैं। फिर चाहे वह विदेश में कौन सी भी नौकरी करने लग जाये। भोगियों के देश में बेटा जाता है तो माँ-बाप छाती फुलाकर गौरव का अनुभव करते हैं। परन्तु साधुओं सन्तों के पास बेटा जाता है तो रोते हैं मेरा बेटा चला गया। दुनिया ने क्या उल्टा रंग लिया है।
किसी का बालक साधु बनता है तो आप उसके आगे नतमस्तक हो जाते है, आदर करते हैं, उसका चरण स्पर्श करते है। लेकिन आपका बालक साधु बनता है तो आप रोते हो? आप कितने चतुर लोग ऐसा क्यों होता है? क्योंकि हमारा मन इन्द्रियों के पक्ष में है और पूरा समाज इन्द्रीयों के वश वाला है। इन्द्रिय जगत से उपर उठने वाले तो कोई कोई बिरले होते आप क्यों रोते हैं? क्योंकि अन्तःकरण की छोटी स्थिति वाले लोगों के बीच आप रहते हैं। अहंकार का पोषण जहाँ होता है, वहाँ आप खुश होते है और जहाँ आपका अहंकार मिटना चाहता है वहाँ आप नाराज होते हैं। अहंकार मिटने के लिए बुद्धि योग की आवश्यकता है। बुद्धियोग कब मिलेगा?
श्री कृष्ण भगवान् कहते हैं
तेषां सतत युक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्तिते ।।
अर्थात् निरन्तर भगवान् के ध्यान में लगे हुए प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को भगवान् तत्वज्ञान रूपी योग देते हैं। जिससे साधक परमेश्वर प्राप्ति कर सकता है। जब प्रीतिपूर्वक भगवान् को भजोगे तब आप और आपका परिवार सदैव प्रसन्नता प्राप्त करेगा।
पावन तेरा कुल हुआ जननी कोख कृतार्थ ।
नाम अमर तेरा हुआ पूर्ण चार पुरुषार्थ ।।
घर में मेहमानों की अतिशय चहल-पहल के कारण परेशान हुए एक आदमी ने उससे मुक्त होने का एक अच्छा उपाय ढूँढ निकाला। वह बाजार से एक तोता खरीद कर ले आया और उस तोते को " जल्दी करो देर हो रही है।" यह वाक्य बोलना उसे सिखा देता है। बस, फिर क्या था, जब भी घर में कोई मेहमान आता तोते को पिंजरे में से निकाल कर मेहमान के कमरे में छोड़ दिया जाता। 'जल्दी करो देर हो रही है' यह एक ही वाक्य तोता बोलता रहा समझदार मेहमान शीघ्र ही घर से चले जाते। तोते को घर लाने का प्रयोजन सफल हो गया। धीरे-धीरे मेहमानों ने उस घर में आना कम कर दिया आदमी खुश ।
एक दिन की बात है उस तोते पालने वाले आदमी को भयंकर रूप से हार्ट अटैक आया। डॉक्टर के आने से पहले ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये। आसपास के परिचित लोग उसके घर पर इकट्ठे हो गये। उसकी शमशान यात्रा कब निकले इस विषय पर मृतक के पुत्र का परिचितों के साथ विचार विमर्श चल रहा था और उसी समय वह तोता उड़कर पुत्र के कंधे पर आ बैठा और जोर जोर से बोलने लगा ‘जल्दी करो देर हो रही है।'
देखो! सज्जनों यही संसार की नग्न वास्तविकता है। बासी अखबार को सम्भाल कर रखने को तैयार है क्योंकि वह रद्दी के काम आयेगा। फटे हुए दूध को संभालकर रखने के लिए गृहिणी तैयार है क्योंकि ‘पनीर’ बनाने के काम आयेगा। अलमारी में पुराने कपड़ों का संग्रह करने के लिए महिलाएँ तैयार हैं, क्योंकि उससे बरतन खरीद लेंगे।
किन्तु जिस देह के दर्शन से स्वजन मुग्ध हो जाते थे उसी देह से जब आत्मा निकल गयी तो उस देह को पल के लिए भी उस घर में रखने को स्वजन तैयार नहीं होते। शीघ्रातिशीघ्र उसका अंतिम संस्कार कर देने को तत्पर बन जाते हैं।
याद रखना, इसका कारण है सागर और शमशान इन दोनों का प्रतिनिधित्व करने वाला लोभ । लोभ से इस मानव जीवन की ऐसी विडंम्बना? वह कभी भी तृप्त नहीं होती। इसलिए इस नशवर जगत की सत्यता को जानकर शाश्वत जगत का सच्चा पता जानकर क्यों नहीं हम आपना जीवन आनन्दमय करें?
सज्जनों, अब तक मानव ने तो देह संबंधित पता तो जान लिया। अब हमें जीव का सच्चा पता जानकर वर्तमान समय का सदुपयोग करना चाहिए। धन्यवाद ।