चिंता चिता समायुक्ता, बिंदुमात्रं विशेषतः।
सजीवं दहते चिंता, निर्जीवं दहते चिता ॥
अर्थात :- "चिता सिर्फ मरे हुए आदमी को जलाती है, जबकि
चिंता(tension) एक जीवित आदमी को जलाती है"।
चिन्तासमं नास्ति शरीरशोषणं। चिंता करनें सें शरीर शुष्क हो जाता हैं। इसलिए चिंता छोडकर हर काम में हमेशा उत्साहीत रहें ।
उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम् ।
सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्
॥
उत्साह रखने वाला व्यक्ति बहुत मजबूत होता है। क्योंकि उत्साह से बड़ी कोई ताकत नहीं है। उत्साही व्यक्ति के लिए इस दुनिया में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
चिंता(tension) कैंसर से
भी ज्यादा गंभीर बीमारी है। इससे यह संकेत मिलता है। हाल ही में, जीवन बीमा कंपनी ने पाया कि पांच चिंतित रोगियों में से चार वास्तविक
बीमारी के बजाय चिंता से ग्रस्त हैं। एक अस्पताल में,
रोगियो की मानसिक स्थीती की जाच पडताल करनेवाली टीम नें कहा की वहा के 35% रोगी चिंताग्रस्त थे । उस चिंता(tension)
से का दिल की धड़कन, रक्त परिसंचरण, विभिन्न ग्रंथियों से स्राव और समग्र शारीरतंत्र पर
प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
चूंकि चिंता(tension) मन की एक अवस्था(Stage) है, इसलिए इसे दूर करने के लिए बाहरी परिस्थितियों के बजाय अपने दृष्टिकोण और सोच(Thinking) को बदलना होगा। अगर चिंता(tension) का तार्किक विश्लेषण किया जाय तो उसका कोई अस्तित्व नहीं रहता है। सबसे बड़ी चिंता(tension) अज्ञानता का भय है। इसलिए पहले यह तय कर लें कि आपका दुश्मन कौन है। तभी उस पर हमला किया जा सकता है। कुछ लोग छोटी-छोटी बातों से नाराज हो जाते हैं। इन चिंतित लोगों का रवैया(attitude) हमेशा नकारात्मक(Negative) और निराशावादी(pessimistic) होता है। ऐसे में वे दिन-रात परेशान(Restless) रहते हैं।
एक विचारवंत ने अपनी स्वयं की चिंता(tension)
का विश्लेषण करके उसकी वर्गीकरण (Classification) किया है।
१. बीमारी और रोग होने की चिंता 20 प्रतिशत
२. ऐसी दुर्घटनाएं हैं जो कभी नहीं होतीं। ऐसी संभावित
दुर्घटना की चिंता 40 प्रतिशत ।
३. 10 प्रतिशत उन लोगों की चिंता करते हैं जिनके पास वास्तव
में समर्थन है। जब हम परवाह का पहाड़ खोदते है तो उसमें से चूहे ही निकलते हैं।
४. अतीत(Past) में हुई उन बातोपर सोचते रहना
जिसे हम बदल नहीं सकते। उन की चिंता 30
प्रतिशत।
एक हास्यकथा लेखक(humorist) ने लिखा हैं कि चिंता को विभाजित करके चिंता कैसे मौजूद नहीं रहती है। उनके तर्क का क्रम यह था कि चिंता हमेशा दो
चीजें होती है। या तो आप स्वस्थ हैं, या आप बीमार हैं। अगर
आप स्वस्थ रहते हैं तो चिंता की कोई बात नहीं है। यदि आप बीमार हो जाते हैं,
तो दो चीजें संभव हैं। आप ठीक हो जाओगे या आप मर जाओगे। ठीक हो जाओगे तो सही है। परंतु अगर मृत्यु आएगी तो या तो स्वर्ग में
जाओगे या नर्क में जाओगे। अगर आप स्वर्ग में जाते हैं तो आपको कोई चिंता नहीं है। यदि आप नरक में जाओगे तो वहाँ
तुम्हें इतने मित्र मिलेंगे कि तुम्हारे पास चिंता करने का समय नहीं होगा।
ऊपर लिखी बात चुटकुले(Jokes) समान लगती हैं । पर बहुत बड़ी बात है। हम खुद हमारी चिंता का निर्माण करते हैं । हमारे अधिकांश तर्क(logic) निराधार(baseless) होते हैं। जो चिंता सच में होती हैं उसका निराकरण करना संभव हैं। कभी कभी तो हम इस बात को पहाड(mountain) जैसा बनाते हैं ।
विनोद
:- एक अविवाहीत व्यक्ती स्कुल कें हेडमास्टर के पास गया और बोला । अगर आप मेरे
बच्चे को स्कुल में प्रवेश देंगे तो मैं विवाह करता हुं। इतनी दुर की सोचनेवाले
लोग चिंता की अग्नि में जलते रहतें हैं।
चिंता से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिको ने कई सुझाव दीए हैं।
1. रचनात्मक(creative)
दृष्टिकोण अपनाएं :- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।(गीता) कर्म
करो लेकिन कर्म के फल की आशा मत करो । यह मत सोचो कि दूसरे लोग मनोवैज्ञानिक
दृष्टिकोण से क्या कहेंगे । श्रीकृष्ण भगवान ने भी अर्जुन सें यहीं कहां
हैं। ते सिर्फ कर्म करनें का अधिकार हैं। फल कि चिंता तु मत कर। अच्छे कर्मोका फल
अच्छा ही मिलेगा ।
2. एक समय में एक ही चीज़ पर काम करें :- हमारी अधिकांश चिंताएँ अपेक्षाओं(expectations) से निर्मित होती हैं। ‘ये भी करना हैं। वो भी करना हैं।’ इससे हमारा एक भी काम सहीं नही होता और हम चिंता की स्थिति मे चले जाते है। इसलिए जरूरी काम पर ही ध्यान दें। कुछ लोग एक साथ कई चीजों को संभाल लेते हैं। कल के काम की योजना(Plan) आज ही बना लीजिए लेकिन कल तक इंतजार करना सीखिए। अन्यथा, इस से समय(time) और ऊर्जा(energy) दोनो की बर्बादी है। अगर हम किसी काम करते हैं और उसी समय मोबाइल की घंटी बज रही हो, हम उसे थोड़ी देर के लिए अनदेखा कर देते हैं। मन को भी कुछ ऐसे ही समझाओ। मन और शरीर को आराम देने के लिए चिंता सें मुक्त रहना बहुत जरुरी है।
3. दूसरों को मौका दें :- चिंतित लोग सोचते हैं कि सब उनके प्रतिस्पर्धी(competitor) है। और वो इसे अहंकार(Ego) की दृष्टि से सोचते हैं। मूवी का टिकट न मिलना, बस में सीट न मिलना, ट्रॅफिक में फसना, ऑफीस में दे होना, इतनी छोटी-छोटी बातों में भी अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं। और अपना घुस्सा(irritancy) दुसरो पर निकालते हैं। इतलिए थोड़ा धैर्य(patience) रखना सीखना बहुत जरूरी है। अपने सिद्धांतों(fundamental principle) को बनाए रखते हुए समाज(Society) के साथ समझौता किया जा सकता है।
4. क्रोध(Anger) से बचें :- आज के काम को कल पर टाल देना हमेशा बुरा होता है। लेकिन क्रोध के मामले में यह अच्छा है। "जब आप क्रोधित हों, तो तुरंत निर्णय न लें, इसे थोड़ी देर के लिए जाने दें। आत्मनिरीक्षण क्रोध की तीव्रता को कम करता है।" इसलिए हमेशा के लिए दूसरों के दोषों को इंगित(target) करने के बजाय, उनकी खूबियों(Features) को खोजें और उनकी प्रशंसा करें। यह आपको और लोगो को दोनों को संतुष्ट(Satisfied) करेगा ।
5. अपने खाली समय(time) को अच्छे से व्यतीत(Spent) करें :- "खाली दिमाग शैतान का घर होता है।" इसलिए खाली न बैठ के कुछ ना कुछ करते रहे। किताबें पढे। या घरवालो से बाते करें । उनके साथ समय बिताए। घर में छोटे बच्चे हो तो उनके साथ खेले । अपने विचार कुछ लिखे कि आप आज किन लोगो सें मिलें । उनकी कौनसी बाते आपको अच्छी लगी। उन में आपको क्या क्या खुबीयां नजर आयीं ये सब लिखे । इस से आप बेहतर महसुस करेंगें।
6. संतुलन(Balance) बनाए रखे :- बहुत से लोगों को लगता है कि उनकी उपेक्षा की जा रही है। इसलिए वे अकेले रहना पसंद करते जीते हैं। अकेलापन ये कोई चिंता इलाज नहीं है। अपनी योग्यता और सीमाओं को परखकरही किसी से उम्मीद (expectation) करें। हम घटनाओं को नहीं बदल सकते, लेकिन हम दृष्टिकोण बदल सकते हैं। और खुद को सकारात्मक(Positive) विचार करके बदल सकते हैं।
7. मन में जो हैं वो बाहर प्रकट(evident) करे :- जब आपको किसी बात से मन में पिडा(दर्द) हो रहीं हो तो उसे दबाए मत । इस सें आपका निराशा(frustration) बढेगी। अपने डर या चिंताओं को किसी प्रिय, समझदार, विचारशील और भरोसेमंद व्यक्ति के सामने व्यक्त करें। वो आपके तनाव(tension) को दूर करेगा और कुछ मार्गदर्शन(Guidance) प्रदान करेगा। "रुको और धीरज रखो" के बजाय, अपना ध्यान थोडी देर के लिए दूसरी तरफ मोड़ो और खुद को किसी दुसरे काम में झोक दो । काम में बदलाव करना इसी का मतलब आराम है। आराम का मतलब है मन की शांति।
जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी को चिंता, दुःख, tension का अनुभव करना पड़ता है। हम इन बातो सें भाग नहीं सकते । और यह आवश्यक भी नहीं है। उनका प्रतिकार करना और उन पें विजय(victory) प्राप्त करना यहीं उचित हैं । याद रखे चिंता आपका सिर्फ शोषणही नहीं करती आपके मन का मालिक बनकर आपको खा जाती हैं। इसलिए बेफिक्र रहके ही चिंता डायन को हरा सकते है।
एक सच्चा सच
मीठा बोलके सींपती दिखावा करने वाला व्यक्ति कभी परोपकारी नहीं
होता। नमक जैसा खारा व करेला जैसी कडवा ज्ञान देने वाला ही
सच्चा मित्र होता है।
इतिहास गवाह है कि अभी तक कीड़े "नमक" में नहीं गिरे हैं, लेकिन "मिठाई" कीड़ों के साथ बीमारी को भी आमंत्रित करती है।
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* हमारे घर में मंदिर हैं इसकी अपेक्षा हम ईश्वर के दिये हुयें घर में रहते हैं यह भावना होनी चाहिए।
* भगवान आपको कुछ दे इसलिए मंदिर मत जाओ,
बल्कि भगवान ने आपको बहुत कुछ दिया हैं । इस कृतज्ञता से मंदिर जाओ।