जीव की अधमती का कार्य mahanubhav panth dnyansarita

जीव की अधमती का कार्य mahanubhav panth dnyansarita

 जीव की अधमती का कार्य mahanubhav panth dnyansarita 



जे कखाइये कुवेसनी : वीरक्तांचे विपरीत वाहाति मनीं

तयाचा बैसलया एकासनी अदृष्ट दुरावे ।। 

जिन व्यक्तियों के मन में करवाय हो (दूसरों को देख कर जलने वाले) तथा दुर्व्यसन में फंसे हो और विरक्त पुरुषों के प्रति विपरीत भाव रखते हों ऐसे मनुष्यों के साथ एकासन पर बैठने से परमात्मा साधक से दूर हो जाते हैं अर्थात् परमात्मा प्राप्त नहीं होते।


जे कुसंगी कर्मजड : वानावेयालागि करीती बडबड

तयासी करीतां संवाद अंतरे गुढ : ब्रह्मवीद्या ।। 

जो व्यक्ति कुकर्मियों की संगती में लगा हो तथा कर्म ही तारक है इस प्रकार समझ कर प्राप्त विधियों का उलंघन करके कर्म करता हो तथा अपनी स्तुति के लिए बडबड करता हो यानि पात्र-अपात्र न देखकर ज्ञानचर्चा करता हो ऐसे व्यक्तियों के साथ धर्मवार्ता, ज्ञानचर्चा करने से ब्रह्मविद्या का रहस्य समाप्त हो जाता है।

जेहीं धर्माची सांडौनि वाट अन्यथा ज्ञानें भरीलें पोट

तयां प्रति बोलीलयां आपणयां नीपट : धर्महानि होइल ।। 

जिन व्यक्तियों ने धर्म का मार्ग छोड़ दिया या जिनका अन्त:करण अन्यथा ज्ञान से भरा है ऐसे व्यक्तियों को ज्ञान बतलाने से पुरुष धर्म से गिर जाता है। 


आपण सलाग ठाय सेविती

आणि नीलागातें आचरों नेणे म्हणती:

तयाचि देवासि एइल खंती :

धर्मनष्ट म्हणौनि ४५

जो व्यक्ति आचार भ्रष्ट लोगों की संगती में रहता हो और विरक्त पुरुषों को कहता हो कि ये आचार करना नहीं जानते ऐसे धर्म नष्ट व्यक्तियों की साधन दाता को घृणा (नफरत ) आती है।

जो मीयां आचार वीहीला

तो सांडौनि अवीधि प्रधान केला

तो पुरुष जीतुचि मेला :

असतेनि आयुस्यें - ।।

सर्वज्ञ श्रीचक्रधर महाराज कहते हैं कि मैनें जो आचार बतलाया उसको छोड़ कर जिन्होंने अविधि को ही अपनाया हो ऐसा व्यक्ति जीवित होकर भी मरा हुआ है। उम्र होते हुए भी अर्थात् विधि का त्याग करने वाला व्यक्ति धर्म की दृष्टि से मरा हुआ है और धर्माचरण करता हुआ व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाए फिर भी वह जीवित ही माना जाता है।


जे आचरतयाचा आइकौनि शब्द :

भीतरि उपजे थोर क्रोधु :

तयासि अर्थाअर्थ संबंध :

लागो नेदावा-।। 

जो व्यक्ति आचारशील व्यक्तियों का शब्द सुन कर क्रोधित हो जाता हो ऐसे व्यक्तियों का सम्पर्क नहीं करना चाहिए।

जे नीखेदाचें रीगति घर

आणि नीवृतातें हांसती अज्ञान ढोर :

ते नर्क भुंजता घोरांदर : 

कव्हणी नाभी न म्हणे ।। 

जो व्यक्ति स्वयं निषेध आचरण करते हों और विरक्त ( वैराग्यशील ) पुरुषों को पशु या मूर्ख समझ कर हंसी उडाते हों ऐसे व्यक्ति घोर नरकों में दुःख भोगते हैं जिन्हें देख कर किसी को भी दया नहीं आती।


जे वीखयातें सेविती सदा :

आणि दमन सीळाची करीति नींदा :

ते दुःख भोगितां कैवल्यकंदा :

घुणा नुपजे - ।।

जो व्यक्ति स्वयं विषयों का सेवन करते हैं और त्यागी, विरक्त संयमी लोगों की निंदा करते हैं उन्हें दुःख कैवल्य के स्वामी को भी दया उत्पन्न नहीं होती। भोगते हुए देख कैवल्य के स्वामी को भी दया उत्पन्न नही होती। 


आपण अनीष्टें खादलें : आणि तापसांतें म्हणती ठक आले :

ते अधपाता गेलें : देखत देखता -।। 

जो व्यक्ति स्वयं अनिष्ट आचरण करते हों और तपस्वियों को देखकर उन्हें ढोंगी, नकली आए हुए हैं कहते हों ऐसे व्यक्ति शीघ्र गति से धर्म से गिर जाते हैं।

जे चर्यावंतातें देखौनि दृष्टीं: रागद्वेख भरीती पोटी : तयासि असावया सृष्टि : ठाओ नाहीं - ।।

आचारशील व्यक्तियों को देखकर जिनके अन्तःकरण में रागद्वेष की भावना पैदा होती हो ऐसे व्यक्तियों को इस संसार में सुखपूर्वक रहने के लिए कोई जगह नहीं मिलती।

Thank you

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