date :- 04/6/2022
अच्छे काम में (इष्ट क्रिया में) रुकावट न डालें -
संसार में देखा जाता है कि प्रत्येक
व्यक्ति अपने आपको समझदार समझता है, कोई भी अपने आपको ना समझ समझने के लिए तैयार नहीं है,
अतः वह जो कुछ भी करता है यही
समझता है कि में जो कुछ कर रहा हूं ठीक हो कर रहा हूं। इसी अहंकार के कारण उसकी ना
समझी के कारण कई बार मनुष्यों के हाथों से गलत कार्य हो जाते हैं जिसकी उसे समझ नहीं
होतो । स्वयं तो यही समझता है कि मैं जो कुछ कर रहा हूं ठीक ही कर रहा हूं। क्योंकि
दूसरों को अपेक्षा मुझे अधिक ज्ञान है।
इसो अहंकार के कारण ज्ञानी पुरुषों
के हाथों से भी ना समझी के कारण भून हो जाती है। सर्वज्ञ इस बात को भली भांति जानते
थे कलियुग का मध्य कम 2 पर गनतो करने वाला है। जोव उद्धार के व्यसन के कारण स्वामी ने अपने सायकों को
धर्म से गिराने वाली छोटो 2 बातों से भी साव घान किया है।
स्वयं धर्माचरण करना इष्ट है
और अपने साथ साथ दूसरों को धर्मा चरण करवाना महान इष्ट है। वैसे ही स्वयं गलत काम करना
पाप है उसी तरह दूसरों को गलत काम करने की प्रेरण देना महा पाप है। इसी तरह जो साधक
स्वयं धर्मा चरण नहीं करता उस पर साधन दाता उदास हो जाते है और जो दूपरों के धर्माचरण
में रुकावट पैदा करता है उसको स्वामी को जबरदस्त घृणा पैदा होती है। साधक के प्रयत्न
से स्वामी की उदासीनता तो शीघ्र हो दूर हो सकती है परन्तु घृणा सहसा दूर नहीं होती,
अत: साधक ने ऐसा कोई कार्य नहीं
करना चाहिए जिसके द्वारा स्वामी को विशेष कष्ट हो ।
किसी भी व्यक्ति को वर्म पोछे
हटाने से सावत दाता को बहुत अधिक कष्ट होता है अतः किसी व्यक्ति के किसी भी इष्ट कार्यों
में रुकावट उत्पन्नत करें । ह्रास तो दूसरों को व कार्यों के प्रति उत्साहित करें। यदि किसी को उत्साहित
नहीं किया जाता तो कम से कम चुप तो भी रहें। बाईसा जैसे प्रेमी भक्तों के हाथों से
भी ना समझो के कारण गलली हो सकत है फिर दूसरों का तो कहना ही क्या ।
आनन्द मूर्ति सर्वज्ञ स्वामी भक्तिजनों के सहित वसुंधरा को पावन करते हुए, जोवों के कल्याणार्थ निवासा (नेवासा जि. अहमनगर) से चलकर एक दिन राजणगांव में रहे दूसरे दिन मोरीए नामक ग्राम में पहुंचे। वहां 20 दिन स्वामी का निवास रहा। धर्म की अनेक बातें श्री नागदेव जी को बत लाई। स्वामी के साथ रामदेव नामक महात्मा भी थे। मनुष्यों को अपनी पात्रता के अनुसार परमेश्वर किसी को वेध किसी को बोध का दान करते हैं । परन्तु जो व्यक्ति वेध बोध के लायक नहीं होते परन्तु पूर्व प्रमाद में उन्होंने पर निष्ठ क्रियाएं को होती है। जिसका परमेश्वर को तोष होता है अतः ऐसे व्यक्तियों को परमेश्वर अवतार अपने सन्निधान में रहने का सौभाग्य प्राप्त करवाते हैं अथवा बहिर्याग या अन्तर्याग के साधन भी उन्हें देते हैं । अन्तर्याग या बहिर्याग देवताओं के साधन होते हैं। रामदेव ए स्वामी के विद्या साधनो प्रथम शिष्य थे।
श्रीनागदेव, महदाइसा, उमाइसा, आबाइसा, अनेक भक्तों को इन्होंने स्वामी
के सन्निधान में पहुंचाया इस क्रिया का भी स्वामी को तोष था । विद्या गुरु के नाते
राम देव स्वामी के दर्शन के लिए आते रहते थे। आठ पन्द्रह दिन रह कर चले जाते थे । इस
बार वे 22 दिन स्वामी के सन्निधान
में रहे प्रति दिन स्वामी के उपहार को सेवा रामदेव हो करते थे ।
स्वामी की ग्रामान्तर करने की
प्रवृति हुई अतः राम देव से हमारे भेट काल के दिन समाप्त हो गए अब हम अगले गांव को
जाना चाहते हैं। रामदेव जब कभी स्वामी के दर्शन के लिए आते थे, जहां से स्वामी की श्री मूर्ति
दिखाई देती दण्डवतें डालते हुए आते थे, जिस दिन जाना हो पहले कहा कि दिन-रात को 5 सुपारी भेट करके 100 दण्डवत डालते थे। सुबह जाते
समय 1 सुपारी भेंट करके पांच दण्डवते डाल
कर जाते थे। जितनी दूर से स्वामी को श्री मूर्ति दिखाई दे वहां तक वे पिछले कदम से
जाते थे। स्वामी को पीठ नहीं दिखाते थे। हमेशा के नियम के अनुसार रामदेव ने स्वामी
को 5 सुपारी भेट करके दण्डवत डालकर पूछा- प्रभो ! अब किस दिशा की ओर जाएंगे
? सामो ने बतलाया कि अब
हमारा ख्याल घाट प्रदेश की ओर जाने का है ।
रामदेव के चले जाने पर तीन माताएं
बैठी हुई थी स्वामी ने साधा को कहा कि महात्मा सोने के लिए चला गया आप भी जाएं। साधा
ने कहा अच्छा जो ! चलो जाऊगी। स्वामी ने पूछा क्या कोई बात करना चाहती है ?
साधा ने उत्तर दिया हमारी इच्छा
है कि आपके साथ हमें भी घाट प्रदेश में आने की अनुमति प्रदान करें ।
बाईसा बीच में ही बोल पड़ी कि
घाट प्रदेश में आना आपके लिए अच्छा नहीं है। क्योंकि घाट प्रदेश में गरीब लोग रहते
हैं पूरी भिक्षा नहीं मिलती पाठक अकेला भिक्षा करेगा, उसे भी कष्ट होगा। स्वामा ने बाइसा को सम झाया कि दूसरों
के धर्मकार्य में रुकावट डालने का महा पाप नहीं करना चाहिए। यह सुनकर साधा समझ गई कि
हमारे साथ चलने से स्वामी को कोई इतराज नहीं है
सारांश :- कोई तीर्थों पर जा रहा हो, दान-धर्म कर रहा हो, पाठ-स्मरण कर रहा हो,
भजन-कीर्तन कर रहा हो,
ज्ञान श्रवण कर रहा हो,
उपदेश ले रहा हो, सेवा दास्य कर रहा हो,
संयास धारण कर रहा हो,
हो सके तो तो अपनो ओर से उसे
उत्साहित करना चाहिए। परन्तु भूल कर भी किसी के धर्म कार्य में रुकावट पैदा न करें।
परमेश्वर अवतारों का प्रमुख कार्य जोव उद्धार का ही होता है। उसके जोव उद्धार कार्य
में कोई भी रुकावट उत्पन्न करता है उस पर भगवान को अत्याधिक क्रोध आता है। यदि ईश्वर
अवतारों को प्रसन्न करने का काम न हो तो कम से कम उन्हें रूष्ट तो न करें । स्वयं धर्माचरण
करें और दूसरों को धर्म के प्रति उत्साहित करें। धर्म कार्यों में सहायता करें |