छोटी सी गलती बन गई एक बड़ा अपराध - chhoti galati bada apradh mahanubhav-panth

छोटी सी गलती बन गई एक बड़ा अपराध - chhoti galati bada apradh mahanubhav-panth

15-6-2022

छोटी सी गलती बन गई एक बड़ा अपराध

सभी पाठकों को सादर दण्डवत् प्रणाम। इस लेख में छोटी- 2 गलतियों पर कुछ प्रकाश डाला है, जो होती तो छोटी सी हैं परन्तु उसका प्रभाव बड़ा हो जाता है। ये छोटी- -2 गलतियां हममें से काफी लोगों से होती हैं और कई बार हमारे साथ भी होती हैं। हम सब जब भी किसी मन्दिर में धार्मिक कार्यक्रम में जाते हैं तो हमारा उद्देश्य होता है, पूजा प्रसाद वन्दन, पूज्य साधु-सन्तों के दर्शन, ज्ञान- प्रवचन श्रवण करना, धर्म-कर्म, दान-पुण्य करना आदि। ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में काफी भक्त जनता आई होती है।

यदि ऐसे ही धार्मिक कार्यक्रम में एक भक्त बड़े ध्यान पूर्वक ज्ञान-प्रवचन श्रवण कर रहा हो, भजन-कीर्तन का आनन्द प्राप्त कर रहा हो, ईश्वर में ध्यान लगा रहा हो परन्तु उसे किसी कारणवश (लघुशंका या कोई चढ़ाने के लिये समान लाने आदि ) बाहर जाना पड़ता है और कुछ देर बाद वापिस अन्दर आता है। अन्दर वापिस बैठ जाने के बाद उसका ध्यान पहले की तरह न लग रहा हो, उसके मन में कुछ उथल-पुथल हो, और वह कुछ सोचने लग जाए तो, इसका कारण क्या हो सकता है?

वह कारण है, "जूते-चप्पल" आप कहेंगे यह भी अजीब सी बातें लेकर बैठ जाता है परन्तु यह कारण हमारी उसी छोटी सी गलती से जुड़ा हुआ है। होता क्या है कि- किसी प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम जब मन्दिर में आयोजित किये जाते हैं तो काफी भक्त जनता आई होती है। जो लोग जूते पहन कर आते हैं, जो लोग मन्दिर के कमरों में ठहरे होते हैं, अपने जूते-चप्पल कमरों में ही उतार कर भवन में आते हैं या जो लोग चप्पल-जूते अपनी गाड़ी में ही उतार कर आते हैं या जो लोग चप्पल-जूते बड़ी गुप्त जगह छुपा कर आते हैं, वे सब क्या करते हैं कि कार्यक्रम तो सुबह से शाम तक का होता है तो स्वभावानुसार टायलट आदि तो जाना ही पड़ता है, इसके अलावा पानी पीने के लिये या और किसी कारण से कुछ सामान लाने के लिए बाहर आते हैं तो किसी दूसरे की चप्पल या जूते आदि पहन जाते हैं और वापिस कहीं दूसरी तरफ उतार देते हैं। 

कई लोग तो दूसरे की चप्पल भी बड़ी choice करके पहन के जाते हैं। जैसे पुरानी न हो, खुली न हो, बड़ी न हो, अच्छी लग रही हो। बात तो हमारे अनुसार छोटी सी है कि- किसी की चप्पल पहनने से उसका कुछ घिस नहीं जाता या कोई भूचाल नहीं आ जाता परन्तु इससे हमें कितना दोष लग जाता है या लग सकता है, इसके बारे में विचार करना चाहिए। मान लीजिए इतनी चप्पलों में से आप जिसकी चप्पल पहन कर गये, वह चप्पल किसी पूज्य महात्मा जी या बाई जी की हो तो? और जिनकी चप्पल होगी, वे बाहर आएं और अपनी चप्पल ढूँढेंगे और परेशान होंगे और हो सकता है कि- नंगे पैर चले जाएं, तो रास्तें में उनके पैर में जो कष्ट होगा या पैर गीले होंगे तो उसका कितना बड़ा दोष लगेगा, एक छोटी सी गलती के कारण। 

इसी प्रकार यदि आप किसी भक्त की चप्पल पहन कर चले गये और वह भी किसी कारण से बाहर आने पर कहीं जाने  के लिये पहले अपनी चप्पल वहीं देखेगा, जहाँ उसने उतारी थी। फिर अपनी चप्पल वहां न पाकर वह 5-10 मिनट इधर उधर ढूंढेगा। न मिलने पर सोचेगा कि शायद कोई पहन कर गया होगा, बाद में देख लूँगा और फिर वह किसी और की चप्पल पहन जाएगा। फिर वापिस आने पर ढूँढ़ेगा तदोपरान्त वह अन्दर कार्यक्रम में बैठ जाएगा।

परन्तु उस भक्त का जो मन, ध्यान, ईश्वर में, ज्ञान प्रवचन में, भजन- कीर्तन में लगा हुआ था, वह अब चप्पल-जूते में लग जाएगा। अन्दर वापिस आकर शुरु के कुछ मिनट तो यह सोचता है कि- कोई पहन कर गया होगा, आ जाएगा परन्तु यदि नहीं आया तो मैं किसी के चप्पल-जूते पहन कर वापिस जाऊँगा। या फिर पहले किसी दुकान पर जाकर नए जूते लूँगा। फिर थोड़ा मन को तसल्ली देता है कि-छोड़ ना यार, जाते समय एक बार और से ढूँढ़ लूँगा, मिल गई तो ठीक नहीं तो छोड़ चप्पल ही तो है। हम सब के लिये यह एक छोटी सी या अजीब सी बात होगी या छोटी सी गलती होगी परन्तु इसके परिणाम के बारे में कोई विचार नहीं करता। 

देखिए! इस गलती के कारण एक भक्त जो केवल 2-5 मिनट के लिये बाहर गया था, उसके 15-20 मिनट व्यर्थ हो गए और जो मन, ध्यान भगवान जी में लगा हुआ था, वह चप्पल जूते 1 में लग गया। इसके परिणाम स्वरुप उसका किमति समय व्यर्थ हो गया। जिस उदेश्य से वह धार्मिक कार्यक्रम में आया था ( आनन्द, शान्ति), वह उदेश्य अधूरा रह गया। यह गलती हर कार्यक्रम में एक साधारण सी बात हो गई है या कार्यक्रम का हिस्सा बन चुकी हमारी यही छोटी- 2 गलतियाँ बड़े दोषों को जोड़ती हैं, बड़े दोष बड़े पापों को जोड़ते हैं और बड़े पाप हमारे लिये नरक, 84 लाख योनियाँ, दुःख, रोग, कष्ट जोड़ते हैं।

यह सब कुछ मन में भय पैदा करने के लिए नहीं लिखा है, इसका उदेश्य यह है कि एक छोटी सी गलती ही बड़े दोष को जन्म देती है और ऐसी अनगिनत गलतियाँ हम बिना उसका परिणाम जाने निरन्तर, भय रहित, बेशर्म होकर कब से करते आ रहे हैं। इन सब छोटी- 2 गलतियों पर, बातों पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए और अपने आपको जहाँ तक हो सके, इनसे बचाने का प्रयास करें।

इसलिये जो हुआ सो हुआ, उसके लिए क्षमा-याचना करें और भविष्य में ऐसी गलतियों से अपने आप को बचाने का पूर्ण रुप से प्रयास करें। कहीं भी किसी मन्दिर में, कार्यक्रम में जाएँ और कहीं बाहर 5 मिनट के लिए किसी मजबूरी में जाना पड़े तो अपनी ही चप्पल या जूते पहनें। यदि कोई आपके जूते- - चप्पल पहन गया हो तो किसी दूसरे के मजबूरी में पहनने पड़े तो भगवान से क्षमा माँग कर पहनें और फटाफट वापिस आकर उसी स्थान पर संभाल कर तरीके से रख दें। 

यह नहीं कि-पहन कर रास्ते में किसी से बातें करने लग जाए या पहन कर दूसरी दिशा में चले जाएँ और वापिस दूसरी तरफ चप्पल उतार कर अन्दर आ जाएँ मतलब "पहनी पूर्व से, उतारी पश्चिम में " ऐसा कदापि न करें। और यदि आप जिसकी चप्पल पहन कर गये और वापिस आकर उतार रहे हों और जिसकी वह चप्पल है, वह ढूँढ रहा हो परेशानी हुई और और आमना-सामना हो जाए तो आप अपनी मजबूरी बताते हुए उससे क्षमा माँगें कि आपको मेरी वजह जिसकी चप्पल है, वह भी संयम रखते हुए क्रोध न करे, न अपशब्द कहें, क्योंकि अपने धर्म के ही सब भाई-बन्धु हैं और कहे कि कोई नहीं जी, यह तो कार्यक्रम में हो जाता है। 

निष्कर्षः - हमें पहला प्रयास तो यह करना है कि हमसे यह गलती हो ही नहीं और यदि किसी मजबूरी में ऐसा करना पड़ तो ध्यान रखें कि किसी को परेशानी न हो और हम किसी पूज्य साधु-सन्तों का किमती समय व्यर्थ होने का कारण न बनें और न ही उनके ईश्वर में लगे मन को विचलित करने का कारण बनें। इस संसार में अपने गृहस्थाश्रम में जीवन व्यापन के लिये तो प्रतिदिन अनगिनत गलतियाँ, दोष, पाप कर रहे हैं तो कम से कम अपने धार्मिक जीवन में तो अपने आपको गलतियों से बचाने का प्रयास कर सकते हैं जिससे हमें धार्मिक क्षेत्र में तो कुछ लाभ, शान्ति, आनन्द, भक्ति की प्राप्ति हो सके। 

पहले तो ऐसा लिखना नहीं चाहता था परन्तु इस गलती को हर जगह बढ़ता हुआ देख कर मन नहीं माना और इसके परिणाम को ध्यान में रखते हुए लेख के द्वारा हम सब को इससे बचाने का प्रयास करना पड़ा। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिये या किसी को कोई बात बुरी लगी हो, तो उसके लिये मैं क्षमा-प्रार्थी हूँ। ईश्वर से प्रार्थना है कि हमें ज्ञान, सद्बुद्धि और शक्ति प्रदान करें ताकि हम इस प्रकार के प्रयास में सफल हो सकें।

|| श्री गोपाल कृष्ण महाराज की जय ॥

संदीप कु. सबरवाल (फरीदाबाद, हरियाणा)

 

Thank you

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