5-6-2022
आनंददाता परमेश्वर की लीलाएं
महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता -Mahanubhavpanth dnyansarita
शास्त्र कहते हैं और हम अनुभव करते हैं कि संसार में दुःखों की कमी नहीं है। क्या जीव, क्या देवता दूसरों को दुःख देने में ही अपना सौभाग्य एवं पुरुषार्थ समझते हैं। यदि कोई परोपकार की भावना रखकर दूसरों को सुख पहुंचाने का यत्न करता है तो उसमें कर्मों की रुकावट आती है। कई सिद्ध-साधक, देवी-देवता और सत्पुरुष परोपकार करते हैं परन्तु पूर्व आर्जक न हो तो वे भी सुख नहीं पहुंचा पाते। एक परमात्मा ही सर्व समर्थ है जो दुःख रुप कर्मों को समाप्त करके सुख का दान करते हैं।
देवता सम्बन्धी तीर्थ क्षेत्र, सिद्ध साधकों के द्वारा जो कार्य नहीं होते वें परमेश्वर द्वारा अथवा उनके चारों साधनों के द्वारा हो जाते हैं। स्वामी की कुछ लीलाएं प्रस्तुत कर रहा हूं जिससे पाठक समझ सकेंगे कि सर्वज्ञ श्री चक्रधर महाराज ने अवतार धारण करके अधिकारी जीवों को ज्ञान प्रेम दिया इसके सिवाय उन्होंने असंख्य प्राणियों को दुःख मुक्त करके सुख पहुंचाया।
हम रोज ही पढ़ते रहते हैं प्रार्थना करते हैं, क्या हम निम्नोक्त वचनों पर विश्वास और श्रद्धा रखते हैं ?
मूकं करोति वाचालं पङ्ग, लङ्घयते गिरिम्
यत् कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥
अर्थ : जिनकी कृपा से गूँगा बोलने लग पड़ता है और पंगु पहाड़ पर चढ़ जाता है, मधु दैत्य का मर्दन करने वाले आनन्द स्वरुप (परमेश्वर) को मैं नमस्कार करता हूं ।
प्राणी मात्र को जो भी दुःख कष्ट प्राप्त होते हैं या किसी के द्वारा दिए जाते हैं या शरीर में इन्द्रियों की कमी का होना सब अपने अपने कर्मों का ही फल होता है, न कोई किसी को कष्ट पहुंचाता है न कोई किसी को सुख ही देता है। पैरों के नीचे कीड़े-मकौड़े मारने से मनुष्य पंगु होता है। बुरी नजर से पराई स्त्रियों की ओर देखने से अन्धा होता है । वाचा से कटु शब्द बोल कर दूसरों को दुःख पहुंचाने से मनुष्य गूंगा होता है।
इसी तरह कर्मों के सदृश अवयव की कमियां रहती हैं। वैसे ही कंजूसी करने से कंगाल शरीर प्राप्त होता है या कुछ मिश्र कर्म किए जाते हैं जिससे शरीर में रोग-बीमारी लग जाती है। किसी को हत्या करने के बदले में मृतक प्राणी सांप, बिच्छू आदि योनियों में जाकर मारने वाले को काटकर बदला लेते हैं ।
रंगार वासनी (असदपुर) नामक गांव में परमेश्वर श्रीचक्रधरस्वामी पहुंचे। वंकेश्वर के मन्दिर के चौक में स्वामी बैठे हुए थे । वहां एक बालक को साथ में लेकर एक ब्राह्मण आया मन्दिर में दर्शन करके स्वामी के सम्मुख बैठ कर रुदन एवं प्रार्थना करते हुए कहने लगा, महाराज ! मैं बहुत दुःखी हूं । इकलौता एक लड़का है परन्तु जन्म से ही गूँगा है। यह बोलना शुरु करे इसके लिए मैं कई सिद्ध-साधकों के पास गया। काशी, बनारस आदि तीर्थ किए। जन्त्र मन्त्र, तन्त्र सब कुछ करवाए परन्तु बालक को वाचा प्राप्त नहीं हुई। बालक के कर्म पोछा नहीं छोड़ रहे थे ।
कृपालु प्रभु की शरण में आने पर स्वामी ने कृपा करके क्षण मात्र में ही कर्म भोग समाप्त कर दिए। स्वामी ने बालक को पूछा तेरा नाम क्या है ? बालक ने बोलना शुरु कर दिया, अपना और अपने माता-पिता का भी नाम बतला दिया। संकट में फंसे ब्राह्मण के बालक को स्वामी ने वाचा प्रदान करके सारे परिवार को सुखी किया ।
एक माली को सांप ने काटा जिसने उसकी मृत्यु हो गई। स्वामी ने अपना चरणामृत पिलाकर उसको जीवित कर दिया। कालफोड़े से पीड़ित ललिताइसा नामक स्त्री को रोग मुक्त किया। वामन पेंधी की पत्नि मर चुकी थी उसे स्वामी ने जीवित किया। नील भट्ट को इंगली (अति जहरीले बिच्छू ) के काटने से असह्य पीड़ा होने लगी, स्वामी ने उसका जहर दूर किया। खरगोश को अपनी जंघाओं के नीचे छिपाकर शिकारियों से उसकी रक्षा की।
पंचकुलाचार्य को ग्रहयोनि से मुक्त किया। रेईनायक तथा ग्वाले का ज्वर दूर करके उन्हें सुखी किया। चोरों की कुमति दूर करके उन्हें सुखी किया। सिंह म्हैसा सूअर आदि का तामस भाव दूर किया । एसे अनेक उदाहरण हैं कि जिनका दुःख संसार में कोई दूर नहीं कर सका स्वामी ने उनके दुःख-कष्ट दूर करके उन्हें सुखी किया ।
हमारा सौभाग्य है कि हमें परब्रम्ह परमेश्वर अवतार श्रीचक्रधर स्वामी जी का ज्ञान प्राप्त है, हमें परमात्मा को भक्ति मिली हुई है। दुःख-कष्टों से घबराकर अन्य द्वारों पर जाने का स्वप्न में भी ख्याल न आने दें। श्रद्धा और विश्वास पूर्वक निश्चय रखें कि परमेश्वर सर्व समर्थ है। जिस तरह बालक के दुःख-कष्ट. माता-पिता नहीं देख सकते उसी तरह हम स्वामी के बालक हैं उसके राजकुमार हैं, हमारे दुःख-कष्ट देखकर स्वामी चुप नहीं रह सकते। सिर्फ अटल श्रद्धा का होना ही जरुरी है ।