सुविचार पच्चीसी- suvichar Pachisi
1. आंखें बन्द करके बैठना हो प्रार्थना नहीं है, शुभ कामनाओं के साथ पुरुषार्थ करना ही प्रार्थना है।
2. यज्ञ, दान और तप ये ही धर्म के स्तंभ है।
3. अनीति का धन धर्मदाय में खर्च करने की बजह कुएं में फेंक देना उत्तम है।
4. शान्त व्यक्ति को ही सुख शान्ति होती हैं।
5. स्वयं के सुख के पीछे किसी के आंसू न बहे इसका ध्यान रखना चाहिए।
6. निष्ठा पूर्वक कर्त्तव्य निभाने से कोति अपने आप फैलती है।
7. सुखमय जीवन का मूल सदाचार है।
8. उपासना और साधना दोनों एक दूसरे के बिना अधुरे हैं।
9. मनुष्य की आन्तरिक तृप्ति स्नेह से होती है।
10. निःस्वार्थता मनुष्य को महान से महानतम बनाती है।
11. साधना से साधक का आन्तरिक स्तर शुद्ध होता ।
12. जिनका मन साफ होता है उसकी सभी भूलें माफ हो जाती हैं ।
13. विनय के बिना विद्या और परिमल के बिना पुष्प की शोभा नहीं ।
14. शास्त्र के पढ़ने सुनने व मन्दिर में जाने तथा माला फेरने से धर्म पूरा नहीं होता यदि अतिथि और गरीब को भोजन तथा विवस्त्र को वस्त्र न दे सके तो धर्म अधूरा है, धर्म का नाटक है।
15. अति सुख भोगने से तन और मन दोनों ही खराब होते हैं।
16. काम से लोभ और लोभ से क्रोध बढ़ता है।
17. भगवान आपसे तन मांगता है, धन नहीं।
18. कम खर्च करने से व कम खाने और कम बोलने से जीवन श्रेष्ठ बनता है।
19. थोड़ा सुख शान्ति से भोगना और बहुत दुःख धीरज से सहन करना ही जीवन को सही कला है ।
20. युवा से धीरज और वृद्ध से जल्दी की आशा रखना व्यर्थ है।
21. जो दूसरों के सुख की इच्छा रखता है उसके घर में दुःख नहीं आते।
22. अभिमान मनुष्य को फूलने-फलने नहीं देना ।
23. जप-तप करने से पाप की आदत छूटती है।
24. समय का मूल्य जानने वाला ही द्रव्य बचा सकता है।
25. समय बड़ा किमती है इसे व्यर्थ के निन्दा, चुगली, छल-कपट और भोग विलापों में बरबाद नहीं करना चाहिए।
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जरा सोच समझ ओ ! पगले
इस दुनियां में झूठा प्यार है क्यों भूला है।
तू परमात्मा तेरा जीवन तो बस दिन चार है ॥धृ०॥
बदली उमड़ी है बरसाने को जो आया है वह जाने को अथ और इति दो द्वार है।
इनको सबने करना पार है : क्यों भूला है
नित देखते हम सूरज को, चमक-दमक कर ढलता है।
अंधियारा का साथी दीपक । जल जलकर ओ बूझता है।
बनने मिटने का नाम संसार है । क्यों भुला है तू ॥२॥
दुनियां के इस बाजार में तू । अपने पन को खोना ना ।
मृगतृष्णा या अपनी छाया पकड़-पकड़ कर रोना ना ।
केवल प्रभु नाम ही एक सार है प्रभु भक्ति करे तो बेड़ा पार है ।
क्यों भूला है तू परमात्मा तेरा जीवन तो बस दिन चार है ॥३॥