ईश्वर आँखों से दिखाई क्यों नहीं देता?
महानुभाव पंथिय ज्ञानसरिता (हिंदी)
बहुत सारे जीव एक सामान्य प्रकार का प्रश्न उपस्थित
करते है, कि यदि ईश्वर है तो वह आँखों से क्यों दिखाई नहीं
देता? इस प्रश्न का अब संक्षेप में विचार करेंगे। भगवान्
श्रीकृष्ण महाराज कहते है।
(बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयम् .....। ( गी.अ। १३-१४
)
ईश्वर सब प्राणियों के बाहर - भीतर व्याप्त होता हुआ भी अत्यंत सूक्ष्म होने से आँखों को दिखाई नहीं देता, किन्तु जो आँखों से दिखाई नहीं देता वह संसार में बिल्कुल विद्यमान नहीं है ऐसा सिद्ध नहीं होता। क्योंकि संसार में विद्यमान सब पदार्थ दिखाई देंगे ही, ऐसा नहीं है. आकाश आंखों को दिखाई देता है क्या ? वायु, पुष्यों की सुगन्धि, शक्कर की मिठास, आँखों को दिखाई देती है क्या ? दूध में व्यापक मक्खन अपनी आँखों में डाला हुआ अंजन ? सैकड़ों वर्ष पूर्व हुए अपने दादा पड़दादा अब आँखों को दिखाई देते हैं क्या ? भविष्य काल में होने वाले चन्द्र ग्रहण अथवा सूर्य ग्रहण आज आँखों को दिखाई देते हैं क्या?
बालाग्रशतभागस्य शतधा कल्पितस्य च । भागो जीव : स विज्ञेय इति चाहापरा श्रुतिः
।। (सु.पं.द।
चित्र ८१) पक्ष्मणोऽपि निपातेन येषां
स्यात्स्कन्धपर्ययः (म भा। शां । १५-२६ ) " एक केश के अग्रभाग के
खड़े सौ (शत) टुकड़े करने पर उनमें से एक टुकड़े के फिर खड़े सौ टुकड़े करें तो
जितने आकार का एक टुकड़ा बनता है, उतने आकार का अर्थात् केश
के अग्रभाग के २०.७ ..। दस हजार के भाग दिखाई नही देता तो क्या वो नही है सदृश और
आँखों की पलके हिलने मात्र से ही जिनके हाथ - पाँव टूट जाते है " ऐसे जो
सूक्ष्म जीव सब स्थानों पर भरे हुए हैं वे आँखों को दिखाई देते है क्या?
" उस जल में जीव है जो देखने पर असंख्यात दृष्टिगोचर होते है.
किसी महापुरुष के इस कथनानुसार पानी में स्थित असंख्यात सूक्ष्म जीव आंखों को दिखाई देते है क्या? बिजली की जिन लहरों के कारण रेडियो से जो गीत सुनाई पड़ते है उन लहरों का सर्वत्र प्रवाह बहते हुए भी उन लहरों का प्रवाह आँखों को दिखाई देता है क्या? आज फोन हर किसी व्यक्ति के पास है इस फोन से सात समुंदर पार अगर हम किसी व्यक्ति को फोन करते हैं यहां से वहां तक फोन पर की हुई बातों का प्रभाव हम लोगों को दिखाई नहीं देता किंबहुना, शरीर में स्थित जीवात्मा आँखों को दिखाई देता है क्या ?
जो जिस इंद्रिय का विषय है वह उस इंद्रिय को ही गोचर होता है, इस नियम से वायु यह स्पर्शेन्द्रिय को ही महसूस होता है मतलब दिखाई देता है, फूलों की सुगन्धि घ्राणेन्दिय को ही तथा शक्कर की मिठास यह जिव्हान्द्रिय को ही गोचर होती है। आंखों को वायु, सुगन्धि तथा मिठास कभी भी दृष्टिगोचर नहीं हो सकती जिस पदार्थ को प्रत्यक्ष (प्रकट) करने के लिए जो प्रकार या जो मार्ग विद्वानों ने नियत किया हुआ होता है । उसी प्रकार से ही तथा उसी ही मार्ग से वह पदार्थ प्रत्यक्ष होता है मक्खन दूध का मंथन करने से ही तथा अपनी आंखों में डाला हुआ अंजन दर्पण से ही दिखाई देता है । अपने जन्म से अपने पिता के तथा उनके पिता का एवं परंपरा से बड़े बुजुर्गों का अस्तित्व अनुमान से ही मानना पड़ता है।
भविष्यकाल में होने वाले चंद्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण ज्योतिष विद्या के गणित से ही ज्योतिषियों के मनश्चक्षु को गोचर हो सकते हैं। जल में स्थित जीव अथवा सब स्थानों में भरे हुये सूक्ष्म जीव' मायक्रोस्कोप' नामक सूक्ष्मदर्शक यंत्र से ही दिखाई दे सकते है। बिजली की लहरें विद्युत् शास्त्र के जानने वाले को उसके प्रयोगशाला में स्थित यंत्रों की सहायता से ही प्रतीत हो सकती हैं। किन्तु आकाश तथा जीवात्मा ये दो पदार्थ किसी भी इंद्रिय के विषय ना होने से अनेक प्रयत्न किये जायें तो भी किसी भी इंद्रिय को गोचर नहीं हो सकते। केवल अनुमान से ही उनका अस्तित्व मानना पड़ता है। शब्द कर्णेन्द्रिय का विषय होने से वही कर्णेन्द्रिय को गोचर होता है। किन्तु आकाश कर्णेन्द्रिय को भी गोचर नहीं होता
X - ray ( एक्स - रे ) से
( क्ष - किरणों से ) कपड़े पहने हुये भी मनुष्य के शरीर के अंतर्भाग दिखाई दे सकते
है और उसका छायाचित्र ( फोटो ) भी निकाला जा सकता है किन्तु उसी समग्र शरीर में
व्याप्त जीवात्मा किसी को भी दिखाई नहीं दिया और न ही कोई उसका छायाचित्र ले सका,
क्यों ? कारण, जीव
स्वरूप इतना सूक्ष्म इतना कम है कि वह X - ray से भी अथवा '
अल्ट्रा हाय - पावर्ड इल्क्ट्रोन माईक्रोस्कोप ' नामक अत्यंत कार्यक्षम सूक्ष्मदर्शक यंत्र से भी आंखों को दिखाई नहीं दे
सकता.
जो जीवस्वरूप से ही अत्यंत सूक्ष्म - 'अणोरणीयान् ' अणु से अणु जो ईश्वरीय स्वरूप है वह ' भला वे आंखों से कैसे दिखाई दे सकता है वह (ईश्वरस्वरूप) आकाश व जीवात्मा के समान किसी भी इंद्रिय का विषय न होने से किसी भी इंद्रिय को गोचर नहीं हो सकता उसको उसके ज्ञान से ही जाना जा सकता हे उसके लिए ब्रह्मविद्या शास्त्र का अभ्यास होना बहुत जरूरी है तभी वो ईश्वर दिखाई दे सकता हैं.
आज के जमाने में कोई भी
यंत्र कोई भी मशीन चलाने के लिए कोई ना कोई माध्यम लगता है कोई ना कोई व्यक्ति जीव
कंप्यूटर रोबोट या कुछ न कुछ माध्यम लगता है वैसे ही इस पूरे ब्रह्मांड को चलाने
के लिए टाइम से हवा टाइम से वायु टाइम से पानी टाइम से बारिश टाइम से गर्मी ये सब
टाइम टू टाइम कैसे चल रहा है इसके पीछे भी एक बहुत बड़ी शक्ति का हाथ है उसे शक्ति
को कौन चला रहा है वह ईश्वर चला रहे हैं उसे हम देख नहीं सकते महसूस कर सकते हैं
ब्रह्मविद्या शास्त्र से ही हम उस चीज को जान सकते हैं देख सकते हैं.
इसलिए ईश्वर है बस उसको
देखने के लिए हमें ब्रह्मविद्या शास्त्र का अभ्यास करना है पढ़ाई करनी है आचरण
करना है..