महानुभाव पंथीय ज्ञानसरिता-
दुनियां ठगी जा रही है
जिस तरह माता - पिता सन्तान की अपकीर्ति और पत्न को देखकर अत्याधिक दुःखी होते हैं उसी तरह अनन्त ब्रह्माण्डों के नायक सम्पूर्ण प्राणी मात्र के माता - पिता पार ब्रह्म परमेश्वर जीवों की दुर्दशा को देखकर सर्वज्ञ श्री स्वामी खेद व्यक्त करते हुए भक्तों को कहते हैं कि ये सारे संसार के प्राणी ठगे जा रहे हैं, लुटे जा रहे हैं, कोई पति बन कर अपने स्वार्थ के लिए पत्नी को ठग रहा है. कोई पत्नी बन कर पति को ठग रही है, लूट रही है. कोई पुत्र बन कर माता- -पिता को ठग रहा है. कोई भाई बन कर भाई को ठग रहा है. कोई बहन बन कर भाई को ठक रही है. कोई मित्र बन कर मित्र को ठग रहा है. कोई व्यापारी बन कर ग्राहकों को ठक रहा है.कोई राजा बन कर प्रजा को ठग रहा है. चोरी ठगी, झूठ छल - कपट, विश्वासघात का चारों तरफ बोल - बाला है
ये संसार के सभी प्राणी ठगे जा रहे हैं परन्तु अज्ञानता के कारण किसी को भी पता नहीं चल रहा है कि मैं ठगा जा रहा हूँ. श्री स्वामी कहते हैं कि अज्ञानी लोगों की बात छोड़ दें ज्ञानी भी ठगे जा रहे हैं. ऊपर आँखें उठा कर नहीं देख रहे हैं. कोई विकारों के पंजे में फंसे है कोई विकल्प के अधीन हुए हैं. कोई हिंसा कर्म में रहता है, तो कोइ निन्दा - चुगली में लगे हैं , कोई अहंकार अभिमान के खड्डे में गिरे हैं. कोई माया एकत्र करने के चक्र में पड़े हैं. कोई मान सम्मान की अभिलाषा में जीवन बर्बाद कर रहे हैं.उन्हें कोई चिन्ता ही नहीं कि हमारी आत्मा का उद्धार कैसे होगा ? स्वामी कहते हैं कि- सिर्फ कपड़े बदल लेने से कुछ नहीं बनेगा. जब तक तुम्हारे अन्तः करण में निर्वेद, अनुताप, अनुसोच और आर्ती पैदा नहीं होगी उद्धार होना सम्भव नहीं हैं.
इसीलिए स्वामी हमेशा यही सोचते रहते हैं कि यह जीव ( ज्ञानी ) शरीर को दुबला - पतला बना कर जंगल पर्वतों में एकान्त में बैठकर कब कब मेरा ध्यान स्मरण करेगा और कब कब मैं इसका उद्धार करूँगा? अर्थात् स्वामी इन्तजार करते हैं कि यदि कोई इस बात को मान लें कि मैं संसार के प्राणियों से ठगा जा रहा हूँ. माया से ठगा जा रहा हूँ. इन देवताओं से ठगा जा जे रहा हूँ । अपने शरीर इन्द्रियाँ और मन से ठगा जा रहा हूँ अतः सभी की आशा, अभिलाषा और आश्रय का त्याग करके मेरी शरण में आएं मेरे अधीन होकर मेरी आज्ञाओ का पालन करें और मुझको ही अपना सब कुछ समझलें तो उसको इस संसार चक्र से, ठगने से, लूटने से बचा कर अविनाशी परम पद प्रदान कर सकता हूँ.
हमारे साधन दाता हम सबका इतना बेसब्री से इंतजार करते हैं कि श्रीमुकुट के ऊपर श्रीकर रख कर इंतजार करते हैं की कब-कब ये जीव इस गंदे संसार से निकलकर मेरी शरण में आएगा और मे इसका कब कब उद्धार करूंगा कब मै इसको प्रेम दूंगा लेकिन हम जीव स्वार्थी संसार में नर्कों में ही रमे हुए हैं फसें हूए हे और अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं...