New Love shayari 2022
प्रेम गझल
मोहब्बत की शायरी
महकती फ़िज़ाएँ जब .. मन को लुभाती हैं।
बरबस ही तेरी याद.. दिल में चली आती हैं।
गुलाब देखकर ... तेरे होठों की लाली याद आती है ये शोख बहारे ... तेरे उड़ते आँचल सी मचल जाती हैं
फूलों की खुशबू... मेरी सांसों को महकाती है।
याद आते है वो पल... जब तू करीब आती है।
पेड़ों पर चढ़ती लताएँ... इस तरह लहराती हैं।
जैसे मेरी बाहों में आकर ... तू होले से बिखर जाती है
हवा के झोंकों से झूमती... ये मदमस्त फ़िज़ाएँ
तेरी पायल की छम छम सी... कानों में बज जाती हैं।
इन महकती फ़िज़ाओं को देखकर... ऐसा लगता है।
जैसे हर तरफ़ ..... ये प्यार का पैमाना छलकाती हैं
लेखिका :- श्वेता गर्ग
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ख्वाबों में हमने ... कुछ ख्वाबो को सजाया था
दिल के अंजुमन में.. तुझको हमने ही बुलाया था
रह गई सूनी... मेरी महफिल तब
जब तेरा कोई.. पैगाम भी ना आया था
दिल को मालूम है... बेवफा तू नहीं
इसी खयाल से.. मैंने दिल को बहलाया था
इश्क देता है... इंतजारे.... तड़प
इस नगीने को.. अपने दिल में जड़वाया था
टूटा दिल मेरा.. जब ख्वाब मेरा टूट गया
ख्वाबों में भी तुझको.. नजदीक नहीं पाया था
क्या करूं दिल का.. ये बेबस है तेरे इश्क में
अब रात दिन बिन तेरे ..कही चैन न .. मुझको आया था
तू कहीं रुसवा ना हो जाए.. मेरे नाम से अब
बस यही सोच के... हमने तुम्हें दूर से चाहा था
तू मुखातिब हो अपना हाल-ए-दिल कह दूं तुझसे
बस इसी हौसले को... दिल में अब जगाया था
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एक सवाल वक़्त से इंसान का
क्यूँ हर बार मैं हारा सा रह जाता हूँ
वक़्त बोला साथ तुम मेरे चलो
जीत का वरदान तुम्हें देकर जाता हूँ। ~ प्रेमा
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बहुत अच्छी और लुभावनी रचना है। आप सब भी पढ़कर बताएं कि आपको यह कविता कैसी लगी
इस अधूरे इश्क की दास्तान ।
वो सूखा गुलाब सूख चुका है
अब वो गुलाब
ज़माना बीत गया
मुरझाए हुए
न अब वो रंग है, न सुगंध
शायद दम घुट गया उसका
गणित की उस मोटी किताब मे
पड़े-पडे बड़े आरज़ू से तोड़ा था
पड़ोस के उस नीले मकान से
कंपकंपाते कोहरे में छिपकर
डरे-डरे
था वो गमले में सीना ताने खड़े
वो आखिरी दिन था
बढ़ा रहा था मैं अपने कदम सधे सधे
गुलाब को अपनी सुंदरता पर बहुत नाज था
बड़े अदब से मुखातिब हो रहा था
उनकी तरफ देख परवीन उनकी रुख्सारों पर अड़े-अड़े
पकड़े हाथ में गुलाब खिले-खिले
शायद गुलाब हीन भावना में जकड़ चुका था
सहसा गुलाब फिसल गया
मेरी तरफ बढ़ते उनकी कदमों में जा गिरा
उनकी कदम बढ़ती हीं रही और बढ़ते रहे फासले
व दिन गुलाब सूख चुका है लेकिन सीने में सिफ़ा रखता हूं
वही एहसास, वही जज़्बात मैं अब तक हर दिन
पियदस्सी शशि
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आज कुछ जज़्बात है दिल में... उनको कहने दो।
सबके लिए गुमनाम हूँ मैं... गुमनाम ही रहने दो।
सारे जग को मान के अपना.. हमने हाथ बढ़ाया
वक्त आने पर पता चला... कौन अपना कौन पराया
बेमतलब की इस दुनिया को... बेमतलब रहने दो
सबके लिए गुमनाम हूँ मैं... गुमनाम ही रहने दो।
अपना सब कुछ मान के उनको ... हमने प्रीत निभाई
तोड़ के दिल मेरा उन्होंने ... बेवफाई की रीत निभाई
झूठे प्यार से सच्ची वफा की... उम्मीद को रहने दो
सब के लिए गुमनाम हूँ मैं... गुमनाम ही रहने दो।
अपने दिल के जज़्बातों को.. शब्दों में ढाल दिया।
जो भी गम था सारा हमने... गज़लो में डाल दिया।
मेरे लफ्जों को अब सबके.... दिल को छू लेने दो
सब के लिए गुमनाम हूँ मैं... गुमनाम ही रहने दो।
स्वरचित श्वेता गर्ग ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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तुम रूठ जाओ मुझसे, ऐसा कभी न करना,
मैं एक नजर को तरसूं, ऐसा कभी न करना.!!
मैं पूछ-पूछ हारूँ, सौ सौ सवाल करके,
तुम कुछ जवाब न दो, ऐसा कभी न करना.!!
मुझसे ही मिलकर हंसना, मुझसे ही मिलकर रोना,
मुझसे बिछड़कर जी लो, ऐसा कभी न करना.!!
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तेरे ही इश्क़ का सुरूर ना चढ़ता
अगर चैन ओ सुकून में गुजरता मेरा हर पल
झूटी अदावतें करे मुझे बैचैन
हरदम बढ़ती ही जाए ये दीवानगी हर पल
शिकायतें तो बहुत सी है तुमसे मगर
बयां करने की हालत में नहीं ये दिल
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प्रेम से इतनी वंचित है यह दुनिया
कि प्रेमियों के मिलन से
ईर्ष्यालु हो उठती है अक्सर,
जबकि खुश होती है मन ही मन
बिछड़ते हुए प्रेमियों को देखकर।
जितेन्द्र 'कबीर'
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मेरे अल्फाज़
राह ए ज़ीस्त में मेरा अतीत मिल गया
दर्द ए हिज्र का मसला बेजा छिड़ गया
करने लगा गुफ्तगू कुछ बीते दिनों
पर एहसास ए कमतरी कलेजा हिल गया
तर्क ए त'अल्लुक इतना नहीं आसान
खुशियां लुटाई औ बहाना मिल गया
ताल्लुकात हसीन रज़ा उसकी शामिल
शक ओ शुबह रश्क का पर्दा मिट गया
चाहा शिद्दत से दिल ओ जां से जिसको
खुश कलामी लाज़िमी चेहरा खिल गया
रोकती रहीं आंधियां मुहब्बत की राहें
मुहब्बत ए जुस्तजू रास्ता मिल गया
सविता सक्सेना
स्वरचित 24 अगस्त 2022
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ग़ज़ल
जान की बाजी लगा कर प्यार पाना है।
आप को हर हाल में अपना बनाना है।
खत्म कर देगा हमारे दर्द दुख वो सब ।
पास में उस के तो खुशियों का खजाना है।
घोर दुख जिस से जमाने के मिलेंगे सब।
जिंदगी भर वो मुझे रिश्ता निभाना है।
साजिशें लाखों रचे काँटे चमन के ये
एक ही मकसद हमारा गुल खिलाना है।
झूठ कितना ही बड़ा हो हम नहीं डरते।
बात जो सच है वही सबको बताना है।
नफरतों को पाल कर के लड़ रहे जो भी।
ये खजाना प्यार का उन पर लुटाना है।
यार से कश्यप हमारा हो मिलन जब भी ।
तो समझिए वो समय अपना सुहाना है।
रचनाकार प्रदीप कश्यप
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इश्क का वो मंजर तलाश रहा हूं पीठ में लगा खंजर तलाश रहा हूं
क्यों खामोश धड़कने आजकल दिल में उठा बवंडर तलास रहा हूं
गज़ल को गज़ल लिख दिया मैने उस गज़ल का शहर तलाश रहा हूं
दीदार ए इश्क की हसरत लिए मैं राहों में पस_मंजर तलाश रहा हूं
देखे है राहों में अनगिनत टुकड़े हुवे दिल वो खंडहर तलाश रहा हूं
कितने अरमान हुवे दिल में दफ्न वो सारे आज अंदर तलाश रहा हूं
उमेश कुमार,,,,
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लाव-लश्कर न खजाना न हैसियत मांगे ।।
नेक नीयत है बहुत साथ निभाने के लिए ||
हम समझते हैं तकल्लुफ की जरूरत क्या है।
बात छोटी सी ही काफी है बहाने के लिए।।
~ राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
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मोहब्बत की राहें हुआ करती फरेबी
ना करना था फिर भी दिल लगा आए
इश्क़ में धोखा हुआ दिल दे दर्द लिया
टूटे दिल को अब तक ना संभाल पाए
फिर होने को है अनजान से मोहब्बत
चलो एक बार फिर धोखा खाया जाए
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