न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् संस्कृत सुभाषित रसग्रहण हिंदी मराठी अर्थ - Sunskrit Subhashit hindi marathi artha

न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् संस्कृत सुभाषित रसग्रहण हिंदी मराठी अर्थ - Sunskrit Subhashit hindi marathi artha

 संस्कृत सुभाषित रसग्रहण हिंदी मराठी अर्थ - Sunskrit Subhashit hindi marathi artha

    न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा

    वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ।

    धर्मो न वै यत्र न नास्ति सत्यं

    सत्यं न तद्यच्छलनानुविद्धम् ॥

हिंदी अर्थ :- जिसमें ज्ञानवृद्ध, संस्कारवृद्ध, शीलवृद्ध जन ना हो वह सभा ही नही है, जो धर्मवस्तु के विषय में खुद का सच अभिप्राय बोलता नही, वह वृद्ध नही है / जिसमें सत्य ना हो ऐसा कोई धर्म ही नही हो सकता और जो छलकपट से युक्त है ऐसा सत्य ही नही हो सकता।....

मराठी अर्थ :- जेथे ज्ञानवृद्ध, संस्कारवृद्ध आणि शीलवृद्ध जन नाहीत ती सभाच नाही, जो धर्मवस्तु च्या विषयांत स्वतःचे सत्य मत मांडत नाही तो वृद्ध नाही. ज्यामध्ये सत्य नाही असा कोणताही धर्म नाही आणि जे छळकपट युक्त आहे असे सत्य असू शकत नाही....

वरं सखे सत्पुरुषावमानितो न नीचसंसर्ग गुणैरलंकृतः।

वराश्वपादेन हतो विराजते न रासभस्योपरि संस्थितो नरः॥ 

हिंदी अर्थ :-  हे मित्र! इन्सान सत्पुरुषों के संगत में रहता हो और कदाचित वहाँ उसका अपमान भी हो तो वह अच्छा है, लेकिन नीचों के संसर्ग में उनके बीच उन से मान-सम्मान प्राप्त करे यह ठीक नही है। इन्सान उत्तम घोडे के पास रहकर कदाचित उसकी लात लग जाए यह अच्छा है, लेकिन गधे के पास रहकर उसके पीठ पर बैठने पर भी वह शोभा नही देता।....

मराठी अर्थ :- हे मित्रा! जर एखादी व्यक्ती चांगल्या माणसांच्या सहवासात राहत असेल आणि तेथे कदाचित त्याचा अपमान होत असेल तर तो चांगला आहे परंतु नीच लोकांच्या संसर्गांत राहून तेथे त्याला मानसन्मान पण प्राप्त होत असेल तर ते योग्य नाही. मानवाला उत्तम घोड्यासोबत राहण्याने त्याची लात पण लागलेली चांगली परंतु गाढवासोबत राहून त्याच्या पाठीवरून बसून जाणे शोभादायक नाही....

आदित्यचन्द्रावनलानिलौ च

 द्यौर्भूमिरापो हृदयं यमश्च।

 अहश्च रात्रिश्च उभे च संध्ये

 धर्मश्च जानाति नरस्य वृत्तम्॥

हिंदी अर्थ :-  सूर्य, चंद्र, अग्नि, वायू, आकाश, पृथ्वी, जल, हृदय, यमराज, दिन-रात, दो संध्याएं, वैसे ही धर्म इतने पदार्थ इन्सान के आचरण को जानते हैं।....

मराठी अर्थ :- सूर्य, चंद्र, अग्नि, वायू, आकाश, पृथ्वी, जल, हृदय, यजमान, दिवस-रात्र, दोन वेळच्या संध्या तसेच धर्म इतक्या वस्तु माणसाचे आचरण जाणतांत....         

किं वाससा तत्र विचारणीयं

 वासः प्रधानं खलु योग्यतायाः।

 पीतांबरं वीक्ष्य ददौ स्वकन्यां

 चर्माम्बरं वीक्ष्य विषं समुद्रः॥

हिंदी अर्थ :-  कोई कहेगा की अच्छे कपडे पहनने से क्या होता है? इन्सान में अच्छे गुण हो तो ही उसकी कीमत होती है। लेकिन यह बात भी विचारणीय है, और मैं तो इतने तक भी कहता हूँ की योग्यता प्रदर्शित करने के लिये कपडा ही मुख्य साधन है। क्योंकि समुद्र ने अच्छा कपडा पहना हुआ देखकर (विष्णु) को खुद की कन्या (लक्ष्मी) दे दी, और चमडा पहना हुआ देखकर (शिवजी) को, वह अनेक गुणों का भंडार होते हुए भी विष दे दिया।....

मराठी अर्थ :- कुणी म्हणेल की चांगले कपडे घातल्याने काय होते? माणसात चांगले गुण असतील तरच त्याची किंमत आहे. परंतु ही गोष्ट पण विचारणीय आहे, आणि मी तर इतके म्हणेन की, योग्यता प्रदर्शित करण्यासाठी कपडेंच योग्य साधन आहे. कारण की, चांगले वस्त्र परिधान केलेले बघून समुद्राने स्वतःची कन्या लक्ष्मी विष्णुला दिली आणि चामडे परिधान केलेले बघून शंकराला (अनेक गुणांचा भांडार असतांनाही) विष दिले....

नरस्य चिह्नं नरकागतस्य विरोधिता बन्धुजनेषु नित्यम्।

 सरोगता नीचजनेषु सेवा ह्यतीव दोषः कटुका च वाणी॥

हिंदी अर्थ :- नरक में रहकर आए हुए इन्सान के यह लक्षण है: - खुद के बन्धुजनों के साथ नित्य विरोध, नीच इन्सानों की सेवा संगत, वर्तन- स्वभाव में अत्यंत दोष भरे हुए हो और कडवी कठोर वाणी बोलने वाला हो।....

मराठी अर्थ :- नरकांत राहून आलेल्या माणसांची ही लक्षणे आहेत. - स्वतःच्या नातेवाईकांशी सतत संघर्ष, नीच लोकांची सेवा-संगत, वर्तन-स्वभाव दोषांनी भरलेला आणि कटू-कठोर वाणी वापरणारा असतो....

 मनुष्यों में ज्ञान की आवश्यकता 

निःशेषलोकव्यवहारदक्षो ज्ञानेन मर्त्यो महनीयकीर्तिः ।

सेव्यः सतां संतमसेन हीनो विमुक्तिकृत्यं प्रति बद्धचितः ॥

हिंदी अर्थ :-  ज्ञान से मनुष्य लौकिक समस्त व्यवहारों में चतुर होता है - अपनी समस्त लौकिक आवश्यकताओं को सुगमता से संपादन कर लेता है, ज्ञान से मनुष्य की निर्मल कीर्ति फैलती है, ज्ञान से मनुष्य सज्जनों की सेवा का पात्र बनता है- सज्जन लोग भी उसकी सेवा करने लग जाते हैं और ज्ञान से ही सांसारिक समस्त विषयों से विरक्ति हो मोक्ष की तरफ चित लगता है, विना ज्ञान के हित-अहित का विचार नहीं होता ॥

धर्मार्थकामव्यवहारशून्यो विनष्टनिःशेषविचारबुद्धिः ।

रात्रिन्दिवं भक्षणसक्तचित्तो ज्ञानेन हीनः पशुरेव शुद्धः ॥

हिंदी अर्थ :-  जिनके पास ज्ञान नहीं - जो अज्ञानी हैं, वे मनुष्य अपने प्रधान ध्येय धर्म, अर्थ और काम के व्यवहारों से सर्वथा अनभिज्ञ रहते हैं अर्थात् वे धर्म, अर्थ और काम को नहीं पाल सकते, उन्हें हित अहित का ज्ञान नहीं होता, वे न तो अपने हित को ही विचार सकते हैं और न अहित का त्याग ही कर सकते हैं, उनका केवल रात-दिन का खाना-पीना ही एक मुख्य कर्तव्य रह जाता है इसलिये वे इस संसार में पशु तुल्य गिने जाते हैं ।

 भावार्थ- मनुष्य और पशु में ज्ञान की विशेषता से ही भेद है - मनुष्य विशेष ज्ञानी होते हैं और पशु अल्पज्ञानी। जिससे मनुष्य अपने हित अहित का स्पष्ट रीति से विचार कर लेता है, पशु नहीं और इसीलिये मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तीनों पुरुषार्थों को भली भांति सम्पादन भी कर लेता है, परन्तु जब इस विशेषता का उद्योतक ज्ञान ही जिस मनुष्य में नहीं है जो धर्म, अर्थ, काम का ही सम्पादन नहीं करता, तब उस मनुष्य में और पशु में कोई भी भेद नहीं है, वे दोनों एक से ही हैं ॥

स्थितो न खादामि हसन्न जल्पे

 गतं न शोचामि कृतं न मन्ये।

 द्वयोस्तृतीयो न भवामि राजन्

 केनास्मि मूर्खो वद कारणेन॥

हिंदी अर्थ :-  मैं खडे खडे खाता नही, हंसते हंसते वार्तालाप नही करता या बडबड नही करता, बनी गई हुई बातों पर शोक नही करता, किए हुए उपकार को ध्यान में नही रखता, दो लोग बात करते हो, वहाँ मै तीसरा बीचमें नही पडता, तो हे राजन्! मैं किस कारण से मूर्ख हूँ? बताओ....

मराठी अर्थ :- मी उभ्याउभ्यांने खात नाही, हसत-हसत गप्पा मारत नाही किंवा बडबड करीत नाही, होऊन गेलेल्या गोष्टींबद्दल शोक करीत नाही, केलेले उपकारांचे स्मरण करीत नाही, दोन लोंक बोलत असतील तेथे दोहोंत तीसरा जात नाही, तर हे राजन! मी कुठल्या कारणाने मूर्ख आहे, सांग तर खरे !   

यस्मिन्कुले यः पुरुषः प्रधानः

स सर्वयत्नेन हि रक्षणीयः।

 तस्मिन्विनष्टे सकलं विनष्टं

न नाभिभङ्गे ह्यरका वहन्ति ॥

हिंदी अर्थ :-  जिस कुल में जो व्यक्ति मुख्य बनकर कारभार चलाता हो, उसका सभी तरह से रक्षण करना चाहिए। अगर उस इन्सान का नाश हो गया तो सभी कुल का नाश हो जाता है। जैसे चक्र की नाभी का भंग हो जाए तो आरा रथ का वहन नही कर सकता।....

मराठी अर्थ :- ज्या कुळांत जो व्यक्ति मुख्य बनून कारभार चालवित असेल, त्याचे चहुकडूंन संरक्षण केले पाहिजे. जर त्याचा नाश झाला तर सर्व कुळाचा नाश निश्चित आहे. जसे चाकांच्या मध्य (नाभी) चा नाश झाला तर फक्त आरा रथ वाहून नेऊ शकत नाही....


 

Thank you

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post