भगवान श्रीकृष्णद्वारा देवर्षी नारद का गर्वहरण- Narad ka Garv haran

भगवान श्रीकृष्णद्वारा देवर्षी नारद का गर्वहरण- Narad ka Garv haran

भगवान श्रीकृष्णद्वारा देवर्षी नारद का गर्वहरण- Narad ka Garv haran

देवर्षि नारद को जब गर्व आया तो उसका निवारण श्रीकृष्ण भगवान जी ने कृपा कर किया। एक बार देवर्षि नारद श्रीकृष्ण भगवान जी के पास गये तथा कहने लगे-प्रभु जीआपकी तो इतनी रानियां हैं इनमें आप मुझे एक दे दो श्रीकृष्ण भगवान बोले- "हे नारद जिस रानी के पास मैं नहीं हूं उसे तुम ले लो।"

नारद सभी रानियों के पास गये परन्तु प्रत्येक रानी के पास उसे श्रीकृष्ण दिखाई दिये। कहीं पर श्रीकृष्ण स्नान करते दिखाई दियेतो कहीं भोजन करते हुएतो कहीं विश्राम करते हुए। सभी रानियों के पास जाकर वापिस आने पर श्रीकृष्ण भगवान् ने पूछा, "हे नारद। क्या तुम सब जगत हो आये हो?" तो नारद बोला, "हे श्रीकृष्ण यह सब आपकी ही लीला है।" तब श्री भगवान जी ने उसे कहा- "यहां स्नान करो।" 

तो उसने स्नान किया और वह नारद का नारदी बन गया तथा उसने अपने आपको एक जंगल में पाया तभी वहां घोड़े पर सवार शिकार खेलते हुए एक राजा आ गया। नारदी के सुन्दर रूप को ऐसे जंगल में देखकर राजा मोहित हो गया तथा उसने नारदी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। जिसे नारदी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। नारदी का विवाह राजा से हो गया। नारदी राजा की रानी बन गई। 

समय व्यतीत हुआ और उनके बच्चे भी हो गये परन्तु दुर्भाग्य से कोई संतान जीवित न रह सकी। फिर राजा का भी देहान्त हो गया तो नारदी रानी अत्यन्त दुःखी हो गई। वह एक तालाब के किनारे बैठी गृहस्थाश्रम के दुःख से घबराई हुई रो रही थी तभी श्रीकृष्ण चक्रवर्ती महाराज वहां प्रकट हो गये तथा उससे पूछने लगे - " अरे तुम क्यों रोती हो?" 

तो उसने कहा— कि मेरा पति तथा बच्चे मर गये हैं। तब श्री भगवान जी ने तब उस नारदी से कहा, "इस तालाब में स्नान करो"। जैसे ही नारदी ने उस तालाब में स्नान किया वह नारद बन गई। नारद जी तब सब बात समझ गये और बोले-हे श्रीकृष्ण यह सब आपकी लीला है।” इस प्रकार श्री कृष्ण भगवान ने कृपा कर नारद का गर्व दूर किया । 


Thank you

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post