कमाई मेहनत की खाओ तीन प्रेरणादायी सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानीयां - Three Best Motivational Stories in hindi

कमाई मेहनत की खाओ तीन प्रेरणादायी सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानीयां - Three Best Motivational Stories in hindi

 तीन प्रेरणादायी सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानीयां - Three Best Motivational Stories in hindi


कहानी 01 जरूरतमंदगी देखो

बड़े फक्कड़ फकीर थे खोजा. उनकी हरकतें न सिर्फ अजीब होतीं, बल्कि कोई संदेश भी उनमें ज़रूर रहता था. एक रोज़ चौराहे पर बैठे थे कि कोई युवक हाँफता आया. बोला, मैंने आपका बड़ा नाम सुना है. पैदल चल बहुत दूर से आया हूँ और शिष्य बनना चाहता हूँ. आप जैसा एवं जो आदेश देंगे, मैं उसे पूरे मन से निभाऊँगा 'खोजा बोले, शिष्य बनना चाहते हो तो ठीक है. मैं तुम्हें शिष्य बनाता हूँ. पर आजभर के लिये बनाऊँगा. मंजूर हो तो बोलो. ' युवक तैयार हो गया. खोजा बोले, तुम यहीं पास बैठ जाओ. '

वह बैठ गया. दिन बीतने लगा. खोजा को इस तरह बैठा देख कई लोग पास आये. तरहतरह के सवाल करने लगे. खोजा ठहरे फक्कड़! किसी का कोई उत्तर नहीं दिया. बस चुपचाप बैठे रहे. ऐसे ही शाम हो गयी और अंधेरा घिर आया. तभी एक वृद्ध उनके पास आया. सिर का गट्ठर नीचे रख किसी का पता पूछने लगा. खोजा ने तत्काल आगे बढ़ उसका गट्ठर अपने सिर रख लिया और उसे पूछे पते पर खुद जाकर पहुँचा आये. थोड़ी देर बाद वापस लौटे.

युवक उनके इस व्यवहार से अपनी जगह दंग था. उसे खोजा की हरकत समझ न आयी. जब वे आकर बैठे तो बोला, क्या यह पहचान का ख़ास फ़क़ीर था जो आगे बढ़ आपने बड़ी हमदर्दी से उसकी सहायता की? ऐसा तो औरों के साथ करते नहीं देखा. '

खोजा मुस्करा दिये. युवक को घूरकर देखने लगे. फिर बोले, 'नहीं. पर दिनभर जितने लोग मेरे पास आये उनमें मुझे यही एक ज़रूरतमंद लगा. उसे सच ही मदद की ज़रूरत थी. बाकी लोग तो मतलबी थे. मदद हमेशा ऐसे लोगों की ही करनी चाहिए.'

कहानी 02 कल्पना में मत जीओ

संत शिष्योंसहित जंगल से गुज़र रहे थे. चारों ओर हरीतिमा फैली थी जिसे देख सब मुग्ध हुए जा रहे थे. विचरण करते संत वहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य देख बोले, कितनी सात्विक जगह है. यहीं रहने का प्रबंध हो जाये तो कितना अच्छा हो. साधना में मन जुड़ेगा '

सुनकर शिष्यों का ध्यान भी इस ओर गया. जगह रमणीक एवं ध्यानसाधना के उपयुक्त थी. नीरव और मनोरम ! कुछ सोचते हुए सहसा शिष्यों में से एक ने जिज्ञासा की हमारे स्थायी निवास के लिये स्वर्ग की भूमि श्रेष्ठ है अथवा जंगल की यह मनोरम धरती?'

संत बोले, जिस धरती पर हम दोनों पैर रखकर खड़े हैं और भूमि हमारा भार वहन कर रही है, हमारे लिये वही सबसे श्रेष्ठ और उपयुक्त है. अगर इसे हम स्वर्ग की भूमि से हीन समझते हैं तो इस पर पैर रखने के अधिकारी नहीं हो सकते. इसीसे यह धरा ही हमारे लिये बेहतर और श्रेष्ठ है. यह किसी मानी में कम नहीं.'

शिष्यों को उत्तर रुचा नहीं. उनके पूर्वाग्रहग्रस्त मन में स्वर्ग की भूमि की श्रेष्ठता कहीं अधिक थी. काफी सोचने के बाद फिर एक शिष्य ने सवाल किया, पर स्वर्ग की श्रेष्ठता की हम प्रशंसा तो कर ही सकते हैं न? उसकी श्रेष्ठता अस्वीकारी तो नहीं जा सकती!'

संत हँसे बोले, जब हमारा कल्याण इसी धरती से हो रहा है तो स्वर्ग की इच्छा या प्रशंसा की ज़रूरत क्या है ? असंतुष्ट मनुष्य अपने लिये कोई वहम पालकर रखता है. यह बात अच्छी तरह मन में बिठा लो कि जीवन कभी वहम के आधार नहीं चला करता. कल्पना के आधार पर उसे चलाने की चेष्टा करोगे तो जीवन को कभी गति नहीं दे पाओगे. वह सर्वथा जड़वत् होकर रह जायेगा.'

कहानी 03 कमाई मेहनत की खाओ

दो शातिर चोर रंगेहाथ पकड़े नहीं जाते थे. उनमें एक ही चतुराई थी कि चोरी का माल दो हिस्सों में बाँट लेते. एक वे खुद रखते, दूसरा भगवान् के नाम दान कर देते. जैसे कोई बहुत बड़ा पुण्य का कार्य कर रहे हों ! यानी भगवान् को भी हिस्सेदार बना लेते थे.

एक रात भटकने पर भी चोरी का कहीं मौका न मिला तो एक जगह बैठ बतियाने लगे. तभी कोई महात्मा उधर आ निकले. उन्हें देख महात्मा ने सहज पूछा इस सन्नाटे में तुम क्या कर रहे हो ?'एक ने बताया, हम चोर हैं. चोरी का आज मौका न मिलने के कारण लाचारी में यहाँ बैठे हैं. सुबह होने का इंतज़ार कर रहे हैं. '

महात्मा ने पूछा,' कर्म के बारे भी सोचा है कि क्या कर रहे हो ?' इस सवाल से चोर पहले थोड़ा सकपकाये फिर बोले, हम जो करते हैं वह उचित ही होगा क्योंकि चोरी करके हम जो कुछ प्राप्त करते हैं उसे दो हिस्सों में बाँट देते हैं. एक खुद अपने पास रखते हैं और दूसरा भगवान् के नाम पर हम मंदिर में दान कर देते हैं.'

महात्मा बोले, आज तुम चोरी न कर सके, इस कारण निराश लग रहे हो. यदि मैं तुम्हें एक जिंदा मुर्गा दूँ तो क्या तुम उसके दो हिस्से करके अपना हिस्सा रख दूसरा भगवान् को चढ़ा सकोगे?

चोरों को अब जवाब न सूझे. दोनों सोच में पड़ गये. बोले, हम समझ गये कि आप कहना क्या चाहते हैं. आपने तो सच में हमारी आँखें खोल दीं. हम पाप की कमाई पुण्य के नाम पर दान करके एक तरह से महापाप ही कर रहे हैं. आगे कभी चोरी न कर सदैव मेहनत की कमाई खायेंगे और उसी का भाग प्रभु को चढ़ायेंगे. पाप की कमाई दान कर देने से हमारा पाप पुण्य में नहीं बदल जाता.'



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