सुविधाओं की अधिकता साधक एवं विद्यार्थियों के लिए घातक हैं।

सुविधाओं की अधिकता साधक एवं विद्यार्थियों के लिए घातक हैं।

  सुविधाओं की अधिकता साधक एवं विद्यार्थियों के लिए घातक हैं।

How a student should be? 



साधना करने वाले साधक का जीवन तथा विद्यार्थी जीवन मनुष्य के सारे जीवन की नींव है। यदि नींव पक्की हो तो उसके ऊपर भवन भी पक्का बनता है। इसी प्रकार विद्यार्थी जीवन में यदि मनुष्य का शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक और नैतिक गुणों का विकास भली भांति हो जाये तो उसका जीवन आनन्दमय तथा सफल होगा। विद्यार्थी जीवन में जिन विचारों अथवा संस्कारों की छाप छात्र के मस्तिष्क पर पड़ती है वह आजीवन मिटाये नहीं मिटती। 

आज का विद्यार्थी भारतीय संस्कृति से दूर, पश्चिमी सभ्यता की नकल करने वाला तथा फैशन का दीवाना बन गया है। विद्यार्थी के जीवन में से भारतीय मूल्य लुप्त हो गये हैं। उनमें अनुशासन हीनता की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इन सबका कारण विद्यार्थियों को दी जाने वाली सुविधाओं की अधिकता ही है।

शिष्य एवं विद्यार्थियों को सुविधाएँ प्रदान करके गुरू व अभिभावक अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं क्योंकि आज के मशीनी व भौतिकवादी युग में अभिभावकों के पास अपने बच्चों को समय तो देने के लिए है ही नहीं, इसलिए वह अपने बच्चों को जो सुविधाएँ उन्हें आवश्यक है या नहीं प्रदान कर देते हैं जैसे महंगे मोबाइल फोन, आई-पॉड, आई-फोन, आई-पैड, इन्टरनेट कनेक्शन, लैपटाप, महंगी मोटर साइकिल नये फैशन के कपड़े, जेब खर्ची, ए०सी० गाड़ियाँ व अन्य सुविधाएँ इत्यादि । अब बच्चे उनकी अनुपस्थिति में उन वस्तुओं का उपयोग करें या दुरूपयोग उन्हें इसका ज्ञान ही नहीं होता। 

विद्यालय में बच्चा अपने घर में पायी जाने वाली सुविधाओं का बखान करके और सहपाठियों को भी भड़काने व उकसाने का कार्य करते हैं जो विद्यार्थी मध्यम वर्ग यही सब बातें हमारे श्री चक्रधर स्वामी जी ने अपने भक्तों के लिए बताई हैं कि जब तक कोई भक्त सच्चे मन से सुख सुविधाओं का परित्याग कर प्रभु स्मरण नहीं करता उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। प्रभु को पाने के लिए कठिन तपस्या करनी पड़ती है व प्रभु के बताये हुए मार्ग अर्थात् ब्रह्मविद्या ज्ञान का अनुसरण करना पड़ता है।

बच्चे भी अपने माता-पिता से उन वस्तुओं की मांग करने लगते हैं व उनका मन उनके उद्देश्य, विद्या अध्ययन से हटकर उन्हीं भौतिक सुख सुविधाओं में भटक कर रह जाता है जो कि पूरे समाज व देश के लिए बहुत ही घातक है।


शास्त्रों में विद्यार्थी के पांच लक्षण बताएं हैं वह इस प्रकार:-

काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च । 

अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ।। 

कोई भी विद्यार्थी हो, किसी भी शास्त्र का अध्ययन करता हो, उस विद्यार्थी में विद्यार्थी मे यह पांच लक्षण अवश्य होने चाहिए..


1) काकदृष्टी = कौवे की तरह जानने की इच्छा, कौवे की दृष्टि काफी तीक्ष्ण होती है। वह सुक्ष्म वस्तु को पेड़ से ही देख लेता है उसी प्रकार शास्त्र में कहे गए सुक्ष्म अर्थ को भी जानने की क्षमता बढ़ाना यह विद्यार्थी का पहला लक्षण है। 


2) बकध्यानं = मन स्थिर कर के बगुले की तरह ध्यान, और शास्त्र का चिंतन करना। 


3) श्वाननिद्रा = कुत्ते की तरह सावधानता से निद्रा लेना। कुत्ता कभी भी शांत तरीके से सोता नहीं है आज पास अगर थोड़ी भी हलचल होती है तो वह जाग जाता है। ठीक उसी तरह विद्यार्थी की निद्रा होनी चाहिए। और कुत्ता जैसे कम सोता है वैसे कम ही सोना चाहिए। रात को देर तक पढ़ाई करके सुबह जल्दी उठ कर पढ़ाई करनी चाहिए, तभी वह हर एक विषय में विद्वान बन सकता है। 


4) अल्पाहारी = भरपेट न खाणे आला. आवश्यकतानुसार खाने वाला. अगर पेट भर कर खाना खाया तो हालत से आने की संभावना बढ़ जाती है। और पढ़ाई नहीं होती, इसलिए विद्यार्थी को खाना कम ही होना चाहिए


5) गृहत्यागी = विद्यार्थी को गृह-त्यागी होना चाहिए। विद्यार्थी को पढ़ाई के लिए किसी अन्य देश में या किसी गुरुकुल में जाना चाहिए क्योंकि घर में रहते हुए कभी भी पढ़ाई अच्छे तरीके से नहीं होती है। 

ऊपर बताए हुए लक्षण जिस छात्र में है उसी को विद्यार्थी कहा जाता है और वही विद्यावान हो सकता है जो इन लक्षणों का पालन नहीं करता वह कभी भी विद्या अर्जित नहीं कर सकता है इसलिए ध्यान रहे अगर आपको विद्यावान विद्वान बनना है तो उपरोक्त लक्षणों का पालन करना होगा। 



Thank you

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