23-5-2022
देवता भक्ती छोड़ ईश्वरभक्ती में मन लगाना
महानुभाव पंथीय ज्ञानसरिता -
Mahanubhav panth dnyansarita
देवता धर्म छोड़ परधर्म में मन लगाना
मुक्ति मार्ग के पथिक साधक के लिए स्वामी ने अनेक विधियाँ विहित की हैं उन सब में अपर धर्म (देवता धर्म) से मनुष्यों को निकाल कर परधर्म (परमेश्वर धर्म) में लगाने का विधि सर्व श्रेष्ठ विधि है । मनुष्यों को परमेश्वर धर्म में लगाने वाले साधक का साधन दाता को अत्याधिक तोष होता है । इस विधि के आचरण से साधक को साधन दाता की ओर से प्रेम का दान दिया जाता है। यह पर निष्ठ क्रिया उन्हीं साधकों को सुलभ होती है जिन्होंने पूर्व प्रमाद में प्रायश्चित करके गुह्य ज्ञान के रहस्य को गुप्त रखा हो । यह पर निष्ठ क्रिया ज्ञानी पुरुष ही कर सकता है ।
एक बार तपस्विनी बाईसा ने प्रश्न किया कि बाबा ! ज्ञानी क्या करता है? स्वामी ने उत्तर दिया बाई ! अपर धर्म से मनुष्यों को निकाल कर परमेश्वर धर्म में लगाता है । यह सुन कर बाईसा ने कहा बाबा ! बस! यह एक ही कार्य ज्ञानी करता है? स्वामी ने कहा बाई ! यह कार्य क्या साधारण है? यह कार्य ज्ञानी के सिवाय दूसरा कोई नहीं कर सकता ।
इस संसार के मूल में अज्ञान है जब तक वह अज्ञान दूर नहीं होता तब तक जीव परमानन्द प्राप्रि के लिए योग्य नहीं होता । परमेश्वरीय ज्ञान देवताओं के पास नहीं है वे स्वयं अज्ञान है त्रिगुणात्मक है, नित्य बद्धा है । और जीव तो शक्ति सामर्थ्य रहित है तथा अविद्यादि बन्धनों में जकड़ा हुआ है और प्रपंच निर्जिव है अत: जीव देवता और प्रपंच तीनों ही ज्ञानदान के लिए अपात्र है ।
अतः परमेश्वर को सृष्टि की रचना करवा कर के स्वयं अवतार धारण करना पड़ता है । देश-देश, गांव-गांव, गली-गली और घर घर जाकर ज्ञान के अधिकारी जीवों को ढूंढते है । ज्ञान का दान करते है । अनधिकारी जीवों को ज्ञान का अधिकार घड़वा कर ज्ञान का दान करते है। इस तरह के परमेश्वर के कठिन कार्य को यदि कोई करता है तो परमेश्वर को अपार हर्ष होता है । इसी लिए परमेश्वर को ज्ञानी सब से अधिक प्रिय होता है।
गीता में भगवान ने स्पष्ट कहा है कि-ज्ञानी तो मेरा आत्मा ही है । क्योंकि परमेश्वर की अनन्त शक्तियों में ज्ञान शक्ति का बड़ा भारी महत्व है अतः शास्त्र में कहा है कि- “ज्ञान यह ईश्वर की महानशक्ति है वह जिस ज्ञानी के अन्तः कारण में निवास करती है वह ज्ञानी स्वभाविक ही श्रेष्ठ है। वैसे ही ज्ञानी का परमेश्वर अवतार को बड़ा भारी अभिमान होता है यदि कोई ज्ञानी के बाल को भी धक्का पहुंचाने का महापाप करता है तो परमेश्वर अवतार दुनियां को उल्टी कर देते हैं ।
परमेश्वर स्वरूप स्वयं, दयालु, मयालु, कृपालु, कनवालु होने से किसी को दण्ड नहीं देता परन्तु चैतन्य माया ज्ञानियों की सुरक्षा के लिए तत्पर रहती है। वही ज्ञानियों का बदला लेती है। कवि दायबास लिखते है कि- ज्ञानी के दर्शनों से पापों का प्रायश्चित होता है अतः सभी ने उनको नमस्कार करना चाहिए । अनेक प्रकार के नरक होते हैं उनमें नित्य-नरक सबसे अधिक दुःख दाई होता है किसी व्यक्ति की नित्य नरक की चाल बढ़ती आ रही हो यदि वह किसी ज्ञानी महात्मा को भोजन खिला दे तो उसका नित्य नरक का प्रसव रूक जाता है.
ज्ञानी को सताने से तुरन्त विघ्न उपस्थित हो जाते हैं अनेक प्रकार के दुःख- -कष्ट आ जाते हैं। सुना है कि पोथी चल रही थी महन्त जी ने किसी से पानी मांगा। एक महात्मा ने मजाक करते हुए कह दिया जल्दी पानी दो बाबा जी का गला सुक रहा है। बाबा जी के दिल को वह बात लग गई। उन्होंने उस महात्मा की और घृणा की दृष्टि से देखा तो उसी समय उस महात्मा की जबान बाहर निकल आई।
एक बार का और भी प्रसंग है । झाड़ी प्रदेश भण्डारे जिले में महन्त श्री कृष्ण राज बाबा पंजाबी गए हुए थे वे ज्यादा बोलते थे अत: उनका नाम कृष्ण राज बाबा बड़ बड़े पड़ गया। बहुत सारी होटलें थी इन्होने वहां पर चाय पी । ये पंजाबी भाषा में बोल रहे थे । होटल वाले ने गलत समझ कर इनकी पिटाई कर दी। गांव के पटेल को किसी ने बतलाया कि महात्मा को होटल वाले ने मारा है ।
पटेल ने बाबा जी से पूछा- क्या यह बाल सत्य है । तो इन्होंने कह दिया कि नहीं ऐसे ही किसी ने कहा है । बाबा जी ने सोचा कि मेरे निमित्त पता नहीं कितना झगड़ा बड़ सकता है ? किसी की हत्या भी हो सकती है उसका पाप मेरे सिर पर पड़ेगा अतः उन्होने मार खाकर भी इन्कार कर दिया कि नहीं मारा । यह तो उनकी सहन शीलता हुई परन्तु अभिमानिनी देवता कहां चुप रहने वाली थी ।
उसी दिन जिन होटल वालों ने शरारत की थी सबकी होटले जल कर भस्म हो गई। जिन्हें धर्म प्रिय है जो स्वामी के समीप जाना चाहता है उसे चाहिए कि किसी भी परमेश्वर के भक्त हो अथवा महात्मा हो। चाहे वे साधे-सुधे क्यों न हो भूल कर भी किसी की हंसी न उडाएं मजाक न करें । परमेश्वर भक्तों के साथ हंसी-मजाक करना बहुत मंहगा पड़ जाता है ।