26-5-2022
वासनिक का अनिष्ट सेवन?
महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता-
Mahanubhavpanth dnyansarita
अनिष्ट (जिससे भलाई नहीं) यानि देवताओं से सम्बंधित या सकाम अथवा छोड़े हुए पदार्थों का सेवन करने से साधक धर्म से गिर कर देवता भक्ति की ओर चला जाता है। इसी लिए हमारे साधन दाता सर्वज्ञ श्री चक्रधर महाराज ने साधकों (भक्त, वासनीक तथा भिक्षुकों) के धर्म-कर्म में रुकावट न आए, वे धर्म से पतित न हों इसके लिए विस्तार सहित ज्ञान किया हैं।
देवताओं के तीर्थों पर जाने या देवताओं के मन्दिरों में जाने अथवा देवताओं के सिद्ध साधकों के पास जाने से उनका प्रसाद ग्रहण करने से साधक का मन परमेश्वर भक्ति से विचलित हो जाता है। वैसे ही अन्य ग्रन्थों के पढ़ने तथा सुनने से भी साधक धर्म से गिर जाता है। इसलिए स्वामी ने अन्य ग्रन्थ स्थान, तीर्थ साधकों से दूर रहने को कहा है। उपरोक्त आज्ञाओं का भंग करने पर परमात्मा उस साधक पर उदास हो जाते हैं।
माया उस साधक के ज्ञानका अपहरण कर लेती है । जिस तरह आंखें फोड़ देने से मनुष्य भटक जाता है, अपने नियत स्थान पर पहुंच नहीं सकता, उसी तरह परमार्थ के राह में ज्ञान यह ज्ञानी की आंखें है। ज्ञान का अपहरण हो जाने पर साधक परमेश्वर प्राप्ति के मार्ग से विज लित देवता भक्ति की ओर चला जाता है। प्रत्येक साधक (वासनीक भक्त और महात्माओं) ने किसी की वस्तु या भोजन स्वीकार करने के पहले खोजना चाहिए कि यह किस उद्देश्य के लिए भोजन खिलाना चाहता है ? यदि किसी प्रकार की आशा या आकांक्षा या प्रति उपकार की भावना से खिलाना अहता है तो उसका स्वीकार नहीं करना चाहिए। किसी बहाने से टाल देना चाहिए।
जन्म-मृत्यु, विवाह, मोंजी, बन्धन श्राद्ध आदि के निमित्त जो भी पदार्थ सामने आए सकाम समझ कर छोड़ देना चाहिए। जिस तरह निरोग सनुष्य के शरीर में जहर के चले जाने से अनेक प्रकार की विकृति निर्माण हो जाती है यदि अधिक मात्रा हो गई तो दुनियां से कुच भी करना पड़ता है। उसी तरह सकाम अन्न के सेवन करने से मनुष्य की धर्म भावनाओं में उस लगती है, भाव-भक्ति में फरक पड़ जाता है, हो सकता है कि वह साधक धर्म से बिलकुल ही छूटी कर जाए।
जहर की अपेक्षा सकाम अन्न अधिक दुःखदाई होता है। क्योंकि जहर के खाने से तो एक शरीर का ही नाश होता है और सकाम अन्न के सेवन से तो असंख्य जन्म में मृत्यु यानि दुःख ही दुःख प्राप्त होता है मतलब सृष्टि में परमात्मा ने एक बार ज्ञान दिया हुआ है यदि असावधानी से सकाम या देवता सम्बन्धी पदार्थों के सेवन करने से धर्म से गिर गया तो दुबारा परमेश्वर के द्वारा ज्ञान नहीं मिलेगा चौर्यासी के चक्कर में दुःख भोगता रहेगा।
उस सृष्टि में परमात्मा उसका मुख नहीं देखेंगे। अतः साधकों ने सावधानी पूर्वक धर्मा चरण करना चाहिए जीभ के स्वाद, द्रव्य के स्वार्थ को छोड़ कर उद्धरण व्यसनी हमारे साधन दाता की सरल तथा सुगम "असतिपरी का आचरण करके परमात्मा की कृपा के पात्र बनें। वचन रूप परमेश्वर हमारे साथ है। साधन दाता हमारे से दूर नहीं हमारी रक्षा और उद्धार करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
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ये यथा मां प्रपद्यन्ते
तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्मानुवर्तन्ते
मनुष्या: पार्थ सर्वशः ॥ गी. अ. ४/११
अर्थ :- हे अर्जुन! जो मुझको जिस प्रकार भजते हैं मैं भी उनको वैसे ही भजता हूँ। इस रहस्य को समझकर बुद्धिमान् मनुष्य सब प्रकार से मेरे बतलाए हुए मार्ग का अनुसरण करते हैं।
भावार्थ:-चार प्रकार के मनुष्य परमेश्वर की भक्ति करते हैं । १. दुःखी २. गरीब ३. अज्ञानी और ४. ज्ञानी । दुःख निवारण के लिए जो मनुष्य भगवान का पूजा-पाठ तथा स्मरण करता है परमात्मा उसके दुःख दूर करते हैं। धन प्राप्ति के लिए जो भक्ति करता है उसे भगवान धन देते हैं। ज्ञान प्राप्ति के लिए जो भक्ति करता है परमात्मा उसका अज्ञान दूर करते हैं ।
ज्ञानी निष्काम भाव से भक्ति करता है परमात्मा उसकी योग्यता बढ़ाते हैं। ज्ञानी को इस रहस्य की जानकारी होने से वह अपना सर्वस्व परमात्मा के श्री चरणों में अर्पण करके निष्काम भक्ति करता है इसीलिए भगवान ने कहा है कि मेरा ज्ञानी भक्त श्रेष्ठ है अधिक क्या कहू' ज्ञानी तो मेरी आत्मा ही है।