बिना भाग्य के प्राप्ति नहीं - महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता Mahanubhavpanth dnyansarita

बिना भाग्य के प्राप्ति नहीं - महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता Mahanubhavpanth dnyansarita

 बिना भाग्य के प्राप्ति नहीं - महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता Mahanubhavpanth dnyansarita 



गीता सिद्धान्त के अनुसार अच्छे अथवा बरे कर्मों की पूर्णता पांच कारणों के बिना नहीं होती (1) शरीर (2) इन्द्रयां (3) इन्द्रियों के अधि ष्ठान (4) आत्मा और (5वां) पूर्व जन्म सम्बन्ध । इन पांचों में से एकाध भी कमी हो तो कर्मों की सिद्धि नहीं होती। यही कारण है कि आधुनिक चार कारणों का योग है और पांचवा कारण पूर्ण जन्म कृत सम्बन्ध न हो तो कार्य सफल नहीं होता उसी तरह पूर्व जन्म कृत सम्बन्ध तो हैं परन्तु यहाँ के चार कारणों में से एकाध की कमी हो तो भी कार्य नहीं होता. 

यही कारण था कि सर्वज्ञ श्री चक्रधर महाराज ने भूतानन्द नामक बाई को कोल्हापुर जाने की आज्ञा दी थी परन्तु पूर्व जन्मकृत संस्कार नहीं होने से वह नहीं पहुंच सकी। भूतानन्द को स्वामी ने बतलाया था कि हमने एक ग्वाल के स्वयं लेकर उसे ठीक कर दिया था। भूतानन्द के पोते को एक दिन ज्वर आ बुखार को गया । भूतानन्द ने भगवान की वह लीला याद की और पोते के पास सो गई जिसमे पोतेका ज्वर उतरकर भूतानन्द को चढ़ गया।

 जब वह स्वामी के दर्शन के लिए आई तो भक्तों ने उसकी वह बात स्वामी को बतला दी। स्वामी ने भूतानन्द को पूछा बाई ! सुना है कि तुम दूसरों का ज्वर उतार कर अपने ऊपर ले लेती हो ? उसने कहा नहीं जी ? ऐसे कहकर अपनी घटना बतला दो कि मैं आपकी लीला को याद करके पोते के पास सो गई थी तो मुझे बुखार आ गया और उसका उतर गया था।

स्वामी ने कहा बाई ! तुम चाहती हो तो इस प्रकार की सिद्धि तुम्हे दे देते हैं। भूतानन्द ने कहा प्रभो ! इसमें क्या बुरी बात हैं, आप प्रसन्न है तो दे दीजिए। स्वामी ने कहा बाई ! तुम कोल्हापुर को जावो रास्ते में प्रत्येक गांव में रुकते हुए जाना है। किसी गांव में दो रात नहीं रुकना । रिश्तेदारों को नहीं मिलना। पहले मुक्काम पर एक व्यक्ति मिलेगा। दूसरे मुक्काम पर दो व्यक्ति मिलेंगे इस प्रकार कोल्हापुर पहुंचने तक सात व्यक्ति मिलेंगें। पालखी लेकर आयेंगे, देवता का उपहार आएगा भूत, भविष्य और वर्तमान का तुम्हें ज्ञान हो जाएगा। 

भूतानन्द ने कहा अच्छा जी ! कहकर दण्डवत् डालें श्री चरणों पर नमस्कार किया और वहां से चल पड़ी। नेवासा नामक ग्राम को पहुंची, किसी से पूछा यह कौनसा गांव है ? उसे बत लाया कि यह नेवासा है। उस गांव में उसकी एक लड़की रहती थी। मन में आया कि लड़की को खड़े-2 मिल जाऊं पता नहीं दुबारा यहां आना होता है. या नहीं। लड़की के घर गई मिलकर जाने लगी। लड़की ने कहा माता ! यह क्या बात है अभी आई हैं और तुरन्त वापस क्यों जा रही हैं ? भूतानन्द ने कहा बेटी ! मुझे भगवान ने कोल्हापुर जाने की आज्ञा की है साथ में यह भी कहा है कि रिश्तेदारों को नहीं मिलना। 

लड़की ने कहा कोई बात नहीं खाना खाकर चली जाना। चावल पकाने लगी, चावल का गरम पानी हाथों पर गिर जाने से भूतानन्द का जाना रुक गया वह लड़की की सेवा करने लग गई । हाथ ठीक होने पर जाऊंगी सोच रही थी कि-लड़की को बच्चा हो गया उसकी सेवा करती रही। इस प्रकार ६ महीने बीत गए। भगवान की आज्ञा का पालन नहीं हुआ इसलिए जिस कार्य के लिए जाना था वह कार्य नहीं होगा यह समझकर वापस स्वामी के दर्शन के लिए आई सारी कथा कह सुनाई। स्वामी ने कहा यदि हमारी अजा पालन करती तो १ हजार साल की आयु बढ़ जाती, त्रिकाल ज्ञान होता उसकी तुलना में लड़की की सेवा क्या है ? स्वामी ने कहा तुम्हारे भाग्य में ही नहीं फिर कैसे हो सकता है ?

बहुत ही सोच-विचार करने वाली बात है एक साधारण सिद्धि प्राप्त कने के लिए स्वामी ने रिश्तेदारों को मिलने से रोका था और मोक्ष प्राप्ति के लिए तो रिश्तेदारों की मन में याद तक नहीं करनी चाहिए इतना बन्धन डाल खा है। क्योंकि परमार्थ के राह में सबसे अधिक रुकावटें डालने वाले रिश्तेदार ही हैं। क्या आज सभी महात्मा या बाईयों ने रिश्तेदारों का पूर्ण रुप से त्याग किया हुआ है ? यदि नहीं तो मोक्ष प्राप्ति की इच्छा व्यर्थ नहीं तो क्या है ? पहले समय में जितना पूज-पाठ, स्मरण वासनीक किया करते थे आज हमारे साधु महात्माओं से होना मुश्किल हो गया है। चाहे आश्रम हो, चाहे मठ-मन्दिर इतने काम बढ़ गए हैं कि उन्हें करते-2 समय नष्ट हो जाता है। 

पूजा-पाठ व स्मरण के लिए समय ही नहीं बचता। जैसे-तैसे समय बच भी जाय तो दूसरों के दोष दुर्गुण गलतियों का ध्यान ही करना पड़ता है। यदि कोई सन्मार्ग पर चल रहा है तो उस पर दोष कैसे लादे जाएं इसकी योजना बनानी पड़ती है। चाहे हमारे अन्दर असष्य दोष भरे हों। इधर-उधर को निन्दा चुगली करना भी जरूरी है। यह है अज कल की असतिपरी” इसके बिना मनुष्य अधूरा गिना जाता है।

मेरे धर्म बन्धुओं ! हमने मुक्ति का सौदा करने के लिए सब कुछ छोड़ा है खेई-गोई की न्याई द्रव्य और सम्बन्धियों का त्याग करके देखें कितना आनन्द आता है। जिस उद्देश्य को लेकर हम चल रहे हैं वह उद्देश्य पूर्ण होगा। साधनदाता हमारी इन्तजार कर रहे हैं । आजकल के वातावरण से हमारे स्वामी उदास न हो जाएं उन्हें हमारी नफरत न आ जाए इस ओर ध्यान देना बहुत जरुरी है। स्वामी ने हमें परस्पर प्रीति सौजन्य से रहने का आदेश दिया है उनका पालन करें। आप अनुभव करेंगे कि इस एक वचन के अनुष्ठान से ही स्वामी प्रसन्न हो जाएंगे। पग-२ पर हमारी सब प्रकार से सहायता होगी ।

Thank you

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