धन्य है भारत की महान माता मदालसा - bharat ki mahan mata madalasa

धन्य है भारत की महान माता मदालसा - bharat ki mahan mata madalasa

धन्य है भारत की महान माता मदालसा

Bharat ki mahan mata madalasa 

वह भी एक समय था जबकि माताएं अपने पुत्रों को सुपुत्र बनाने में अपना सौभाग्य मानती थीं। किसी कवि ने कहा है

जननी जने तो भक्त जन, के दाता के शूर । 

नहीं तो रहता बांझ भली, मत गवांवे नूर ॥

भावार्थ:- आनन्ददाता परमेश्वर का सृष्टि रचना के पीछे यही उद्देश्य था कि ये मनुष्य मेरी भक्ति करके मेरे आनन्द की प्राप्ति के योग्य बनें। अतः कवि संकेत करता है कि- माताओं ! यदि आपने बालकों को जन्म देना है तो उसे भक्ति की शिक्षा भी साथ में दो तथा दानी भी बनाओ और उनमें शूरता का होना भी जरुरी है क्योंकि इन तीनों गुणों से युक्त मनुष्य ही मनुष्य कहलाने के हकदार है । 

इन तीनों (भक्ति, दान और शूरता) के विरहित बालकों को जन्म देकर अपनी सुन्दरता को बरबाद मत करो। भवति गुण से ध्रुव, प्रल्हाद पाण्डवों का नाम मनुष्य मात्र के आता है और जब तक चन्द्र सूर्य जगमगाते रहेंगे गर्व के साथ लिया जाएगा। राजा हरिशचन्द्र, कर्ण, दधिचिऋषि तथा राजा शिबि की कथाएं पढ़कर मुख पर कंजूस आदमी को भी दान करने की प्रेरणा प्राप्त हो रही है और होती रहेगी : धर्म तथा प्रजा की रक्षा के लिए राजा मुचकुन्द, पाण्डव, बालक अभिमन्यु, छत्रपती शिवाजीराजे, गुरू गोविन्द सिंह अदि शूरवीरों की गाथाएं किसी से छिपी नहीं हैं।

राजा गोपीचन्द्र को उज्जैन का राजा बनाया तब सारे राज्य में खुशियां मनाई जा रही थी राजा को अनेक दास दासियां मालिश करके स्नान करवा रहे थे। माता छज़ के ऊपर बैठी हुई बिलख-2 कर रो रही थी। गरम-2 आंसू गोपीचन्द्र के ऊपर गिरने से उसने ऊपर देखा तो स्नान करना छोड़ दिया माता के पास जाकर रोने का कारण पूछा। माता ने कहा बेटा ! तप करने का फल राज्य है और राज्य करते हुए अनेक पाप भी होते है जिसके बदले में नरक भोगने पड़ते है इसलिए तुझको राज्य मिला है इसकी मुझे कोई खुशी नहीं है। जिस उद्देश्य (भक्ति) से परमात्मा ने तुझको यह सुन्दर मनुष्यदेह दी है वह उद्देश्य पूरा नहीं हो सकेगा कुछ दिनों के बाद यह सोने जैसी तेरी काया राख बनकर मिट्टी में मिल जाएगी। माता के वचनों का राजा के दिल-दिमाग पर बिजली की तरह असर हो गया। बिना स्नान किये ही जंगल की राह पकड़ । आज भी राजा गोपीचंद का नाम अमर हैं। 

रानी मदालसा श्री दत्तात्रेय प्रभु की अनन्य भक्त थी । संसार की यथार्थता को वह अच्छी तरह समझ चुकी थी । पुत्र पैदा हुआ उसे बारह वर्ष की आयु में हो ब्रह्मविद्या का उपदेश देकर श्री दत्तात्रेय प्रभु की शरण में भेज दिया। इस प्रकार ६ बालक उसने संन्यासी बना दिये। सातवां लड़का अर्लक जब बड़ा होने लगा तो राजा ने रोका कि-राज्य संम्भालने के लिए एक लड़का तो रहने दे सबको साधु बना रही है इस तरह वंश परम्परा किस तरह चलेगी। पति की आज्ञा मान कर उपदेश बन्द कर दिया। परन्तु माता की ममता थी कि मेरे उदर से जन्मा हुआ बालक राज्य भोग करके नरकों की तरफ नहीं जाना चाहिए। 

एक चिट्ठी लिखकर ताबिज में डालकर बन्द कर दो और अर्लक की भुजा पर बांध दी और कहा बेटा ! तेरी जिन्दगी में कोई कठिन समय आ जाए तो इस चिट्ठी को पढ़ लेना । अब तो रानी ने राजा से छुट्टी मांग ली कि- हमारा संसार हो चुका है, जिन्दगी के चार दिन भक्ति प्रभु में बिताना चाहिए । मदालसा श्री दत्तात्रेय प्रभु की शरण में चली गई। पिता की मृत्यु के बाद अर्लक राजगद्दी पर बैठकर खान-पान तथा भोग-विलासों में निमग्न रहने लगा उधर माता चिन्ता में घुल रही थी कि मेरा ! पुत्र भगवान की शरण में नहीं आया परन्तु अब उसका कोई चारा नहीं रहा था। 

माता को चिंतित देखकर दूसरे ६ पुत्रों ने आकर माता को चिन्ता का कारण पूछा तो मदालसा की चीख निकल गई आक्रोश पूर्वक रुदन करने लगी। आखिर कहा कि मैं एक चेतन शस्त्र निर्माण कर आई हूं। अर्लक अपनी जिन्दगी में जो भी पाप कर्म करेगा उसका निमित्त मुझे भी लगेगा, यह चिंता मुझे खा रही है। जब तक अर्लक भक्ति में नहीं लगता मुझे शान्ति नहीं आएगी। माता के दुःख को निवारण करने के लिए ६ ही भाईयों ने प्रण किया कि- माता, अर्लक को हम ज्ञान उपदेश करके तेरे पास लेकर आयेंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो तुझको मुख नही दिखलाएंगे।

माता का आर्शीर्वाद लेकर ६ ही योगी अर्लक के पास पहुंचे अपना पूर्व परिचय दिया कि हम तेरे भाई हैं। तू क्या कर रहा है ? राज्य और भोग विलासों के उपरान्त बड़े-2 नरकों का सामना करना पड़ेगा। परमात्मा को भक्ति में कितना आनन्द हैं यहाँ पर भी आनन्द और आगे भी आनन्द जन्म मृत्यु के बार-2 के दुःख परमात्मा की भक्ति से हमेशा के लिए कट जाते है । परन्तु अलर्क के दिमाग में भोग विलासों का भूत सवार था उसे भक्ति वाली बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी। 

भाई ने कहना नहीं माना इसका उन्हें दुःख तो हुआ परन्तु वे निराश नही हुए। वे अपने मामा काशी राज के दरबार में गए आशीर्वाद दिया राजा ने सेवा के लिए प्रार्थना की इन योगियों ने राजा से वचन लेने के बाद कहा कि हम अमुक राजा के सात पुत्र थे । हमारे छोटे भाई ने सारा राज-पाट सम्भाल लिया और हमें निकाल दिया है। पेट की आग बुझाने के लिए हमने साधुओं का वेष धारण किया है आप चाहते हैं तो हमारा राज्य का हिस्सा हमें दिलवा दें। 

काशीराज ने अपनी फौज भेजी जिसने अर्लक राजा की नगरी को चारों तरफ से घेर लिया। घमाशान युद्ध हुआ जिसमें अर्लक राजा की बहुत सारी सेना मारी गई। राजा गटर की नाली से रात के समय निकल कर जंगल में चला गया। इधर काशी राज की सेना ने किले पर कब्जा कर लिया राजा अलक को अपनी जान बचाने की चिन्ता थी तीनों तापों ने जब उसे घेर लिया तब उसे माता के शब्दों की याद आई। ताविज खोलकर देखता है तो उस में लिखा था कि- कष्ट के समय माहुरगढ़ आकर श्री दत्तात्रेय प्रभु के दर्शन करना। 

राजा ने माहुर का राह पकड़ा पहाड़ी पर चढ़ने लगा दिल में श्री दत्तात्रेय प्रभु के दर्शन की लगन तथा उत्कण्ठा थी। जिसको जानकर भगवान पहाड़ी के नीचे उत्तर आए बीच में ही मिलाप हो गया । श्री दत्तात्रेय प्रभु की मूर्ति को स्पर्श कर के आई हुई हवा ने जब राजा को स्पर्श किया तो उसका दुःख कम हो गया । 

राजा ने श्री दत्तात्रेय प्रभु के चरण पकड़ लिये । भगवान ने तीन बार 'शान्त हो' 'शान्त हो' कहा अलंक के तीनों ताप दूर हो गए। मदालसा ने जब देखा कि मेरा पुत्र भगवान के चरणों में लग गया तो उसे अपार हर्ष हुआ। उधर काशीराज की फौज का सन्देश पहुंचा कि अर्लक के राज्य पर कब्जा कर लिया है। राजा ने ऋषियों से कहा कि- जाओ अपना राज्य सम्भालो । योगियों ने कहा हम तो सच्चे साधु हैं हमें राज-पाट, धन-दौलत की जरूरत नहीं है।

जिस उद्देश्य को लेकर हम आये थे, भाई को परमेश्वर की भक्ति में लगाना था वह हमारा उद्देश्य पूर्ण हो गया है। अब राज की व्यवस्था आप ही करें। ६ ही भाईयों ने आकर माता को नमस्कार किया। सातों भाई और माता अब एकाग्रचित प्रभु भक्ति में लीन रहने लगे । इसी लिए लिखना ही पड़ता है कि माता हो तो मदालसा जैसी जिसने अपने सभी पुत्रों को प्रभु भक्ति में लगा दिया। भारत की माताएं धन्य है । अतः मानना ही पड़ता है कि

नोट :- आज हम सब का भी कर्तव्य बनता हैं कि-- अपनी सन्तान को परमेश्वर भक्ति में लगाते हुए शरम संकोच और स्वार्थ का त्याग करें



Thank you

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