श्रीकेशव व्यास सूरी का आदर्श जीवन - महानुभाव पंथिय इतिहास keshavvyas ji ka charitra mahanubhav-panth-history

श्रीकेशव व्यास सूरी का आदर्श जीवन - महानुभाव पंथिय इतिहास keshavvyas ji ka charitra mahanubhav-panth-history

 श्रीकेशवव्यास सूरी का आदर्श जीवन 

महानुभाव पंथिय इतिहास - Mahanubhav-panth-histoy

सुत्रपाठ के निर्माता श्रीकेशिराजव्यास जी का अल्प चरित्र स्मृतीस्थल में आया है। कटक (दौलताबाद) निवासी देमाइसा तथा वंकी नामक एक सद्भक्त दोनों को आचार्य जी ने गुरु मन्त्र दिया था। परन्तु वंकी दुर्व्यसनों में फंसा होने से कोई भी साधु उसको नहीं मिलते। केवल एक देमाइसा ही गुरु भाई के नाते उससे प्यार करती थी। एक बार केशव व्यास देमाइसा को मिलने के लिए गए थे। देमाइसा ने इन्हें भोजन का निमन्त्रण दिया साथ में ही बंकी को भी बुलाया। अलग कमरे में वंकी को बिठा दिया। केशव व्यास से वेमाइसा ने पूछा- केशव व्यास ! यदि आपकी अनुमती हो तो वंकी को भी भोजन के बुला लू ?

उन्होंने कहा वह दुर्व्यसनी है अतः उसे नहीं बुलाना चाहिए । देमाइसा ने वंको को पशुओं के कोठे में बिठाकर भोजन परोस दिया । भोजन के समय वंकी ने श्री चक्रधर नाम का उच्चारण किया। जिसको सुनकर केशव व्यास ने पूछा, देमाइसा! यहां पर स्वामी का नाम लेने वाला कौन व्यक्ति है? उसने कहा यदि आप क्रोध न करें तो बतलाती हूं। केशव व्यास के मान लेने पर, देमाइसा ने कहा कि स्वामी का कथन है कि संसार में परमेश्वर दुर्लभ है या उसका स्मरण करने करने वाले दुर्लभ हैं। इस बात को ध्यान में रखकर मैंने आपकी अनुमती के बिना ही वंकी को भी बुलाया है। केशव व्यास ने कहा तुमने अच्छा किया। उसको यहां पर बुलाकर लाओ। 

वंकी को बुलाने पर अन्दर आकर केशव व्यास के सम्मुख दण्डवत डालकर कहा आप स्वामी से प्रार्थना करके मेरे सभी अपराधों को क्षमा करवाईए। केशव व्यास ने उन्हें समझाया कि पहले अपराधों के लिए दुःख पूर्वक क्षमा याचना करो तथा भविष्य में दुबारा उन दोषों को नहीं अपनाना। दुर्व्यसनों से ही मनुष्य की दुर्गती होती है अतः दुर्व्यसन और दुर्व्यसनी से दूर रहना चाहिए । वंकी ने अनुतप्त होकर क्षमा याचना की अतः केशव व्यास ने उनके साथ बैठकर भोजन किया। कुछ दिनों के बाद वंकी ने आचार्य जी के पास जाकर संन्यास धारण कर लिया।

केशवव्यास ने एक दिन एक महात्मा को गंगा किनारे पर मिक्षा की झोली में भोजन करते हुए देखा। आश्रम में आने पर आचार्य जी के सन्मुख उसको में कहा, महात्मन् ! तुम झोली में ही भोजन कर रहे थे । उसने कहा मुझको किसने देखा ? क्रोधित होकर केशव व्यास ने कहा मैंने देखा है। आपको इस प्रकार देखकर लोग निंदा करेंगे । आज से लेकर यदि कोई भिक्षा की झोली में भोजन करेगा उसको आचार्य जी की सौगन्ध है। आचार्य जी ने भी सम झाया कि अलग पात्र में लेकर भोजन करना चाहिए। तब से कोई भी में भोजन नहीं करता था।

एक दिन आचार्य जी की एक शिष्या गौराइसा ने प्याज की बढ़िया सब्जी बनाई। भोजन के समय आचार्य जी सहित सभी पंगती में बैठे हुए थे। केशव व्यास पण्डित बास पास-पास बैठे हुए थे। केशव व्यास ने सब्जी को देखकर गौराइसा को पूछा यह सब्जी किस चीज की बनाई है ? गौराइसा ने कहा प्याज की। केशवव्यास ने कहा आज से आगे प्याज की सब्जी मत बनाया करना। यदि बनाओ गी तो तुमको आचार्य जी की सौगन्ध है। तब से महानुभाव आश्रम में प्याज की सब्जी बनाना बन्द कर दिया । इस बातपर आचार्य जी ने कहां जो भी महात्मा प्याज खाएगा वो परमेश्वर मार्ग का महात्मा नहीं है। 

एक बार केशव व्यास, पण्डित व्यास, कविश्वर व्यास आदि दो-चार महात्मा जा रहे थे। सिर्फ केशव व्यास के पैरों में चप्पलें थी। एक राहगरी ने देखकर कहा, कि ये सभी साधु-महात्मा परमेश्वर मार्ग के हैं परन्तु यह चप्पल वाला नहीं लगता। केशव व्यास ने यह सुनकर अपने आपको धिक्कार देते हुए कहा, इन चप्पलों के कारण में भट का मार्ग नहीं बन सका हूं। यह कहकर तुरन्त ही उन्होंने चप्पलें तोड़कर फेंक दी। आचार्य जी ने यह वृतांत सुनकर प्रसन्नता पूर्वक कहा, केशव व्यास ! सचमुच ही तुम मेरे परमेश्वर मार्ग के सच्चे सुच्चे महात्मा हो ।

एक दिन आचार्य जी ने केशव व्यास की प्रशंसा करते हुए कहा, केशव व्यास मेरे द्वारा उपदेश किए हुए ब्रह्मविद्या शास्त्र में संशय नहीं है तुम्हारे द्वारा किए गए प्रयत्न से भविष्य में होने वाले मार्ग के झगड़े समाप्त होंगे।

एक दिन आचार्य जी उपदेश कर रहे थे। कविश्वर व्यास संस्कृत के गाढ़े विद्वान थे। आचार्य जी से उन्हें बहुत देर तक चर्चा करुते हुए देखकर ! केशवव्यास ने उन्हे कहा, श्रीमान जी ! आचार्य जी के साथ इतना वाद-विवाद करना उचित नहीं है। ऐसा करने से अधिकरण की प्रसन्नता नष्ट होती है। अतः शास्त्र सिद्धि में रुकावटें आती हैं। आचार्य जी जो कुछ कह रहे हैं ईश्वर वाणी है। जिस प्रकार वे बतला रहे हैं श्रद्धा पूर्वक ग्रहण करो । इस समय यदि आपकी समझ में नही आ रहा है। एकान्त में बैठकर स्वयं ही अयोग्यता समाप्त हो जाने पर अपने आप समझ अ जाएगा।

एक दिन आचार्य जी ने केशव व्यास तथा पण्डित व्यास से कहा, अहंकारी तथा पदार्थ (द्रव्य वस्त्रादि) का संग्रह करने वाले को ज्ञान उपदेश मत करना । आचार्य जी की आज्ञाओं को वे सदैव सिरसावंद्य मानते थे । केशव व्यास पर आचार्य जी अति प्रसन्न रहते थे । एक दिन केशव व्यास, पण्डित व्यास और राघव भट्ट को धर्म चर्चा में संलग्न देखकर उनकी प्रशंसा करते हुए आचार्य जी ने कहा, इन तीनों को विधि व्यतिरिक्त कोई दिखाएगा उसके साथ मैं शर्त लगाने के लिए तैयार हूं अर्थात् उसको महावाक्य सुनाऊंगा। आचार्य जी इन तीनों को साथ-२ उठते बैठते देखकर कहा करते :

“एक मूर्ति त्रयो भागा, राम, पण्डित केशव देया" अर्थात् राघवभट्ट दामोदर पण्डितव्यास और केशव व्यास एक मूर्ति के ही तीन भाग हैं ।

एक बार पण्डित व्यास तथा केशव व्यास साथ-२ जा रहे थे । मुसलमानों ने पण्डित व्यास पर तलवार का वार किया, यह देखकर केशव व्यास आगे हो गए । पण्डित व्यास तो बच गए परन्तु केशव व्यास अपने प्रिय गुरु बन्धु को बचाकर स्वयं देव दर्शन को चले गए । उन्होने ओडवन करके सर्वश्रेष्ठ प्रेमोपाय का आचरण कीया। केशव व्यास जैसे विद्वान्, ज्ञानी, तपस्वी, विरक्त और भक्तिवान पुरुष जिन्होंने परोपकार के लिए अपने जीवन को आहुती दे डाली क्या ऐसे महापुरुषों के दर्शन आज हमें हों सकते हैं ?

साधनदाता ऐसे महापुरुषों को दुबारा पंथ सेवा के लिए भेजें यह आशा रखते हुए केशव व्यास जी का अल्प जीवन चरित्र पाठकों की सेवा में पेश किया है। मेरा पूर्ण विश्वास है कि पाठक इससे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयत्न करेंगे ।


श्रीकेशिराजव्यास जी का 👇 पूर्वचरित्र पढे 👇

https://knowledgepanditji.blogspot.com/2022/03/mahanubhav-history.html

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