प्रश्न :- एक बार गुरु करने पर दूसरा गुरु करना चाहिए या नहीं? महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता

प्रश्न :- एक बार गुरु करने पर दूसरा गुरु करना चाहिए या नहीं? महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता

महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता - 

प्रश्न :-  एक बार गुरु करने पर दूसरा गुरु करना चाहिए या नहीं ?

 उत्तर :- जिस तरह किसी स्कूल में चार क्लास तक ही पढ़ाई होती है. और दूसरे स्कूल में आठवीं तक पढ़ाई होती है. तो पहले स्कूल से बालक को निकाल कर दूसरे स्कूल में भर्ती करना ही लाभदायक  होता है. उसी तरह ज्ञान नहीं होने से मनुष्य देवी - देवता की भक्ति में लग जाता है. देवता भक्त गुरु से नाम ले लेता है. कुछ समय के बाद परमेश्वर भक्तों का सम्पर्क आता है. तो आत्म - कल्याण के इच्छुक को चाहिए कि - देवता भक्ति छोड़ कर परमेश्वर के ज्ञानी - महात्माओं को गुरु धारण करे.

ऊँची क्लास छोड़ कर निची क्लास में अभ्यास करना गलत है. और निची क्लास छोड़ कर ऊँची क्लास में बैठना उचित है , उसी तरह देवता भक्ति छोड़ कर परमेश्वर की भक्ति करना इष्ट - दायक है. वैसे ही परमेश्वर भक्तों में भी कोई ज्ञानी है , कोई भक्तिवान् है और कोई विरक्त है. प्रथम किसी एक गुण वाले गुरु को धारण किया हो और संयोग वश तीनों गुणों से युक्त महात्मा का योग आ जाए तो उनको गुरु धारण करना भी इष्टदायक है. इसका अर्थ यह नहीं कि पहले गुरु का त्याग  कर दिया. प्रथम गुरु से आज्ञा लेकर दूसरे गुरु का सन्निधान करना चाहिए.

लेकिन आजकल के समाज में देखने को यह मिलता है. की उपाधि मंत गुरु हम करते हैं. उस गुरु में ज्ञान भक्ति वैराग्य हो जा ना हो वह उपाधि मंत है ना उसके पीछे पीछे भागते हैं. जो कि गलत है. शुरुआत में हमें कुछ समझ नहीं होती हम देवता भक्ति छोड़कर परमेश्वर की भक्ति शुरू करते हैं. उस टाइम पर हमें कुछ भी ज्ञान नहीं होता जिस गुरु से हमने नाम लिया उनमें सिर्फ भक्ति है. ज्ञान कम है. हम उन गुरुजी से विनम्र प्रार्थना  करके किसी भी ज्ञात विरक्त भक्ति बान गुरु जी के सन्निधान में जा सकते हैं. इस में कोई दोष नही हे कुछ भी गलत नही है. 

कुछ लोगों का प्रश्न यह भी है कि दूसरा गुरु करने से हमें पाप तो नहीं लगेगा ? नहीं जैसे एक उदाहरण दिया छोटी क्लास से बड़ी क्लास में एंट्री करना बहुत अच्छी बात है. छोटी क्लास के गुरु जी छोटी क्लास को ही पढ़ाते हैं. बड़ी क्लास के लिए दूसरे गुरु होते है. वह बड़ी क्लास को ही पढ़ाते हैं. अगर संसार में एसा व्यवहार है.  एक क्लास के गुरु को छोड़कर दूसरे क्लास के गुरु के पास जा सकते हैं. बच्चे की भलाई के लिए तो. 

वैसे ही दैवराहाटी में भी हम एक गुरुजी से परवानगी लेकर बड़े गुरु ज्ञान भक्ति वैराग्य युक्त गुरु के पास जा सकते हैं. उनका सन्निधान कर सकते हैं. उनसे हम पढ़ लिख सकते हैं. यह कोई दोष नहीं कोई पाप नहीं है। कर्मरहाटी में एक कहावत भी है जो कि हमारे इधर इतनी लागू तो नहीं होती लेकिन फिर भी आंशग्राही है कहावत है. (पानी पीना छान के गुरु करना जान के ) सिर्फ उपाधिमंत है गुरु तो उसी के पीछे पीछे भागना यह हमारा दोष है जो की ये गलत है. 

हम लोगों को परमेश्वर से मिलना है हमारा मकसद हमारी मंजिल परमेश्वर को प्राप्त करना है उसके लिए हमने सोच समझकर किसी को ना दुखाकर ना को नुकसान पहुंचा कर हमने परमेश्वर की प्राप्ति करनी है. परमेश्वर से मिलना है । परमेश्वर के लिए उसकी प्राप्ति करने के लिए हमने सब कुछ छोड़ दिया और फिर बाद में सिर्फ उपाधि मंत व्यक्ति के पीछे ही भावना शुरू कर दिया इससे हमें परमेश्वर प्राप्ती नहीं होगी. 

परमेश्वर प्राप्त होगा किसी ज्ञात विरक्त साधु संत महात्मा अधिकरण गुरु जन का सन्निधान करके उस परमेश्वर का यथार्थ ज्ञान बताने वाले यथार्थ ज्ञान भक्ति वैराग्य युक्त गुरु सन्निधान करके. और हां जब जहां जैसे इसकी समझ आ जाए यथार्थ ज्ञान की हमने तभी वैसे ही ज्ञान युक्त गुरु को धारण कर लेना चाहिए. हमने किसी के दोष नहीं देखने किसी के भी नहीं गुरु के तो बिल्कुल भी नहीं अगर हम ऐसा करते हैं तो गुरु द्रोही दोष घड़ेगा विपरीत दोष घडेगा जो कि हमें परमेश्वर तक ले जाने वाले रास्ते की  रुकावट बन जाएगा बंद कर देगा दोष किसी के भी दोष नहीं लेने बस अपनी बुद्धि का उपयोग करके अपनी आत्म कल्याण और परमेश्वर प्राप्ति को ध्यान में रखकर किसी अच्छे ज्ञात विरक्त आचरण शिल ज्ञानी का संग संघात करना है. उसके सन्निधान में रहकर परमेश्वर का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना है मेरे लिखने में बहुत सारी त्रुटि हो सकती है इसके लिए मैं गुरु जन गुरु बंधु सभी साधु संतों से सभी से क्षमा चाहता हूं.....



Thank you

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