संसार यह लम्बा स्वप्न है- महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता-sansar ek lamba swapna hain Mahanubhavpanth dnyansarita

संसार यह लम्बा स्वप्न है- महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता-sansar ek lamba swapna hain Mahanubhavpanth dnyansarita

 संसार यह लम्बा स्वप्न है- महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता-sansar ek lamba swapna hain Mahanubhavpanth dnyansarita 

हमारे साधन दाता सर्वज्ञ श्री चक्रधर महाराज ने इस दुःख मय संसार को लम्बा स्वप्न बतलाया है। स्वप्न एक ऐसी अवस्था है जिसमें नाना विध सख दुःखों का अनुभव होता है परन्तु जागने पर कुछ भी नहीं रहता जैसे स्वप्न में बहुत सारा द्रव्य मिल जाता है उसे बड़े यत्न के साथ मनुष्य सम्भा लता है, हाथी के ऊपर बैठकर सैर कर रहा है, मान-सम्मान प्राप्त होता है विविध प्रकार के पदार्थ खाता है परन्तु उठने पर कुछ भी नहीं रहता उसी तरह दुःख के भी नाना-विध प्रसंग सा ने आते हैं जागृत होने पर न तो सुख रहता है न दुःख । 

स्वप्न में किए हुए कर्मों का लेप नहीं लगत उसका फल नहीं भोगना पड़ता परन्तु मनुष्य जन्म में आठ साल के बाद में किए हुऐ अच्छे बुरे या मिले सभी कर्मों का लेप (चिन्ह) लगता है जिसका भोग, भोगे बिना गति नहीं। स्वप्न कहने का तात्पर्य इतना ही है कि बहुत थोड़ें स य में ही जीव कहां का कहां पहुंच जाता है उसे बहुत लम्बा दिखाई देता है परन्तु वह घटना 15 मिनट या आधे घण्टे की ही होती है। 

वैसे ही मनुष्य की जिन्दगीं थोड़े समय में ही समाप्त हो जाती है। जन्म लिया बचपन खेल-कूद या पढ़ने में बीत जाता है। तरुण अवस्था कमाना या परिवार पालन में बीतती जाती है साथ ही साथ लेन-देन लड़ाई झगड़े क्रोध, मत्सर, निन्दा-चुगली करते हुए समय का पता ही नहीं चलता उत्तर अवस्था बुढापे में शरोर के थक जाने से इन्द्रियां जर जर हो जाती है जिससे चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकता। 

जो भी पाप कर्म जवानी में किए उनका चिन्तन करते हुए पछताता रहता है शिवाय रिश्तेदार कहना नही मानते पराधीनता से इतना दुःखी हो जाता है कि मौत के मुख में जाने की इन्तजार करता है। संसार को लम्बा स्वप्न कहने का स्वामी का तात्पर्य यही है कि स्वप्न में पराई वस्तुओं को इन्सान अपनी सम झता है यह अपनी नहीं है। न तो साथ में आई थीं और न ही साथ में जानी हैं। एक परमात्मा ही जीव की सच्ची सम्पत्ति और वही हमेशां साथ देने वाली है उसे ही अपनाना चाहिए ।

विकल्प दोष महान

परमार्थ में रूकावट डालने वाले अनेक दोष हैं, उनमें विकल्प दोष सबसे बड़ा माना गया है। दूसरे दोषों का त्याग हो सकता है, परमेश्वर माफ कर देते हैं परन्तु विकल्प दोधी के ऊपर दयालु परमात्मा को दया नहीं आती। 1) विकार (2 हिंसा (3) विकल्प (देवता भक्ति में जाना) ये तोनों प्रमुख दोष हैं। विकार दोष की अपेक्षा हिंसा का दोष अधिक है और हिंसा की अपेक्षा विकल्प दोष बड़ा है। 

यह सिद्धांत समझने के लिए स्वामी ने दृष्टांत देकर समताया है कि एक स्त्री अपने पिता और भाई के पास उठती बैठती है उसके पति को गुस्सा तो आता है परन्तु कुछ कर नहीं सकता। यदि वही स्त्री पराये पुरूष से सम्पर्क रखना शरू कर दे तो उसका पति उसे किसी भी हालत में माफ नहीं करता, हो सकता है उसका सिर धड़ से अलग कर दे। 

वैसे ही ये जीव थोड़ा धर्म कर्म करते हैं या छोटी छोटी गलतियां भी कर जाए परन्तु माफी मांग ले तो परमात्मा क्षमा कर देते हैं। परन्तु विकल्प दोषी का वैसा नहीं है। विकल्प दोषो को माफी मांगने की इच्छा ही नहीं होती यदि किसी की प्रेरणा और दबाव से माफी मांगता है तो भी परमात्मा को उस पर दया नहीं आती माफी नहीं मिलती। इस लिये साधकों ने बड़ी हो सावधानी से बर्ताव करना चाहिए । देवता सम्बन्धि स्थान पर न जाएं। देवताओं का झूठा प्रसाद न खाएं, नमस्कार न करें, यहां तक कि देवता भक्तों का सम्पर्क भी न आने दें

जिस तरह शराबी कबाबी के सम्पर्क में रहने वाला एक न एक दिन शराबी- कबाबी बन जाता है। या वेश्या का संग करने वाली पतिव्रता स्त्री पतिव्रता नहीं रह सकती अथवा लस्सी और दूध एक बर्तन में नहीं रह सकते उसी तरह परमेश्वर का अनन्य भक्त देवता भक्तों के साथ रहकर, अनन्य भक्त नहीं रह सकता।

कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि - आजकल हमारे कुछ महात्मा ज्योत विद्या जानते हैं। टेवा या जन्मपत्री बनाते हैं. इन्हें क्या कहा जाये ? विद्या शास्त्र में इन लोगों के लिये कोई जगह नहीं है। स्वामी ने ज्योतिष, सामुद्रिक और वैद्यक शास्त्र का त्याग करने की आज्ञा की हुई है। द्रव्य या मान-सम्मान के लिये यदि कोई ज्योतिष आदि का सहारा लेता है तो उसे जय कृष्णी महात्मा नहीं समझना चाहिये। ऐसे लोगों पर परमात्मा की प्रसन्नता नहीं हो सकती। 

जब प्रसन्नता ही नहीं तो योग्यता आदि का होना लाखों कौस दूर है। ऐसे व्यक्ति धर्म के नाम पर लोगों से पैसा बटोरते रहते हैं यदि किसी के ध्यान में यह बात आ जाए तो उस व्यक्ति का सम्बन्ध तोड़ देना चाहिए। महात्मा वेष धारण किया हुआ है और वह सचमुच में महात्मा नही है। देखने तथा सुनने में आता है कि ऐसे लोग भोले-भाले भक्तों को झूठमूठ ग्रहों से प्रभावित बताकर पूजा-पाठ करवाने के लिए मजबूर करके हजारों रुपये ऐंठते रहते हैं ।

तात्पर्य परमात्मा की कृपा. प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए कोशिश यही करें कि कोई छोटी गलती भी हमारे से न हो। ना समझी या अनजानपन में कोई गलती हो जाय तो तुरन्त प्रायश्चित करके अपने आपको निर्मल बनाए रखें। गलती को कभी भी छोटा न समझें इतने से क्या होता है ऐसा न कहें। साथ ही साथ दोषी या गलत व्यक्तियों के सम्पर्क में न जाएं।

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