भाग 01 धर्म और विज्ञान महानुभाव पंथिय ज्ञान सरिता
कै. महंत आचार्य श्री ऋषिराजबाबाजी उर्फ श्रीदर्यापूरकरबाबाजीद्वारा अभिव्यक्त विचार धर्म और विज्ञान, अहिंसा तथा एकता
संकलक - प्रेमराज नरूला प्रेममुनी पंजाबी, - तृतीय विश्व धर्म संमेलन दिल्ली २६-२८ फरवरी १९६५
श्रीजयकृष्णी धर्म की और से श्रीजयकृष्णी प्रतिनिधि सभा पंजाब व फ्रांटियरके मुख्य प्रतिनिधिके रूपमें आज के ज्ञानसूर्य महात्मा श्रीऋषिराजबाबाजीने दि. २६-२८ फरवरी, १९६५ को दिल्ली में हुए तृतीय विश्वधर्म संमेलनमें भाग लेकर एक महत्वपूर्ण कार्य किया है।
आदरणीय महात्मा ऋषिराज के ब्रह्मविद्या- ज्ञान, तपस्या और वैराग्य वृत्तिके विषयमें प्रायः सभी धर्मजन परिचित हैं। उन्होंने इस विश्व-धर्म संमेलनके अवसरपर 'धर्म और विज्ञान', 'धर्म और एकता' तथा 'धर्म और अहिंसा' विषयोंपर वक्तव्य दिया था। उनके उन विचारोंको सर्वजन उपयोगी समझते हुए मूलरूपमें प्रकाशितकर धर्म-बंधुओं और वहिनोंको समर्पित करनेका सौभाग्य हमें प्राप्त हो रहा है।
सभाकी पत्रिका 'ब्रह्मवाणी' में इन विचारोंको संभवतः क्रमशः स्थान दे दिया जाता परंतु उनके ये 'विचार' एकत्र न मिल पाते इस हेतु इन्हें इस रूपमें प्रकाशित करनेका विचार किया गया है।
जनसाधारणकी भाषा होनेके नाते महात्माजीने अपने 'विचार' मूलरूपमें हिंदीमें ही अभिव्यक्त किये थे । अहिंदीभाषी धर्मबंधुओंकी सुविधाके लिए अन्य भाषाओंके रूपमें इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत करनेकी आज्ञा महात्माजीसे प्राप्त कर ली गई है तथा इसके साथ वह भी अलग रूपसे प्रकाशित हो गया है। दि. १५ मे १९६५
सैह्यांचळाचिये चुळके जयाचे प्रभामंडळ फाके तो श्रीदत्त ललाट फळके, नमस्करित असे ||१||
नमिन यादव कुलतिल्लकु, जा कैवल्यलताकुसुमस्तबकु उदयला आनंद मृगांकु, मोहांधकारी ॥२॥
चैतन्याचिया आळा, कैवल्य द्रुम कोंभैला तो चांपेगौर अभिवंदिला, श्रीचक्रधरू ||३||
अर्थात् सिंहाद्रिके शिखरपर जिसका ज्ञानप्रकाश विस्फारित होता है, उस परब्रम्हा अवतार भगवान् श्रीदत्तात्रेयजीके चरणोंपर मस्तक रखकर प्रणाम करता हूँ। यादव- कुलतिलक, कैवल्यलता - कुसुम- मोहरूपी अंधकारमें उदय होनेवाले आनंदकंद स्तबक, भगवान् श्रीकृष्णके पदकमलोंपर साष्टांग नमस्कार करता चैतन्य मायाकी भूमिपर जो कैवल्य वृक्ष अंकुरित हुआ उस चंपाके पुष्पके समान कांतिवाले, ज्ञानचक्रको धारण करते हुए अज्ञानका नाश करनेवाले पूर्ण अवतार भगवान श्रीचक्रधरजीको अभिवंदन करता हूं।
निवेदन
ओ विश्वकर्त्ता, विश्वभर्त्ता, विश्व उद्धरता हरे ! विश्वके सब धर्म आकर आपके पगमें पड़े। चाहते विश्वमें सुख शांति बंधुभावको सफल करें निज कृपासे इस उच्चतर सद्भावको । समता, अहिंसा, प्रेमका सर्वत्र प्रादुर्भाव हो आत्मौपम्य भावसे यह एकता साकार हो । मानवके अंतःकरणमें तव चरणका अनुराग हो न द्वेषकी अग्नि जले न वासनाकी आग हो । श्रद्धासे नत मस्तक होकर शुभ कार्यमें हम सनें कौन-सा वह कार्य है कि आपसे जो न बने ।
(संमेलन प्रारंभ होनेसे पूर्व सब धर्मोके मुख्य प्रतिनिधियोंने अपनी अपनी प्रार्थनाए पढ उपरिलिखित दोनों प्रार्थनाएं महात्मा ऋषिराजबाबाजीने प्रभुके चरणो में समर्पित कीं)
धर्म और विज्ञान
विश्वबंधुओ ! आज बडे आनंदका विषय है कि हम विश्वपिताके पुत्र मानवजातिके कल्याणके लिए एकत्र बैठकर आध्यात्मिक तत्त्वोंपर विचार-विनिमय कर रहे हैं अध्यात्मतत्त्व बडा महत्त्वपूर्ण एवं मौलिक विज्ञान है। यह बात और है कि इस विज्ञानकी पाठशाळमें जो नहीं पढे या इस विज्ञानके प्रयोग जिन्होंने नहीं किये वे इसका महत्व नहीं जानते इस विज्ञान में जो आविष्कार पाये जाते हैं उनका वर्णन किन शब्दोंमें किया जाए, यह पता नहीं चलता
इस विज्ञानमें स्वतः सिद्ध, सर्वशक्तिमान, सर्वश्रेष्ठ, सर्वज्ञ और सर्वव्यापक उस परमात्माकी प्रत्यक्ष अनुभूति मिलती है, जिसके अस्तित्वके विषयमें कुछ लोग संदेह करते हैं और कई तो उसके बारेमें कुछ नहीं सकते। वास्तवमें उसकी इच्छामात्रसे, उसके संविधान द्वारा यह सृष्टिचक्र चलता है और वह परमात्मा जीवों का आत्यंतिक कल्याण करनेके लिए विश्वमें समयसमयपर प्रकट हुआ करता है।
इस विज्ञानमें उस जीवात्माका दर्शन होता है, जो अपने शुभ-अशुभ कर्मोंके अनुसार बारबार जन्म लेकर सुख-दुःखोंको भोगता हुआ देखा गया है। इस विज्ञानमें उन शक्तियोंका पता चलता है, जो उस जगदाधार परमात्माकी आज्ञा और विधानके अनुरूप जगत्का कार्य चलाती है।
भौतिक विज्ञानके आविष्कारोंसे जिनकी आँखे चकाचौंध हो जाती हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस अध्यात्म-विज्ञानमें जो आविष्कार मिलते हैं, उनके सामने भौतिक विज्ञानके आविष्कार तुच्छ और त्याज्य है, इसलिये इसे राज-विज्ञान कहा जाएगा। भूलवश जो लोग उस जगत्पिता परमात्माके अस्तित्वपर विश्वास नहीं करते, उनका इस विश्व-धर्म मंचसे आवाहन करना चाहूँगा और डंके की चोटपर यह कहना पडेगा कि आइये, आप जरा आगे बढिये, इस अध्यात्म-विज्ञानका अध्ययन कीजिये ।
आपको यह कूपमंडूकवृत्ति छोडनी पडेगी और इस अध्यात्मविज्ञानके प्रात्यक्षिक प्रयोगोंका अनुभव करना होगा। यह प्रत्यक्ष है, साक्षात् है, तर्कशुद्ध और अनुभवसिद्ध है। यहां किसी प्रकारका संदेह करनेके लिए कोई स्थान नहीं हाँ, यह बात अवश्य है कि इसका प्रयोग आपको स्वयं अपनेपर करना पडेगा और इसका प्रयोग करते समय आपको इस विज्ञानके सिद्धांतोंके अनुसार चलना होगा। फिर आपको सभी प्रकारकी अनुभूतियां मिलेंगी, जिनको पाकर आपके सभी दुःख मिट जायेंगे, अपार शांति प्राप्त होगी, असीम संतोषका अनुभव करोगे,
अक्षय आनंदकी अनुभूति होगी, अथाह सुखके सागर में मग्न हो जाओगे, इसमें तनिक भी संदेह मत करो। इस वर्तमान युग में अध्यात्म-विज्ञानके के सिद्धांतों के अनुसार हमें भौतिक विज्ञानका उपयोग करना चाहिए। ऐसा करनेसे ही भौतिक विज्ञानके कुछ आविष्कारोंके फलस्वरूप मानव संसारमें जो मतभेद, भय और संघर्ष दिखाई दे रहे है और परिणामतः जो मानव जाति व्याकुलसी लग रही है वह निर्भय, शांत, सुखी और बंधुभावसे संतुष्ट रह सकेगी ।
इसलिए अध्यात्म-विज्ञानके अनुशासनमें भौतिक विज्ञानका उपयोग करनेके लिए प्रत्येक राष्ट्रके राज्यकर्ताओंको अपनाअपना एक विशिष्ट धार्मिक पुरुषों का मंडल स्थापित करना चाहिए। वे धार्मिक-पुरुष राजनीतिज्ञ भी हों उस मंडलकी अनुमतिसे शिक्षा, राज्य-व्यवस्था और विज्ञानका उपयोग किया जाए। ध्यान रहे कि, राजनैतिक पुरुषोंकी अपेक्षा धार्मिक पुरुषोंकी बुद्धि तथा विचार- शक्ति सूक्ष्म और गहरी होती है।
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