क्षमा - सेवा - पद प्रेरणादायी सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानीयां -
Three Best Motivational Stories in hindi
सेवाधर्म निभाओ
एक व्यक्ति ने बचपन में ही घरबार छोड़ संन्यास ले लिया. उसने ब्रह्मचारी रहकर घोर तपस्या की. गृहस्थाश्रम को बंधन मान सारा वक्त उपासना में गुज़ारता रहा. भिक्षाटन से पेट भरता व दिन भर भक्ति में जुटा रहता. ऐसे ही उसने आखिर देह त्याग दिया. यमदूत उसे लेकर चित्रगुप्त के पास पहुँचे. चित्रगुप्त ने उसका खाता देख गंभीर होकर कहा, तुम्हें तो दोबारा पृथ्वी पर जन्म लेना होगा.
वह बोला, भला क्यों? मैंने मोहमाया घृणा व अहंकारादि तमाम बुराइयों को तिलांजलि देकर शुद्ध मन से ईश्वर की आराधना की है. प्रभु की भक्ति के सिवा मैंने जीवन में कुछ नहीं किया ताकि मुझे दोबारा पृथ्वी पर जन्म न लेना पड़े. मुझे तो मोक्ष मिलना चाहिए.' चित्रगुप्त बोले, तुम्हारी बात सही है कि मोहमाया त्यागकर तुम सदा उपासना में ही जुटे रहे. तब भी तुम्हें मोक्ष नहीं मिल सकता.' 'क्यों? यह तो सरासर अन्याय है.' हताशा में उसने पूछा.
चित्रगुप्त बोले, यहाँ किसी के साथ अन्याय नहीं होता. सबको न्याय मिलता है. जानना ही चाहते हो कि मोक्ष के अधिकार से तुम्हें क्यों वंचित रखा जा रहा है तो सुनो. पृथ्वी पर जितने प्राणी जन्मते हैं उनका कुछ न कुछ समाज के प्रति उत्तरदायित्व होता है. मनुष्य योनि में जन्म लेनेवाले प्रत्येक प्राणी का सबसे बड़ा धर्म है कि वह सर्वप्रथम प्राणपन से मानवधर्म की सेवा करे; अपने परोपकारों से दूसरे के दुखदर्द दूर करे. 'पर' के काम आये और उनका सहारा बने. तुमने तो इनमें से एक भी कर्म नहीं निभाया. तुम्हारा ध्यान तो सिर्फ अपने मोक्ष पर ही अटका रहा. इसीलिये तुम्हें अपना अधूरा कर्म पूरा करने के लिये दोबारा पृथ्वी पर वापस भेजा जा रहा है.'
कहानी 02 - क्षमा करना सीखो
राजस्थान के रेगिस्तान में दो मित्र कही जा रहे थे. उनमें किसी विषय को लेकर विवाद छिड़ गया था। और काफी देर तक बहस करने पर भी वे दोनों एकमत नहीं हो पा रहे थे. विवाद करते-करते बहस बढ़ी और उनमें से एक ने दूसरे मित्र के मुँह पर जोरसे तमाचा जड़ दिया. वह मित्र काफी आहत हुआ पर उसने कोई भी प्रत्युत्तर नहीं दिया। वह चलते-चलते थोड़ा आगे गया और मित्र को बिना कुछ कहे उसने रेत पर लिख दिया-’आज मेरे सबसे प्रिय मित्र, सखा ने मुझे जोरसे थप्पड़ मारा है! में दिल में काफी आहत हूं'
आगे दोनों साथ चलते रहे - चलते रहे. आगे चलकर एक जगह थंडा पानी देखकर नमस्कार उन्होंने तन मन की थकावट दूर करने के लिये तालाब में नहाने का मन बना लिया. जिस मित्र को थप्पड़ पड़ा था, वह नहाते हुए तालाब की दलदल में फँस गया और धीरे धीरे डूबने लगा. मगर दूसरे मित्र ने हिम्मत करके उसे बचा लिया. बचने के बाद उसने साभार, सजल नेत्रों से एक पत्थर पर पत्थर से खोदकर लिख दिया- 'आज मेरे सबसे परम मित्र ने मेरी बेशकिमती जान बचायी! अगर आज वह न होता तो शायद मैं बच नहीं सकता था., मुझे इस संसार से विदाई लेनी पड़ती है. '
पहले मित्र ने पूछा, जब मैंने तुम्हें जोर से थप्पड़ मार के आहत किया तब तुमने रेत पर लिखा और बाद में जब तुम्हारी जान बचाई तब तुमने इतने कष्ट से पत्थर पर लिखा. क्यों ? तुम यह बात फिर से रेत पर लिख सकते थे?'
दूसरे ने उत्तर दिया, “मित्र जब कोई हमे आघात पहुँचाता है तब हमें रेत पर ही लिखना चाहिए; क्योंकि सही समय आने पर उसे क्षमा रूपी वायु खुद मिटा देगी. परंतु जब कोई हमारे उपर उपकार या अनुग्रह करता है तब हमें पत्थर पर खोद देना चाहिए ताकि उसे कभी मिटाया या भुलाया न जा सके. भलाई के क्षण हमेशा याद रखने लायक होते हैं. और दूसरों के उपकार को हमें कभी भी भूलना नहीं चाहिए'
मित्र! अच्छाई - भलाई की तरह क्षमा भी हमारे जीवन को आशीर्वाद से पूरित करती है. क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा अवश्य मिलेगी. नहीं करोगे तो तुम्हें भी कभी क्षमा नहीं किया जायेगा. क्षमा का अर्थ है विरोध शांत करना, टूटे रिश्तों को पूर्वावस्था में लाना. क्षमा पाने के लिये पहले क्षमा करना ज़रूरी है. प्रतिध्वनि की तरह यह देरसबेर लौटकर आती ही है. सदा याद रखो, क्षमा कभी खाली नहीं जाती.
कहानी 03 - मान पद से नहीं मिलता
सिकंदर किसी कारण अपने सेनापति से नाराज़ हो गया. उसने उसे पदच्युत कर सूबेदार बना दिया. सोचा, सेनापति इतना छोटा पद पा अपमानित महसूस करेगा और मन में घुलता रहेगा. मगर उस पर तो कुछ असर न हुआ. बल्कि नये पद पर ज़्यादा ही खुश दीखने लगा. सिकंदर को माजरा कुछ समझ न आया. उसे पहले से ज़्यादा स्वस्थ-प्रसन्न देख आखिर सेनापति को उसने बुलाया. बड़ी हैरानी से पूछा, 'मैं समझ नहीं पा रहा कि तुम पदावनति बावजूद इतने खुश और अलमस्त कैसे दिखायी दे रहे हो ?'
उसने बड़ी शाइस्तगी से जवाब दिया, मैं सच में आपका बहुत ऋणी हूँ. पहले जब मैं सेनापति था तब सैनिक मुझसे बात करते क़तराते थे. पद की मर्यादा का ध्यान रख मैं भी उनसे वादसंवाद करते बचता था. पर अब हमारे बीच किसी तरह का संकोच नहीं रहा. मैं उनसे खूब खुलकर बतियाता हूँ और वे भी मेरा पूरा मान रखते हैं. हम एक दूसरे की सेवा में लगे रहते हैं. दरअसल जिंदगी में मैं अब जान पाया हूँ कि मानसम्मान पद से नहीं बल्कि अपने स्वभाव की मिलनसारिता से मिलता है.
जिसमें थोड़ी मानवीयता होगी उसे सारी दुनिया आदर और स्नेह देगी. आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ, क्योंकि मेरे लिये मानवीयता सबसे बड़ी चीज़ है.' सिकंदर इस जवाब से इतना प्रभावित हुआ कि अपने फैसले पर उसे अनुताप होने लगा. जो व्यक्ति जीवन के प्रति इतनी गहरी पकड़ रखता हो, वह कभी गलत राह नहीं जा सकता. ऐसा व्यक्ति ही रिआया का सच्चा हमदर्द हो सकता है. कहने की ज़रूरत नहीं कि सिकंदर ने बिना वक्त गँवाये उसे फिर से सेनापति बना दिया.
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